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Exclusive: अयोध्या राज परिवार के Bimlendra Mohan Mishra का इंटरव्यू, अयोध्या के भविष्य से लेकर राजनीति तक पर की बात

Ayodhya Ram Mandir Exclusive अयोध्या राज परिवार के मुखिया बिमलेंद्र मोहन मिश्र एक विरासत के प्रतिनिधि हैं। रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन होने के साथ उनकी भूमिका नए सिरे से परिभाषित हो रही है। नवनिर्मित मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर दैनिक जागरण के अयोध्या संवाददाता रमाशरण अवस्थी एवं रघुवरशरण ने उनसे विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश।

By Raghuvar Sharan Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Sat, 20 Jan 2024 03:24 PM (IST)
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Ayodhya Ram Mandir Exclusive: युगों पूर्व श्रीराम के जन्म के बाद का सबसे बड़ा महोत्सव- Bimlendra Mohan Mishra

रमाशरण अवस्थी और रघुवरशरण, अयोध्या। दिव्य-दैवी पुण्य सलिला सरयू से अभिषिक्त-अवगुंठित अयोध्या यदि सृष्टि के आरंभ से श्रीराम सहित अनेक यशस्वी सूर्यवंशीय नरेशों से सेवित-संवर्द्धित रही तो देश की स्वतंत्रता के पूर्व की शताब्दी में यह ब्राह्मण शासकों से सेवित-संवर्द्धित हुई, जिन्होंने नवाबों के दरबार में अपनी वीरता और समझ का लोहा मनवाया तथा प्रतिष्ठा प्राप्त की।

लोकशाही की प्रतिष्ठा के साथ राजशाही तो समाप्त हो गई, किंतु सदियों के सरोकार और भाव अभी भी प्रवाहमान हैं। अयोध्या राज परिवार के मुखिया बिमलेंद्र मोहन मिश्र (Bimlendra Mohan Mishra) इसी विरासत के प्रतिनिधि हैं। रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन होने के साथ उनकी भूमिका नए सिरे से परिभाषित हो रही है। नवनिर्मित मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ayodhya Ram Mandir Pran Prastishtha) के अवसर पर दैनिक जागरण के अयोध्या संवाददाता रमाशरण अवस्थी एवं रघुवरशरण ने उनसे विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश-

प्रश्न - प्राण प्रतिष्ठा (Ayodhya Ram Mandir Pran Prastishtha) के अवसर पर कैसा अनुभव कर रहे हैं?

उत्तर - आह्लादित हूं। जीवन सफल हो गया। यह शताब्दी की सबसे बड़ी घटना है। स्वर्णिम अवसर है। सौभाग्यशाली हूं कि अविस्मरणीय अवसर का साक्षी हूं। 

प्रश्न - क्या आपको उम्मीद थी कि मंदिर निर्माण संभव होगा और रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव इतना विशद-व्यापक होगा?

उत्तर - मैने नहीं सोचा था। मेरी समझ में मंदिर निर्माण के रूप में असंभव संभव हो रहा है और यह अवसर अविस्मरणीय है। उसी हिसाब से इस अवसर का उत्साह है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह अपूर्व-अविस्मरणीय और आस्था का मान वापस पाने का अवसर है। शास्त्रों में युगों पूर्व श्रीराम के प्राकट्य के अपूर्व उल्लास का वर्णन मिलता है, किंतु उसके बाद जो सबसे बड़ा महोत्सव भव्य राम मंदिर में रामलला के विग्रह की स्थापना का है। इससे पूरी दुनिया के राम भक्त प्रसन्न हैं। आज देश-विदेश तक के रामभक्त अयोध्या आने के लिए लालायित हैं।

प्रश्न - अयोध्या का भविष्य किस रूप में देखते हैं?

उत्तर - श्रीहीन अयोध्या की श्री वापस आ गई है। संतों से सुनता रहा कि अयोध्या शापित है। धोबी के अविश्वास के चलते उसे माता सीता के शाप का सामना करना पड़ा, किंतु आज प्रतीत हो रहा है कि राम मंदिर के पुनर्निर्माण से आह्लादित माता सीता ने अयोध्या को शाप मुक्त कर उसे गौरव-गरिमा संपन्न होने का आशीर्वाद दे रही हैं। राम मंदिर के साथ सभी हिंदुओं का सम्मान भी वापस मिल रहा है। अयोध्या विश्व की आस्था के केंद्र में है और मोदी एवं योगी सरकार के प्रयास से यह पूरी तीव्रता से वैश्विक महत्व की श्रेष्ठतम सांस्कृतिक नगरी के स्वरूप में विकसित हो रही है। इस साल के अंत तक जब राम मंदिर का तीनों तल पूर्ण हो रहा होगा, तब तक उम्मीद है कि अयोध्या श्रेष्ठतम सांस्कृतिक नगरी के रूप में भी प्रतिष्ठापित हो चुकी होगी।

प्रश्न - रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य के रूप में मंदिर निर्माण से जुड़ा अनुभव कैसा रहा?

