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Ram Navami: रामलला के साथ आस्था के आह्लाद, रामनगरी के हजारों मंदिरों में छलका राम जन्मोत्सव का उल्लास

श्रीराम का सौंदर्य अप्रतिम है। इसी भावना के अनुरूप जन्मोत्सव के अवसर पर रामलला को शास्त्रीय विधि-विधान से सज्जित किया गया। दूध दही घी शहद और शक्कर के समंत्र स्नान के उपरांत शुद्ध जल गंधोदक आदि से रामलला को विधिवत स्नान कराया गया। अंग प्रोक्षण और सुगंधित द्रव्य के लेपन के बाद अधोवस्त्र धारण कराया गया। फिर ऊपर के अंगवस्त्र उपवस्त्र धारण कराए गये।

By Raghuvar Sharan Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 18 Apr 2024 09:36 AM (IST)
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रामलला दर्शन मार्ग पर जयश्रीराम का उद्घोष कर दर्शन करने जाते श्रद्धालु l जागरण
संवादसूत्र, जागरण, अयोध्या। श्रीराम जन्मोत्सव पर जन्मभूमि पर बने भव्य, नव्य और दिव्य मंदिर में प्राकट्य आरती पूरी होते-होते रामलला के प्राकट्य का बोध गर्भगृह से लेकर करोड़ों भक्तों के हृदय तक व्याप्त होता प्रतीत हुआ।

आरती के बाद अर्चकों ने जब भए प्रकट कृपाला दीनदयाला... की स्तुति आरंभ की, तब वह अकेले नहीं थे, बल्कि उनके साथ संपूर्ण मंडप और संपूर्ण विश्व में करोड़ों भक्तों की आस्था और उनके समर्पण का स्वर भी समवेत था।

इस अवसर पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास, ट्रस्ट के महासचिव चंपतराय, सदस्य डा.अनिल मिश्र, हनुमानगढ़ी के महंत धर्मदास, मंदिर निर्माण के प्रभारी गोपाल सहित सूर्य रश्मियों का प्रवाह रामलला के ललाट तक पहुंचना सुनिश्चित कराने वाले सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट एवं आइआइटी रुड़की तथा बेंगलुरु के वैज्ञानिक आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

रामजन्मभूमि पर निर्मित भव्य मंदिर के साथ रामनगरी के अन्य हजारों मंदिर भी राम जन्मोत्सव के वाहक रहे। कनकभवन, दशरथमहल, मणिरामदास जी की छावनी, रामवल्लभाकुंज, लक्ष्मणकिला, जानकीघाट, हरिधाम, अशर्फीभवन, जानकी महल सहित अन्यान्य मंदिरों में भी पूरे विधि-विधान से श्रीराम जन्मोत्सव मनाया गया।

हरिधाम में प्राकट्य आरती के बाद भक्तों को संबोधित करते हुए जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने कहा कि हमारे जीवन के केंद्र में जो सत्ता है, वे श्रीराम ही हैं।

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रामनवमी पर श्रीराम का पितृ पुरुष से सरोकार नए सिरे से हुआ परिभाषित

श्रीराम का सूर्य देव से गहन संबंध है, वह उसी वंश के हैं जिसका प्रवर्तन सूर्य देव ने किया था। बुधवार को जन्मोत्सव के अवसर पर श्रीराम का अपने पितृ पुरुष से सरोकार नए सिरे से परिभाषित हुआ, जब दृश्यमान देवता दिवाकर की किरणें मध्याह्न रामलला के ललाट पर सुशोभित हुईं। टकटकी लगाए लाखों नयन प्रसन्नता से छलक उठे। रोम-रोम पुलकित हो उठा।

करोड़ों राम भक्तों की आंखें इस अद्भुत, अलौकिक और अविस्मरणीय पल को सहेजने में लगी थीं। पहले माना जा रहा था कि मंदिर के तीनों तलों का निर्माण होने के बाद ही रामलला का सूर्य तिलक संभव होगा, किंतु नेशनल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के अभियंताओं के प्रयास से ‘शुभस्य शीघ्रम’ की भावना फलीभूत हुई और भूतल में विराजे रामलला का सूर्य तिलक बुधवार को ही संभव हुआ।

इस दृश्य को देखकर श्रद्धालु बच्चों की तरह किलक उठे। बाल, वृद्ध, नारी सब एक ही भाव में थे। वैसे प्रातः मंगला आरती से ही उत्सव का वातावरण था। रामलला को मंगल स्नान करा कर विशेष रूप से तैयार किए गए नए उत्सव वस्त्र धारण कराए गए।

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रामलला को छप्पन भोग लगाया गया। इन पकवानों को कारसेवकपुरम में ही शुद्धता के साथ तैयार कराया गया था। बाहर आते श्रद्धालुओं को धनिया की पंजीरी समेत अन्य प्रसाद भेंट किया गया।

