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Ram Mandir: अन्नू भाई सोमपुरा ने राम मंदिर के लिए 33 साल पूर्व चलाई थी पहली छेनी, बोले- करोड़ों श्रद्धालुओं के सपनों पूरा

Ram Mandir रामघाट स्थित मंदिर निर्माण कार्यशाला के प्रभारी अन्नू भाई सोमपुरा मंदिर निर्माण के प्रति दृढ़ता के परिचायक हैं। उन्होंने 33 साल पहले मंदिर निर्माण के लिए पहली छेनी चलाई थी। यद्यपि तब मंदिर निर्माण दूर की कौड़ी था। अब अन्‍नू भाई कहते हैं आज मंदिर निर्माण का स्वप्न साकार होते देख लगता है करोड़ों श्रद्धालुओं के सपनों पूरा हो रहा है।

By Jagran NewsEdited By: Prabhapunj MishraUpdated: Thu, 16 Nov 2023 12:52 PM (IST)
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Ram Mandir: पूर्णता की ओर द‍िव्‍य भव्‍य राम मंद‍िर

रघुवरशरण, अयोध्या। रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का स्वप्न जिन लोगों के प्रयास-पराक्रम से साकार हो रहा है, उनमें अन्नू भाई सोमपुरा भी शामिल हैं। उन्होंने 33 साल पहले मंदिर निर्माण के लिए पहली छेनी चलाई थी। यद्यपि तब मंदिर निर्माण दूर की कौड़ी था। मामला न्यायालय में लंबित था। कारसेवकों पर गोली चलाए जाने के साथ मंदिर आंदोलन लहूलुहान था, किंतु आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पांव पीछे खींचने को तैयार नहीं थे।

एक ओर उस स्थल तक पहुंचने के लाले थे, जहां मंदिर का निर्माण होना था, दूसरी ओर निर्माण का प्रयत्न पूरी प्रबलता से आकार ले रहा था। आंदोलन का नेतृत्व गुजरात निवासी उन चंद्रकांत सोमपुरा के संपर्क में था, जिनके पितामह प्रभाशंकर सोमपुरा ने सोमनाथ के प्रख्यात मंदिर का शिल्प तैयार किया था। विरासत के अनुरूप चंद्रकांत भाई ने भी पूरी प्रामाणिकता से अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए राम मंदिर की मनोहारी अनुकृति तैयार की। न केवल यह अनुकृति अस्मिता की परिचायक बन कर करोड़ों रामभक्तों के बीच स्वीकृत-शिरोधार्य हुई, बल्कि इस अनुकृति के अनुरूप शिलाओं की गढ़ाई शुरू हुई।

न्यायालय में विचाराधीन होने के कारण उन दिनों रामजन्मभूमि परिसर में निर्माण से जुड़ी गतिविधि निषिद्ध थी, ऐसे में मंदिर आंदोलन के शलाका पुरुष महंत रामचंद्रदास ने डेढ़ किलोमीटर दूर रामघाट चौराहा के करीब अपनी भूमि प्रदान की। इसी भूमि पर सितंबर 1990 में निर्धारित अनुकृति के हिसाब से शिलाओं की गढ़ाई शुरू हुई। लाल बलुआ पत्थरों की गढ़ाई के अभियान का नेतृत्व कार्यशाला के प्रभारी के अन्नू भाई कर रहे थे।

अन्नू भाई भी उन्हीं प्रभाशंकर के खानदान से हैं, चंद्रकांत भाई जिनके पौत्र हैं और इन्हीं चंद्रकांत सोमपुरा के कहने पर अन्नू भाई गुजरात से अयोध्या आए थे। तब उनकी उम्र 42 साल की थी। यह उनका हौसला और सपनों के प्रति भरोसा था कि आज जिस मंदिर में 12 लाख घन फीट पत्थर का प्रयोग हो रहा है, उसके लिए गढ़ाई का आरंभ उन्होंने फौरी तौर पर जुटाए गए दो शिलाखंडों से किया। यद्यपि 15 दिन बाद ही राजस्थान के भरतपुर से ट्रक पर शिलाओं की पहली खेप पहुंची।

इसी के साथ अपने भाई और बेटे के साथ शिलाओं की गढ़ाई कर रहे अन्नू भाई ने कुछ और कारीगरों का प्रबंध किया। छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद के कुछ दिन अफरा-तफरी और अनिर्णय के रहे, किंतु कुछ माह बाद मंदिर के लिए शिलाओं की तराशी पुन: तीव्र हुई। अन्नू भाई भी पूरे प्रभाव-प्रवाह के साथ अपनी भूमिका का निर्वहन करते रहे।

नौ नवंबर 2019 को सुप्रीमकोर्ट का निर्णय आने तक अन्नू भाई के नेतृत्व में मंदिर के भूतल की तराशी पूरी कर ली गई थी। आज उन्हीं के ही प्रयास का सुफल है कि शिलान्यास के चार वर्ष बाद ही मंदिर का भूतल निर्धारित अनुकृति के अनुरूप यथास्थान संयोजित किया जा चुका है और 22 जनवरी को इसी भूतल के गर्भगृह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होगी।

करोड़ों श्रद्धालुओं के सपनों को सज्जित करने की तृप्ति

आज मंदिर निर्माण का स्वप्न साकार होते देख अन्नू भाई अतीव हर्षित प्रतीत होते हैं। वह कहते हैं, यह प्रसन्नता मंदिर निर्माण का श्रेय मिलने तक ही नहीं है, अपितु करोड़ों श्रद्धालुओं के सपनों को सज्जित करने में सहायक होने की तृप्ति है। इसके लिए 75 वर्षीय अन्नू भाई चंद्रकांत भाई और विहिप नेतृत्व के भी प्रति आभार व्यक्त करते हैं, जिसने उन्हें मंदिर निर्माण के महनीय अभियान में शामिल होने का अवसर दिया। अहमदाबाद से अयोध्या आने से पूर्व अन्नू भाई शिल्पी और ठेकेदार की भूमिका में गुजरात के कुछ मंदिरों का निर्माण करा चुके थे।

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