उत्तर - अद्भुत-अविस्मरणीय। रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का प्रथम सदस्य होने के चलते मैंने ही तत्कालीन मंडलायुक्त डा. मनोजकुमार मिश्र से चार वर्ष पूर्व 71 एकड़ के रामजन्मभूमि परिसर का रिसीवर के रूप में प्रभार ग्रहण किया। यह घटना जीवन की सर्वश्रेष्ठ घटना थी और इसके बाद पूर्ण मनोयोग और श्रद्धा से मंदिर निर्माण में सहयोगी बनना नित्य के आह्लाद का साहचर्य है।

प्रश्न- रामजन्मभूमि मुक्ति के संघर्ष में आपके पूर्वजों का प्रयास भी अमिट है। इस बारे में क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर - यह श्रेय स्वीकार करते हुए मुझे संकोच हो रहा है। हां, मैं उन पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहूंगा, जिन्होंने मुक्ति संघर्ष की मशाल नहीं बुझने दी।

प्रश्न - कुछ विशेषज्ञों की आपत्ति है कि मंदिर का निर्माण पूरा हुए बिना विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा (Ayodhya Ram Mandir Pran Prastishtha)की जा रही है और यह शास्त्र विरुद्ध है। इस आपत्ति पर आपका क्या विचार है?

उत्तर - अयोध्या राज परिवार के मुखिया बिमलेंद्र मोहन मिश्र (Bimlendra Mohan Mishra) कहते हैं कि मंदिर में निर्माण कार्य होते रहते हैं। रामलला पहले से ही वैकल्पिक गर्भगृह में स्थापित हैं। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद से ही मंदिर निर्माण का प्रयास शुरू हो गया। यदि पूरी तीव्रता न बरती जाती तो मंदिर निर्माण में दसियों साल लग जाता। जबकि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट श्रेष्ठतम-भव्यतम के साथ निर्धारित समय सीमा में तैयार राम मंदिर का पक्षधर था। इस दिशा में हमने विशेषज्ञों की सहायता से सटीक कार्य योजना बनाई और आज उसी का परिणाम है कि 35 माह में भूतल के साथ मंदिर का भव्य-दिव्य गर्भगृह तैयार है। अब हम रामलला को भव्य-दिव्य गर्भगृह में स्थापित करने की जगह दो और तल के निर्माण की प्रतीक्षा करें, यह आग्रह तो अन्यायपूर्ण है। अन्य मंदिरों के भी उदाहरण हैं, जहां विग्रह स्थापना के बाद भी निर्माण चलते रहते हैं।

प्रश्न- प्राण प्रतिष्ठा की टाइमिंग (Ayodhya Pran Pratistha Timing) को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। विपक्ष की शिकायत है कि प्राण प्रतिष्ठा की तारीख लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी पार्टी को लाभ पहुंचाने के लिए तय की गई?

उत्तर - रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट स्वतंत्र-संप्रभु निकाय है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों ने एक मत से राम मंदिर के पक्ष में निर्णय देने के साथ मंदिर के निर्माण और प्रबंधन के लिए ट्रस्ट के गठन का आदेश दिया। इस पर किसी राजनीतिक दबाव का असर नहीं है। प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त और उसकी तिथि प्रकांड आचार्यों ने शास्त्रों के अनुसार तय की। ट्रस्ट के सदस्यों ने आम सहमति से रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने का निर्णय किया। इस सबके बीच राजनीति आने की बात समझ से परे है। सच्चाई यह है कि राजनीति विपक्ष कर रहा है। उसकी रुचि प्रधानमंत्री की हर बात का विरोध करने में है। अब वह रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा में आ रहे हैं तो भी विपक्ष को अपच हो रहा है।

प्रश्न - कांग्रेस नेता सोनिया गांधी एवं अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण अस्वीकार कर दिया। इससे तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट कितना आहत हुआ?

उत्तर - उन्हें आमंत्रित कर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने स्पष्ट कर दिया कि उसके लिए सभी समान हैं और राजनीति कोई विषय नहीं है, किंतु सोनिया, खरगे ने आमंत्रण अस्वीकार कर बता दिया कि उनके लिए रामलला नहीं राजनीति सर्वोपरि है। उनके इस निर्णय से हम पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। इस रुख की कीमत स्वयं कांग्रेस को चुकानी पड़ेगी। वह निरंतर गर्त में जाने के भी बाद भी सुधरने को तैयार नहीं है और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण अस्वीकार करना, उसके लिए आत्मघाती साबित होगा।

प्रश्न - नवनिर्मित राम मंदिर को भव्यता के उदाहरण के रूप प्रस्तुत किया जा रहा है। आपकी दृष्टि में यह कितना भव्य है?

