Ayodhya: अयोध्या व काशी के चिर संबंधों को नई धार, मुहूर्त शोधन से लेकर प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान करा रहे काशी के विद्वान
Ram Mandir नवनिर्मित मंदिर में 22 जनवरी को रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त शोधन काशी के ही विद्वान गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने किया। मुहूर्त शोधन के बाद प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान का भी संयोजन काशी के ही विद्वान लक्ष्मीकांत दीक्षित कर रहे हैं। प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान में उनके साथ पूरे देश के 130 विद्वान शामिल हो रहे हैं किंतु इनमें से आधे काशी के ही होंगे।
रमाशरण अवस्थी, अयोध्या। Ram Mandir Pran Pratishtha: अयोध्या और काशी का संबंध प्रगाढ़ एवं चिर पुरातन रहा है। इसके मूल में दोनों नगरियों के नियामक श्रीराम एवं भगवान शिव रहे हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीराम शिव की और शिव श्रीराम के उपासक हैं। यह अभिन्नता-अनन्यता रामलला के अर्चावतार की बेला में भी प्रतिपादित हो रही है।
नवनिर्मित मंदिर में 22 जनवरी को रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त शोधन काशी के ही विद्वान गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने किया। मुहूर्त शोधन के बाद प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान का भी संयोजन काशी के ही विद्वान लक्ष्मीकांत दीक्षित कर रहे हैं। प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान में उनके साथ पूरे देश के 130 विद्वान शामिल हो रहे हैं, किंतु इनमें से आधे काशी के ही होंगे।
प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान का संयोग अयोध्या और काशी की विरासत
लक्ष्मीकांत दीक्षित के पुत्र एवं प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान में आचार्यत्व कर रहे अरुण दीक्षित भी प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के संयोग को अयोध्या और काशी की विरासत के अनुरूप करार देते हैं। शिव और राम की आत्मीयता के संदर्भ में वह आनंद रामायण के विवरण को उद्धृत करते हैं।इसमें बताया गया है कि एक बार श्रीराम पत्नी सीता एवं भ्राता लक्ष्मण के साथ मणिकर्णिका तीर्थ में स्नान करने गए और वहां से काशी विश्वनाथ की ओर बढ़े, किंतु श्रीराम जैसे आत्मीय को आते देख बाबा धैर्य नहीं धारण रख सके और अपने स्थान से दौड़ कर उस स्थान तक पहुंचे जहां से श्रीराम गुजर रहे थे और सम्मुख पहुंचते ही भोले ने श्रीराम को गले से लगा लिया।
अरुण दीक्षित का रामलला से पुराना सरोकार
अरुण दीक्षित का स्वयं भी रामलला से पुराना सरोकार है। वह 1992 में काशी के सुप्रसिद्ध विद्वान विश्वनाथ वामनदेव के साथ फरवरी 1992 में रामजन्मभूमि के निकट गणेश यज्ञ करा चुके हैं। पांच अगस्त 2020 को भूमिपूजन के अनुष्ठान में भी अरुण दीक्षित शामिल थे।उपासना परंपरा से जुड़े सवाल पर दीक्षित स्वयं को शैव बताते हुए प्रति प्रश्न करते हैं, सबसे बड़ा वैष्णव कौन था और उत्तर में शिव का नाम पाकर मुदित हो उठते हैं।
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