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रंग लाई मेहनत: गोशाला से दीदियों ने ओढ़ी आत्मनिर्भरता की 'दुशाला', अमरोहा में प्रदेश का पहला प्रयोग सफल

जहां चाह वहां राह। यह कहावत उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में पांच महिलाओं के एक समूह ने सच कर दिखाई है। इन साहसी नारियों ने चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी मेहनत से खंडहर जैसी मिल में गोशाला स्थापित कर उसकी सूरत बदल डाली है। इतना ही नहीं इनकी गोशाला में पशुधन की संख्या भी बढ़ने लगी है। इनकी सफलता से अन्य महिलाएं भी प्रेरणा ले रही हैं।

By Anil Kumar Awasthi Edited By: Yogesh Sahu Updated: Mon, 29 Jul 2024 08:28 PM (IST)
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रंग लाई मेहनत: अमरोहा में गोशाला से दीदियों ने ओढ़ी आत्मनिर्भरता की 'दुशाला', खंडहर में खिलने लगे फूल
अनिल अवस्थी, अमरोहा। हारते वे हैं, जो चुनौतियां स्वीकार न करें। संघर्ष से डरें और मेहनत पर भरोसा न करें। कुछ खास करने के जुनून वालों के लिए कोई मंजिल दूर नहीं होती।

अमरोहा जिले की पांच दीदियों ने यह साबित भी किया है। आत्मनिर्भर होने के संकल्प ने घर से बाहर निकलने को प्रेरित किया तो खंडहर जैसी मिल में गोशाला स्थापित कर उसकी सूरत ही बदल दी।

तीन महीने में ही गोशाला को खास पहचान दी। यह अब जिले की आधुनिक गोशाला में शामिल हैं। गोवंशीय पशुओं की संख्या भी 100 से बढ़कर 429 हो गई है।

देखरेख के बेहतर इंतजाम के लिए अधिकारी इसकी नजीर देने लगे हैं। दूध और गोकाष्ठ से हो रही आय से पांचों दीदियों ने परिवार को आर्थिक तंगी से तो उबार ही दिया है। खुद भी सफलता के नए सोपान गढ़ने की राह पर हैं।

अमरोहा जिला मुख्यालय से करीब 10 किमी दूर याहियापुर में सहकारी कताई मिल 20 वर्ष से बंद पड़ी है। एक हजार एकड़ के आसपास भूमि में फैले इसके भवन भी खंडहर में तब्दील हो गए हैं।

अमरोहा के याहियापुर स्थित सहकारी कताई मिल में संचालित गोशाला की साफ-सफाई करतीं समूह की महिलाएं। जागरण

प्रदेश सरकार के गोवंशीय पशुओं की देखरेख पर ध्यान देने पर इस मिल में भी पशुओं को रखा गया। लोगों ने इनकी देखरेख तो नहीं की, मिल भूमि पर जरूर कब्जा जमाना शुरू कर दिया।

लिहाजा पशुओं की हालत खराब हो गई। तीन वर्ष पूर्व जिला प्रशासन ने गोशाला को महिला स्वयं सहायता समूह को देने की पहल की। यह प्रदेश में पहला प्रयोग था।

अमरोहा के याहियापुर स्थित सहकारी कताई मिल में संचालित गोशाला में महिलाओं से बातचीत करते सीडीओ एके मिश्र। जागरण

नई किरण महिला समूह की पांच सदस्य ममता, सरस्वती, कुसुम, मुमताज व कंचन ने गोशाला संचालन का जिम्मा संभाला।

वह खुद ही पशुओं को चारा खिलाने लगीं, दुधारू गायों से दूध भी खुद ही निकालती थीं और साफ-सफाई भी खुद ही करतीं।

चारे के लिए निर्भरता खत्म करने के मिल की खाली पड़ी भूमि पर चारा भी पैदा किया। महिलाओं ने सामाजिक संगठनों से मदद मांगकर दो गोदामों को भूसे से भर दिया। इससे पशु स्वस्थ रहने लगे।

सकारात्मक परिणाम होने पर अन्य गोशालाओं से भी पशु यहां भेज दिए गए। तीन महीने में ही यह संख्या 429 हो गई है। यहां सभी काम महिलाएं संभाल रही हैं।

एक माह पहले गोशाला आए प्रदेश के पशुधन विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने भी समूह की महिलाओं की जमकर प्रशंसा की।

अमरोहा के याहियापुर स्थित सहकारी कताई मिल में संचालित गोशाला में गोवंशीय पशुओं को चारा डालतीं समूह की महिलाएं। जागरण

गोकाष्ठ से भी आमदनी

गायों के गोबर से समूह की महिलाएं गोकाष्ठ तैयार कर रही हैं। जिला प्रशासन के प्रयासों के बाद फैक्ट्री संचालक गोकाष्ठ यहीं से खरीद रहे हैं। दूध बेचकर भी कुछ आमदनी हो जाती है।

सरकार से प्रति गाय 50 रुपये का भुगतान मिल रहा है। समूह सदस्य ममता बताती हैं कि प्रशासन के सहयोग के चलते उन्हें गो सेवा के पुण्य का लाभ भी मिल रहा है और साथ ही प्रतिमाह प्रत्येक सदस्य को आठ से दस हजार रुपये की बचत भी हो जाती है।

परिवार में मजदूरी ही की जाती है। काम नहीं मिलने पर खर्चे का संकट आ जाता था। अब ऐसी स्थिति नहीं बनती।

अमरोहा के याहियापुर स्थित सहकारी कताई मिल में संचालित गोशाला में चारा काटतीं समूह की महिलाएं। जागरण

मछली, मुर्गी और बकरी पालने की भी तैयारी

महिलाएं सुबह छह बजे से देर शाम तक पशुओं की देखरेख में जुटी रहती हैं। अब उन्होंने मत्स्य पालन के लिए मिल परिसर में ही तालाब खोदवा लिया है।

सीडीओ अश्विनी मिश्र ने उनकी लगन देखकर मुर्गी और बकरी पालन का प्रशिक्षण भी दिलवाया है। अब वह इन्हें पालने की भी तैयारी कर रही हैं।

राजेश कुमार त्यागी, जिलाधिकारी।

महिला समूह द्वारा गोशाला संचालन का अभिनव प्रयोग सफल रहा। जिले में संचालित गोशालाओं में सबसे बेहतर याहियापुर गोशाला ही है। सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं के जरिये समूह की सदस्यों को समृद्ध किया जाएगा। अन्य गोशालाएं भी दूसरे महिला समूहों को देने पर भी विचार चल रहा है। - आरके त्यागी, जिलाधिकारी, अमरोहा

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