उत्तर - वैसे तो किसी मंदिर की भव्यता उसके प्रति आस्था में निहित है और इस दृष्टि से राम मंदिर विश्व के कुछ शीर्ष केंद्रों में से एक के रूप में स्थापित हो रहा है। यद्यपि स्थापत्य की दृष्टि से भी यह मंदिर भव्य-विशाल और नयनाभिराम है। यह विशिष्टता चार चांद लगाने वाली है।

प्रश्न - मंदिर निर्माण के रूप में असंभव सा लक्ष्य संभव हुआ है। इसके पीछे सर्वाधिक प्रेरक तत्व क्या था?

उत्तर - भले ही यह असंभव कोर्ट के निर्णय से संभव हुआ, किंतु इसके प्रेरक के रूप में बलिदानी रामभक्तों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। बहुत-सी शख्सियतें भी मंदिर आंदोलन के फलक पर प्रकाश स्तंभ की तरह रही हैं, वह भविष्य में भी मार्गदर्शन करती रहेंगी।

प्रश्न - नवनिर्मित मंदिर के माध्यम से तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट क्या संदेश देना चाहेगा?

उत्तर - जो भी यहां आएगा, वह स्वत: अभिभूत होगा। श्रीराम स्वयं में ही संदेश हैं, जिसमें श्रेष्ठतम मानवता निहित है और यही संदेश लेकर लोग लौटेंगे भी।

प्रश्न - पुरी के शंकराचार्य ने कहा है कि प्रधानमंत्री मूर्ति स्थापित करेंगे और हम बाहर बैठेंगे, तालियां बजाएंगे। इस आपत्ति पर आपका क्या कहना है?

उत्तर - बिमलेंद्र मोहन मिश्र (Bimlendra Mohan Mishra) ने कहा कि शंकराचार्य पर मैं कुछ भी नहीं बोलना चाहता।

प्रश्न - रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के बाद काशी विश्वनाथ और कृष्णजन्मभूमि की मुक्ति के बारे में क्या सोचते हैं?

उत्तर - रामजन्मभूमि की तरह काशी विश्वनाथ और कृष्णजन्मभूमि पर मस्जिद का दावा महज जिद है, उन्हें छोटे भाई की तरह व्यवहार करना चाहिए।

प्रश्न - राम मंदिर के साथ हिंदुत्व और रामराज्य की स्थापना पर भी विमर्श छिड़ा हुआ है। इस बारे में आपके क्या विचार हैं?

उत्तर - मैं दर्शन और राजनीति का आदमी नहीं हूं। इसलिए हिंदुत्व के बारे में स्वयं को प्रामाणिक तौर पर कुछ कहने का अधिकारी नहीं मानता, किंतु रामराज्य पर अवश्य कहूंगा। रामराज्य की अवधारणा होश संभालने के साथ हमारी रगों और हमारे संस्कारों में प्रवाहित रही है। रामराज्य की अवधारणा जितनी राजनीतिक है, उससे भी कहीं अधिक सामाजिक, आध्यात्मिक और श्रीराम की तरह जन-जन के अति निकट है। वह श्रीराम की तरह उदात्त मूल्यों, शील, सौंदर्य, करुणा, कर्मशीलता की परिचायक है। रामराज्य का संदर्भ कहीं भी हो, उसे स्वीकृत-शिरोधार्य और प्रतिष्ठित किया ही जाना चाहिए। रामराज्य का आशय कि जीवन निर्ग्रंथ हो गया। अब कोई कुंठा, दुर्विचार, दुराग्रह की जगह नहीं बची। मनुष्यता पूरी दिव्यता से आलोकित हो उठी। व्यष्टि से लेकर समष्टि में रामत्व का ऐसा प्रभाव व्याप्त होने के बाद की जो व्यवस्था है, वह रामराज्य है। ...तो राम मंदिर निर्माण और उसमें रामलला के विग्रह की स्थापना के बाद रामराज्य की दिशा में बढ़ना सहज-स्वाभाविक परिणति है। हमें इस दिशा में बढ़ना ही चाहिए। यही राम मंदिर और रामोपासना की सार्थकता है। मैं चाहूंगा कि राम मंदिर निर्माण के बाद बहानेबाजी न हो, लोग रामराज्य के लिए स्वयं को तैयार करें।

प्रश्न - देश राम मंदिर और रामराज्य में निमग्न है। उस पंथ-परंपरा के लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे, जो राम से नहीं जुड़े हैं?

उत्तर - यह संभावना और महोत्सव किसी को पृथक करने का नहीं, अपितु लोगों को एक सूत्र में पिरोने वाला है। इसके पीछे की भावना रामराज्य की यही भावना है, सब नर करहिं परस्पर प्रीती चलहिं/ स्वधर्म निरत श्रुति नीती। (Bimlendra Mohan Mishra on Ayodhya Ram Mandir Pran Prastishtha)

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