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फैजाबाद सीट से हमेशा असफल रहे हैं इन दलों के प्रत्याशी, फिर भी भाग्य आजमाने से नहीं रहे पीछे; जानिए इस सीट का इतिहास

इस बार भी चुनावी समर में नौ प्रत्याशी ऐसे हैं जो निर्दलीय अथवा गैर राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी हैं। जो 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं उनमें भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद बसपा प्रत्याशी सच्चिदानंद पांडेय एवं भाकपा प्रत्याशी अरविंदसेन यादव ही ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है या अतीत में प्राप्त था ।

By Raghuvar Sharan Edited By: Riya Pandey Updated: Wed, 08 May 2024 09:06 PM (IST)
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फैजाबाद सीट से हमेशा असफल रहे हैं इन दलों के प्रत्याशी
रघुवर शरण, अयोध्या। Faizabad Lok Sabha Seat: फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र का इतिहास बताता है कि यहां निर्दलीय अथवा गैर राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों को कभी सफलता का अवसर नहीं मिला। सत्य तो यह है कि ऐसे प्रत्याशी कभी मुख्य मुकाबले तक भी नहीं पहुंच पाए, तथापि वे भाग्य आजमाने में कभी पीछे नहीं रहे।

इस बार भी चुनावी समर में नौ प्रत्याशी ऐसे हैं, जो निर्दलीय अथवा गैर राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी हैं। जो 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, उनमें भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह, सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद, बसपा प्रत्याशी सच्चिदानंद पांडेय एवं भाकपा प्रत्याशी अरविंदसेन यादव ही ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है या अतीत में प्राप्त था ।

इन पार्टियों को सफलता के लिए करनी होगी काफी मशक्कत

राष्ट्रीय जनशक्ति समाज पार्टी के अनिल कुमार रावत, भारत महापरिवार पार्टी के अंबरीशदेव गुप्त, मौलिक अधिकार पार्टी की कंचन यादव, आदर्शवादी कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी बृजेंद्रदत्त त्रिपाठी की उम्मीदवारी के पीछे पंजीकृत पार्टी तो है, किंतु इनमें से कोई भी राष्ट्रीय पार्टी नहीं है। जबकि अरुण कुमार, जगत सिंह, फरीद सलमानी, लालमणि तिवारी, सुनील कुमार भट्ट घोषित तौर पर निर्दलीय प्रत्याशी हैं। इनमें से यदि किसी को सफलता का स्वाद चखना है, तो उन्हें अभूतपूर्व इतिहास रचना होगा। इससे कम पर काम नहीं चलने वाला है।

दूसरी से 5वीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों ने किया प्रतिनिधित्व

देश की स्वतंत्रता के बाद से ही निर्दलीयों की संभावनाएं क्षीण पड़ने लगीं। प्रथम सांसद निर्वाचित होने का गौरव इंडियन नेशनल कांग्रेस के लल्लनजी अरोड़ा को मिला। दूसरी, तीसरी, चौथी और पांचवीं लोकसभा के चुनाव में भी इस क्षेत्र के प्रतिनिधित्व का अवसर कांग्रेस प्रत्याशियों को ही मिला। इस अवधि में क्रमश: राजाराम मिश्र, बाबू बृजवासी लाल और रामकृष्ण सिन्हा (दो बार) निर्वाचित हुए।

1977 के चुनाव में जनता पार्टी की आंधी के बीच अनंतराम जायसवाल को जीत का अवसर मिला और अपेक्षा के अनुरूप उनसे मुख्य मुकाबले में कांग्रेस के रामकृष्ण सिन्हा ही शामिल रहे। 80 के चुनाव में जयराम वर्मा के रूप में कांग्रेस फैजाबाद सीट वापस पाने में सफल रहीं और इस बार भी निर्दलीय अथवा गैर राष्ट्रीय पार्टी के किसी प्रत्याशी के हाथ दूर-दूर तक मौका नहीं आया।

दूसरे नंबर पर 77 के चुनाव के विजेता जनता पार्टी के अनंतराम जायसवाल रहे। 84 में कांग्रेस के निर्मल खत्री ने भाकपा के मित्रसेन यादव को, 89 में भाकपा के मित्रसेन यादव ने कांग्रेस के निर्मल खत्री को, 91 में भाजपा के विनय कटियार ने भाकपा के मित्रसेन यादव को हराया।

1991 और 96 में भाजपा के कटियार हुए निर्वाचित

1996 में भी भाजपा के कटियार निर्वाचित हुए और अंतिम मुकाबले में मित्रसेन यादव ही थे, किंतु इस बार वह सपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे। 98 में सपा प्रत्याशी के ही तौर पर जीत के साथ मित्रसेन ने भाजपा के विनय कटियार से बदला लिया। ... तो 99 में तीसरी बार निर्वाचित भाजपा के विनय कटियार के निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के सियाराम निषाद रहे।

2004 में मित्रसेन यादव तीसरी बार बसपा के टिकट से सांसद चुने गए और उन्हें चुनौती देने का प्रयास भाजपा के लल्लू सिंह ने दिया। 2009 में कांग्रेस के डा. निर्मल खत्री दूसरी बार सांसद चुने गए। इस बार दूसरे नंबर पर सपा के मित्रसेन यादव रहे।

2014 एवं 19 के चुनाव में मोदी और भाजपा की लहर के बीच भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह के आगे किसी का भी टिकना कठिन हो गया था, निर्दलीयों के लिए संभावना तो और भी क्षीण रही।

1999 का चुनाव जरूर अपवाद रहा

निर्दलीयों की संभावना की दृष्टि से 1999 का चुनाव जरूर कुछ हद तक अपवाद सिद्ध हुआ। इस चुनाव में सपा के टिकट से वंचित मित्रसेन यादव ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भरा और करीब 80 हजार मत प्राप्त कर निर्दलीयों को सम्मान दिलाते हुए चौथा स्थान प्राप्त किया। इस एक अवसर के अलावा निर्दलीय कभी छाप छोड़ने में सफल नहीं हो सके।

हमारे पास खोने को कुछ नहीं

कोचिंग सेंटर चलाने वाले एकेडमिक पृष्ठभूमि के निर्दलीय प्रत्याशी लालमणि तिवारी के अनुसार हमें ऐसे अतीत का कोई डर नहीं है। हम तो इतिहास गढ़ने के ही लिए मैदान में हैं। सामंतशाही और सत्ता परस्ती के चलते औंधे मुंह पड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था के दौर में हमारे पास खोने को कुछ नहीं बचा है और पाने को सब कुछ है।

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