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KK Nayar IAS: कौन थे केके नायर? रामलला की मूर्ति के लिए नेहरू से लिया था पंगा; राम मंदिर से रहा गहरा नाता

IAS KK Nayar फैजाबाद में जिलाधिकारी का चार्ज ग्रहण करते ही नायर का ध्यान रामजन्मभूमि की ओर था। उन जैसा प्रशासक स्वाभाविक रूप से एक ऐसे विषय को फालो कर रहा था जो लंबे समय से संवेदनशील एवं एक धर्म-संस्कृति की अस्मिता का परिचायक था। रामजन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद का संघर्ष 1934 में ही निर्णायक मोड़ से होकर गुजरा था।

By Jagran News Edited By: riya.pandey Updated: Mon, 08 Jan 2024 04:10 PM (IST)
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ऐसा आइएएस अधिकारी जिसने लिया था नेहरू से पंगा
रमाशरण अवस्थी, अयोध्या।  KK Nayar Profile / Shri Ram Mandir Inauguration Ayodhya: केके नायर (KK Nayar) थे तो 1926 बैच के आइसीएस अधिकारी, लेकिन वह रामलला के प्राकट्य की पटकथा के पूरक के रूप में अविस्मरणीय हैं। वह मूल रूप से केरल के रहने वाले थे और काफी पढ़े-लिखे थे। मद्रास यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षित नायर बेहद प्रतिभाशाली थे। वह अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे।

केके नायर (KK Nayar) को फैजाबाद का जिलाधिकारी बने छह माह से कुछ अधिक ही हुआ था। यद्यपि वह तब तक अयोध्या का इतिहास-भूगोल समझ चुके थे। उन्हें दो वर्ष पूर्व मिली स्वतंत्रता और उसके बाद की अल्पवयस्क व्यवस्थापिका का भी बोध था। 

फैजाबाद में जिलाधिकारी का चार्ज ग्रहण करते ही नायर का ध्यान रामजन्मभूमि की ओर था। उन जैसा प्रशासक स्वाभाविक रूप से एक ऐसे विषय को फालो कर रहा था, जो लंबे समय से संवेदनशील एवं एक धर्म-संस्कृति की अस्मिता का परिचायक था।

रामजन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद का संघर्ष 1934 में ही निर्णायक मोड़ से होकर गुजरा था। तब विवादित भवन पर कब्जा जमाए रखने के लिए दोनों पक्षों में रक्तरंजित संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में राम भक्त उस ढांचे को क्षति पहुंचाने में सफल रहे, जिसे 1528 में मंदिर की आधारभूमि पर विवादित ढांचे का स्वरूप प्रदान किया गया था। 

रामलला के प्राकट्य प्रसंग में प्रमुख भूमिका निभाने वालों में शामिल

इस मामले में तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासन ने कई साधारण राम भक्तों से लेकर संतों-महंतों को आरोपित बना रखा था। इस कांड से वह रामचंद्रदास परमहंस भी संबद्ध थे, जो 22-23 दिसंबर 1949 की रात रामजन्मभूमि पर रामलला के प्राकट्य प्रसंग में प्रमुख भूमिका निभाने वालों में शामिल रहे। 

तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर एवं हिंदू महासभा के शीर्ष नेता महंत दिग्विजयनाथ, हनुमानगढ़ी से जुड़े प्रखर-प्रभावी महंत अभिरामदास सहित आसपास की रियासतों के राजा भी इस अवसर पर केंद्रीय भूमिका में रहे। इन सबका अपना आभामंडल था। वह प्रभाव, पद और आर्थिक रूप से भी संपन्न थे और सबसे बढ़ कर लोगों में उनकी व्यापक स्वीकार्यता थी। उनकी यह ऊर्जा रामलला के प्राकट्य के बाद प्रभावी साबित हुई। 

केके नायर पर मूर्ति हटवाए जाने का दबाव

केंद्र की तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू की सरकार एवं प्रदेश की गोविंदवल्लभ पंत की सरकार मूर्ति प्राकट्य के बाद ही सक्रिय हुई और जिलाधिकारी केके नायर पर मूर्ति हटवाए जाने का दबाव बढ़ने लगा। प्रधानमंत्री नेहरू ने राज्य सरकार को जांच कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था।

मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने केके नायर को वहां जाकर पूछताछ करने का निर्देश दिया। नायर ने अपने अधीनस्थ तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह को जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा। 

उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू अयोध्या को भगवान राम (रामलला) के जन्मस्थान के रूप में पूजते हैं, लेकिन मुसलमान वहां दावा कर समस्याएं पैदा कर रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि वहां एक बड़ा मंदिर बनाया जाना चाहिए। उनकी रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को इसके लिए जमीन आवंटित करनी चाहिए और मुसलमानों के उस क्षेत्र में जाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

मुसलमानों को मंदिर के 500 मीटर दायरे में जाने से रोक का आदेश

उस रिपोर्ट के आधार पर नायर ने मुसलमानों को मंदिर के पांच सौ मीटर के दायरे में जाने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। दूसरी ओर उन्होंने एक और आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि प्रतिदिन शिशु राम की पूजा की जानी चाहिए।

आदेश में यह भी कहा गया कि सरकार को पूजा का खर्च और पूजा कराने वाले पुजारी का वेतन वहन करना चाहिए। इस आदेश से घबराकर नेहरू ने तुरंत नायर को नौकरी से हटाने का आदेश दे दिया। बर्खास्त किए जाने पर नायर इलाहाबाद अदालत में गए और स्वयं नेहरू के विरुद्ध सफलतापूर्वक बहस की।

1952 में सेवा से दिया त्यागपत्र

कोर्ट ने आदेश दिया कि नायर को बहाल किया जाए और उसी स्थान पर काम करने दिया जाए। नायर की भूमिका से प्रमुदित अयोध्या के लोगों ने उनसे चुनाव लड़ने का आग्रह किया। नायर ने बताया कि एक सरकारी कर्मचारी होने के नाते वह चुनाव में खड़े नहीं हो सकते। 1952 में उन्होंने सेवा से त्यागपत्र दे दिया।

वर्ष 1962 में जब लोकसभा के चुनावों की घोषणा हुई, तो लोग नायर और उनकी पत्नी को चुनाव लड़ने के लिए मनाने में सफल रहे। नायर बहराइच और उनकी पत्नी कैसरगंज से सांसद चुनी गईं। शकुंतला नायर बाद में दो बार और सांसद बनीं। नायर ने सात सितंबर 1977 को अपने गृह नगर में अंतिम सांस ली।

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21 साल की उम्र में बने बैरिस्टर

केके नायर (KK Nayar) का पूरा नाम कंडांगलम करुणाकरण नायर था। उनका जन्म सात सितंबर 1907 को केरल के अलाप्पुझा के गुटनकाडु नामक गांव में हुआ था। देश की स्वतंत्रता से पूर्व वह इंग्लैंड गए और 21 साल की उम्र में बैरिस्टर बन गए और घर लौटने से पहले आइसीएस परीक्षा में सफल हुए।

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