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पानी नहीं, यह तो मानव व हरे भरे पौधों की है जिंदगानी

जागरण संवाददाता औरैया जल ही जीवन है। इसकी प्रत्येक बूंद को सहेजना हमारा परम कर्तव्य भी ह

By JagranEdited By: Updated: Wed, 21 Apr 2021 11:08 PM (IST)
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पानी नहीं, यह तो मानव व हरे भरे पौधों की है जिंदगानी

जागरण संवाददाता, औरैया: जल ही जीवन है। इसकी प्रत्येक बूंद को सहेजना हमारा परम कर्तव्य भी है। जल की अहमियत व संरक्षण के तौर तरीके सीखने हों तो आ जाइए विकासखंड भाग्यनगर के ग्राम कनौती। यहां पर पानी की एक-एक बूंद को सहेज जाता है। उन्हीं से पौधे लहलहा भी रहे हैं। पूरे वर्ष तैयार हरी सब्जियों की क्यारी हरी-भरी हैं। जल को सहेजने का यह पुनीत कार्य कर रही हैं सरला। अपनी वृद्धावस्था को भी चुनौती देकर उन्होंने पानी के मोल को समझते हुए उसे पौधे के जीवन उपयोगी बना दिया है। इस अनूठी पहल ने उन्हें ग्रामीणों के बीच नजीर बना दिया है।

75 वर्षीय सरला का कहना है कि उनका पुश्तैनी कारोबार मिट्टी के घड़े बनाना है। बचपन से ही उन्हें पर्यावरण के प्रति लगाव था। जल के महत्व को समझने के बाद औरों को समझाने का कार्य वह वृद्धावस्था में भी कर रही हैं। पानी की एक एक बूंद की कीमत को वह भलीभांति समझती हैं। जल का उपयोग भी वे पूरे मनोयोग से करती हैं। सरला का मानना है कि प्रकृति प्रदत्त क्षित, जल, पावक, गगन, समीरा इन पंचतत्वों का मिश्रण है। मिट्टी के बर्तनों को बनाने में उपयोग होने वाला पानी वह बर्बाद नहीं होने देतीं बल्कि एकत्र कर फूल-फल, पौधों व सब्जी उगाने के काम में लाती हैं। उन्होंने गुलाब, गिलोय, तुलसी, पपीता, अमरूद आदि के पौधे तैयार कर रखे है। इसके अलावा पूरे वर्ष हरी व शुद्ध सब्जियों को उगाकर परिवार का भरण पोषण करती हैं। आज के समय में सरला देवी की तरह श्रम करना बड़ी बात है जो रात-दिन मिट्टी से जुड़े रहते हुए खुद को तपा प्रकृति के अनमोल रत्नों को 'शीतल' रखने की दिशा में कार्य कर रही हैं।

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कुछ ऐसे बचा रहीं एक-एक बूंद:

सरला का कहना है कि मिट्टी के बर्तन बनाने में पानी का उपयोग होता है। मिट्टी गीली करने के लिए पानी डाला जाता है। इसमें बहने वाले पानी को गड्ढे में एकत्र करते हुए उसे मिट्टी के बर्तन में वह एकत्र कर लेती हैं। इसके बाद उसे बोई गई सब्जियों, फूलवारी के काम में लेती हैं।

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