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अयोध्या के मन में क्या? यहां भाजपा ही नहीं 'हाथी' भी फिसला, नई चाल भी नहीं आई काम- जमानत तक न बचा सके प्रत्याशी

रामनगरी में अब तक बसपा का हर दांव विफल साबित हुआ। इस बार के लोकसभा चुनाव में यहां पर हाथी की चिंघाड़ तक नहीं सुनाई दी। बसपा प्रत्याशी सच्चिदानंद पांडेय बसपा के परंपरागत वोट पाने की बात तो दूर अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। बसपा को मात्र 46 हजार 407 मत ही मिल सके। महज 4.07 प्रतिशत मतों से ही बसपा को संतोष करना पड़ा।

By prahlad tiwari Edited By: Aysha Sheikh Updated: Sat, 08 Jun 2024 03:25 PM (IST)
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अयोध्या के मन में क्या? यहां भाजपा ही नहीं 'हाथी' भी फिसला, नई चाल भी नहीं आई काम
संवाद सूत्र, अयोध्या। रामनगरी में अब तक हुए लोकसभा के चुनावों में बसपा का हर दांव विफल साबित हुआ। इस बार के लोकसभा चुनाव में यहां पर हाथी की चिंघाड़ तक नहीं सुनाई दी। बसपा प्रत्याशी सच्चिदानंद पांडेय बसपा के परंपरागत वोट पाने की बात तो दूर अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। बसपा को मात्र 46 हजार 407 मत ही मिल सके। महज 4.07 प्रतिशत मतों से ही बसपा को संतोष करना पड़ा। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का गृह जिला होने से बसपा पर लोगों की दृष्टि लगी थी। बसपा के सामने जनाधार सहेजने की चुनौती थी।

इस संसदीय सीट पर बसपा ने लगातार प्रयोग किये। लगभग हर चुनाव में उम्मीदवार बदले, परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए। चुनाव-दर-चुनाव हार के चलते वर्ष 2019 में बहुजन समाज पार्टी ने खुद का उम्मीदवार उतारने की जगह गठबंधन में सीट सपा के लिए छोड़ दी। गठबंधन ने लड़ाई तो लड़ी लेकिन सफलता के शिखर तक नहीं पहुंच पाया। इस बार बसपा ने फिर नया प्रयोग किया था।

भाजपा के नेता ही नहीं, उसके विचार परिवार से वैचारिक रूप से जुड़े पड़ोसी जिले अंबेडकरनगर के निवासी सच्चिदानंद पांडेय को चुनाव मैदान में उतार कर फिर से दूसरी बार ब्राह्मण दांव चला था, लेकिन कारगर नहीं रहा। लगातार खिसक रहे जनाधार से मतदाताओं का भरोसा जीतने में बसपा सफल नहीं हो सकी। इससे पहले वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने अयोध्या राजपरिवार के मुखिया बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र को अपना उम्मीदवार बनाया था।

वह भी बसपा को जीत नहीं दिला सके थे। अब तक हुए लोकसभा चुनाव में इस बार बसपा का रहा सबसे कमजोर व खराब प्रदर्शन रहा है। फैजाबाद संसदीय सीट के चुनावी इतिहास में अगर बसपा को खोजा जाए तो केवल एक बार हाथी की चिंघाड़ यहां बुलंद हुई। वह भी संयोग से। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने विपक्ष की राजनीति के महारथी रहे मित्रसेन यादव को जब हाथी का महावत बनाया, तब हाथी दिल्ली का सफर तय कर पाया।

1989 का चुनाव

फैजाबाद संसदीय सीट पर 1989 में पहली बार बसपा ने आरके चौधरी को अपना प्रत्याशी बनाया। वह तीसरे स्थान पर रहे। 1991 में बीएसपी ने फिर आरके चौधरी पर भरोसा जताया। इस बार वह चौथे स्थान पर खिसक गए, हालांकि मत प्रतिशत बढ़ा और पहली बार बसपा यहां 50 हजार मतों का आंकड़ा पार कर पाई। 1996 में बसपा ने नया प्रयोग करते मुस्लिम उम्मीदवार उतारा।

बसपा उम्मीदवार इकबाल मुस्तफा के नाम से जाने जाने वाले इकबाल मोहम्मद खान तीसरे स्थान पर बसपा को फिर वापस लाए। दो वर्ष बाद 1998 के चुनाव में बसपा ने रामनिहाल निषाद को मैदान में उतारा, तब पहली बार यहां पर बसपा एक लाख मतों का आंकड़ा पार कर पाई। 1999 में बसपा ने फिर उम्मीदवार बदला और सियाराम निषाद को टिकट थमाया।। इस चुनाव में बसपा मुख्य लड़ाई में आई।

हालांकि सफलता नहीं मिली। 2004 में मित्रसेन यादव को बसपा ने उम्मीदवार बनाया। उन्होंने अपने व्यक्तिगत व सजातीय वोट बैंक के सहारे भगवा दुर्ग में नीला झंडा फहराया। 2009 के चुनाव में बसपा ने फिर प्रयोग किया और राजा बिमलेंद्र मोहन मिश्र को उम्मीदवार बनाया, तब बसपा फिर से चौथे स्थान पर चली गयी। 2014 में बसपा ने ब्राह्मण के स्थान पर क्षत्रिय प्रत्याशी जितेंद्र सिंह बब्लू को उतार कर फिर सियासी प्रयोग किया लेकिन बसपा तीसरे स्थान से आगे नहीं बढ़ सकी।

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