Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

एक सूत भी टेढ़ा तो दोबारा बनाते हैं यज्ञकुंड, प्राण प्रतिष्ठा के लिए काशी से आए विशेषज्ञ तैयार कर रहे हैं ऐसे नौ वेदी

काशी से इस निमित्त रामनगरी आए यज्ञकुंड विशेषज्ञ गजानन जोतकर मंदिर परिसर के द्वार पर किसी की प्रतीक्षा में थे। कहते हैं-बड़ा जटिल कार्य है यज्ञकुंड निर्माण। आकार और माप का विशेष ध्यान रखना होता है। कठिन परिश्रम के बाद यदि कुंड अपने मानकों पर खरा न उतरा तो वह किसी काम का नहीं रहता। तोड़ना ही एकमेव विकल्प होता है।

By Pawan Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Tue, 09 Jan 2024 09:14 PM (IST)
Hero Image
तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।

 पवन तिवारी, अयोध्या। यज्ञ के शास्त्रीय और वैदिक विधान हैं तो कुंड निर्माण भी कोई सहज कार्य नहीं। इसका अपना अलग अभियंत्रण है। एक सूत भी टेढ़ा हुआ तो सारा श्रम व्यर्थ। तोड़कर उसे पुन: उसी परिमाण में निर्मित करते हैं। तभी तो प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व निर्विघ्न पूजन-यज्ञ संपन्न हो सकेंगे।

काशी से इस निमित्त रामनगरी आए यज्ञकुंड विशेषज्ञ गजानन जोतकर मंदिर परिसर के द्वार पर किसी की प्रतीक्षा में थे। कहते हैं-बड़ा जटिल कार्य है यज्ञकुंड निर्माण। आकार और माप का विशेष ध्यान रखना होता है। कठिन परिश्रम के बाद यदि कुंड अपने मानकों पर खरा न उतरा तो वह किसी काम का नहीं रहता। तोड़ना ही एकमेव विकल्प होता है।

जोतकर बताते हैं कि कुल नौ यज्ञकुंड बन रहे हैं। इनके आकार अलग-अलग हैं। योनि, पद्म, त्रिकोण, अर्द्धचंद्र, चतुष्कोणीय, अर्धवृत्त, वृत्त और षट्कोण। यह सभी आठ दिशाओं के लिए हैं। एक कुंड आचार्य के लिए है।