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Amroha News: 'मैं क्लास टू अफसर होता...अच्छा काम करने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है', कन्या गुरुकुल में संघ प्रमुख ने दिए सवालों के जवाब

RSS Chief Mohan Bhawat गुरुकुल की मुख्याधिष्ठात्री आचार्या डा. सुमेधा आर्या मंत्रोच्चारण के बीच 134 छात्राओं का विधि-विधान के साथ यज्ञोपवीत धारण कराकर उपनयन संस्कार कराया। डा.मोहन भागवत ने उनको उपदेश व आशीर्वाद दिया। पिता के रूप में वह यज्ञशाला में विराजमान हुए। मोहन भागवत ने कन्या गुरुकुल की छात्राओं के सवालों के जवाब दिए। बोले कुछ होने के लिए नहीं संघ में खुद को गाड़ने के लिए आए।

By Abhishek Saxena Edited By: Abhishek Saxena Updated: Wed, 31 Jul 2024 02:52 PM (IST)
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श्रीमद् दयानन्द कन्या गुरूकुल महाविद्यालय चोटीपुरा में आयोजित कार्यक्रम को सम्बाधित करते संघ प्रमुख डा.मोहन भागवत। जागरण
सौरभ प्रजापति, जागरण, अमरोहा मैं भी क्लास टू अफसर होता, लेकिन अच्छा काम करने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है। हमने कुछ होने के लिए जन्म नहीं लिया है, बल्कि संघ में खुद को गाड़ने के लिए आए हैं। ये बातें कन्या गुरुकुल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डा.मोहन भागवत ने छात्राओं के सवाल के जवाब में कही।

उपनयन संस्कार में पहुंचे संघ प्रमुख से गुरुकुल की छात्राओं ने अपनी जिज्ञासा से जुड़े कई सवाल किए। संघ प्रमुख ने भी सभी को ध्यानपूर्वक सुना और फिर समझाने वाले अंदाज में जवाब दिए।

डॉ. मोहन भागवत का तिलक लगाकर स्वागत करतीं डा. सुमेधा आर्या।

सवाल : आपके जीवन संघर्ष को जानने की जिज्ञासा है?

जवाब : मेरे बारे में जो सुना है, वह सही है। मैं अकेला नहीं हूं, संघ के सभी कार्यकर्ता ऐसे ही हैं। चुटीले अंदाज में बोले-संघ के हजारों कार्यकर्ताओं में मैं फुर्सत में हूं, इसलिए मुझे सर संघ संचालक बना रखा है। जीवन में संघर्ष क्या होता है, बाहर के संघर्ष क्या होते हैं, यह महत्व की बात नहीं। हमारा अपने से ही संघर्ष होता है। एक पर्दा होता है। उसको कहते हैं अहंकार। वो, वही रूप लेता है। जो हम दिलाते हैं। मैं क्लास टू अफसर होता, लेकिन अच्छा काम करने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है। संघर्ष अपने मकसद के लिए करना चाहिए।

सवाल : संघ के विस्तार में महिलाओं की कितनी भूमिका है?

जवाब : सीधी नहीं हैं, पीछे से हैं। बहुत बड़ी हैं। साढ़े चार हजार के आसपास कार्यकर्ता घर छोड़कर काम करते हैं। काफी परिवार के साथ काम कर रहे हैं। उन्हें जेल भी जाना पड़ता है। परिवार की महिलाएं उन्हें आगे बढ़ाती हैं। हमको भोजन भी मातृ शक्ति ही उपलब्ध कराती हैं। महिलाओं को राष्ट्र सेविका समिति है। महिला जगदंबा है। हम केवल सक्षम बना सकते हैं। संकट के दिनों में महिलाएं ही आगे आतीं हैं। हमारा काम महिलाओं की उन्नति का नहीं बल्कि उन्हें साक्षर बनाने का है।

सवाल : महाभारत में अर्जुन को श्रीकृष्ण की जरूरत पड़ी, क्या गीता उनका अभाव दूर कर पाएगी?

जवाब : अभाव नहीं है, सत्य है। कृष्ण जी योगेश्वर के रूप में आते हैं। ऐसे लोगों की कभी देश में कमी नहीं रही। हम स्वार्थी नहीं आध्यात्मिक बने। बाकी योगेश्वर खुद देख लेंगे। इसलिए भारत वर्ष आगे बढ़ रहा है। गीता शब्द नहीं जीवन है। हम उसी पर अग्रसर और संकल्पित होकर कार्य कर रहे हैं।

सवाल : आपके नाम के दोनों शब्द ईश्वर का स्मरण कराते हैं। नाम रखने के पीछे क्या मकसद है?

जवाब : मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है। आपका नाम भी आपको पूछकर रखा था क्या? मेरा भी नाम ऐसे ही दे दिया गया। हंसकर बोले-जिसे मैं ढो रहा हूं। पर, क्यों रखा, इसके बारे में मुझे पता नहीं। भागवत मेरा कुल नाम है। जो, ऐसे ही चला आ रहा है। भागवत का मतलब है, भक्ति का प्रचार करना और मैं देशभक्ति का प्रचार करता हूं। देश और भक्ति में अंतर नहीं मानता हूं।

सवाल : आप प्रधानमंत्री और वरिष्ठ पदों को प्राप्त कर सकते थे, ऐसा क्यों नहीं किया?

जवाब : कुछ होने के लिए हमने जन्म नहीं लिया है। संघ में खुद को गाड़ने के लिए आए हैं। देशहित के लिए काम करना है। तेरा वैभव अमर रहे मां... पर चलते हैं। इसलिए सारे दरवाजे हमने पहले ही बंद कर दिए हैं। अब संघ ही बताता है। ये करो, वो करो। संघ जो कहता है, हम वो करते हैं। अपनी इच्छा से संघ में कोई कुछ नहीं करता है। जो वहां का (प्रधानमंत्री पद) ग्लैमर है, कोई स्वयंसेवक उसके लिए वहां नहीं जाता है। जिनके बारे में आप कह रहे हैं, उनसे भी व्यक्तिगत रूप से यह पूछेंगे तो वह बताएंगे कि मेरी इच्छा तो फिर से गणवेष धारण शाखा चलाने की है।

सवाल : धर्म और देश में किसे ऊपर स्थान देना चाहिए?

जवाब : सब एक है। सनातन दुनिया बनने के बाद से चलता आया है। सबको उन्नत करने के प्रयास होते हैं, उसे कहते हैं धर्म। दुनिया को धर्म देने के लिए हमारा देश है। इसमें अंतर नहीं है।

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गुरुकुल : एक नजर में

गांव चोटीपुरा की आचार्य सुमेधा गुरुकुल कांगड़ी से शिक्षा ग्रहण की है। उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य रहने का फैसला किया और पिता से शादी में खर्च की जानी वाली रकम से 1988 में दो कमरों का निर्माण कराकर कन्या गुरुकुल की स्थापना की। अब यहां 20 राज्यों की 1200 बेटियां शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। 2012 में यहां की एक छात्रा आइएएस भी बन चुकी हैं। 180 कन्याओं ने नेट-जेआरएफ की परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं। विभिन्न खेलों में 550 मेडल यहां की बेटियां जीत चुकी हैं। 350 बेटियों ने योगासन में जनपद, मंडल, प्रदेश व राष्ट्र स्तर पर मेडल जीते हैं। 200 बेटियों को संपूर्ण गीता याद है। इनके अलावा भी कई कीर्तिमान स्थापित किए जा चुके हैं। 

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