सीबीआरआइ का अमूल्य योगदान

सूर्य तिलक को तैयार करने में रुड़की के केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआइ) के वैज्ञानियों का अमूल्य योगदान दिया। सीबीआरआइ के निदेशक प्रोफेसर आर. प्रदीप कुमार के अनुसार इसमें 10 से 12 लोगों की टीम लगी थी, जिनकी मेहनत रंग लाई।

आस्था संग सेवा सत्कार का संकीर्तन

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद नव्य मंदिर में उनका पहला जन्मोत्सव पूरी भव्यता के साथ मना। लाखों भक्त साक्षी बने। आराध्य का आशीर्वाद लिया। इस दौरान नगरी की शोभा निराली दिखी। रेड कार्पेट से सज्जित रामपथ पर नंगे पांव चल कर भक्त रामलला का दर्शन करते रहे। कार्पेट भक्तों के पांवों को धूप की तपिश से बचाने के लिए पथों पर बिछाई गयी थी।

वहीं आस्था के साथ जगह-जगह सेवा सत्कार का संकीर्तन होता दिखा। आरएसएस के हाथ में सेवा सत्कार की कमान थी। श्रद्धाभाव से गणवेशधारी स्वयंसेवक भक्तों की आवभगत करते दिखे। नगर के लगभग 50 से अधिक स्थानों पर शिविर लगे। तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट, भारतीय जनता पार्टी के जनप्रतिनिधि, महिला मोर्चा की पदाधिकारियों के संयोजन में भक्तों का स्वागत किया जाता रहा। फल वितरित किए गए।

तुलसी उद्यान के निकट लगे कैंप में स्वयंसेवक रोहित पांडेय तो श्रृंगारहाट में कृषि विवि के शिक्षक डा. आलोक सिंह भक्तों को गिलास में पानी व लड्डू देते रहे। दोनों ने कहा कि ये हमारे लिए पूर्वजन्म के पुण्यों के उदय के समान है। रामजन्मभूमि पथ पर ट्रस्ट के कर्मचारी भक्तों से जल ग्रहण करने का आग्रह करते रहे।

विवेकानंद नगर के संयोजन में कोतवाली के सामने सेवा शिविर लगा। यहां पर नगर कार्यवाह प्रेम प्रकाश, नगर सह कार्यवाह सुनील कुमार, बस्ती प्रमुख और समन्वयक राजीव शुक्ला, प्रचार प्रमुख शोमू मुखर्जी, राकेश वाधवानी, राजीव जैन, पारिजात सिंह, सुबोध त्रिपाठी रहे। इसी तरह प्रत्येक कैंप में बस्ती से लेकर उच्च स्तर के संघ के पदाधिकारी रहे। चिकित्सा शिविर भी सक्रिय रहे।

सेवानिवृत्त सैनिक भी सेवा में रहे तत्पर

अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद अयोध्याधाम के संयोजन में अमन चंद्रा रेस्टोरेंट के पास चिकित्सा शिविर एवं जल प्याऊ लगाया गया। दवाइयां, ओआरएस घोल वितरित किया गया। कैंप में आरएसएस के सह प्रांत प्रचारक संजय,संघ चालक प्रो. विक्रमा प्रसाद पांडेय, महानगर प्रचारक सुबंधु, लखनऊ उत्तर नगर के प्रचारक आलोक, उपेंद्रमणि त्रिपाठी, बृजेश सिंह, रंजीत सिंह, पूर्व सैनिक सेवा परिषद के जिलाध्यक्ष प्रकाश पाठक, सचिव कैप्टन कृष्णकुमार तिवारी, बीके द्विवेदी सूबेदार मेजर महेंद्र कुमार, सूबेदार कपिल देव सिंह, अनिल सिंह, बालेंदु भूषण मिश्रा, अनुकल्प मिश्रा, दिनेश पांडेय, सत्यप्रकाश पाठक, केके त्रिपाठी, सुरेंद्र प्रताप दुबे प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

रत्नजड़ित स्वर्णाभूषणों से अलंकृत हुए रामलला

श्रीराम का सौंदर्य अप्रतिम है। इसी भावना के अनुरूप जन्मोत्सव के अवसर पर रामलला को शास्त्रीय विधि-विधान से सज्जित किया गया। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर के समंत्र स्नान के उपरांत, शुद्ध जल, गंधोदक आदि से रामलला को विधिवत स्नान कराया गया। अंग प्रोक्षण और सुगंधित द्रव्य के लेपन के बाद अधोवस्त्र धारण कराया गया। फिर ऊपर के अंगवस्त्र, उपवस्त्र धारण कराए गये।

सोने का रत्न जड़ित कमरबंद, कंठा, बाजूबंद, कड़ा, अंगूठी, पाजेब, मकर, कुंडल, मुकुट, हार, बैजयंती, तिलक, तुलसी की माला, फूलों की माला, और धनुष -बाण से अलंकृत किया गया। माला, फूल, इत्र, फुलेल, चंदन आदि से सर्वांग भूषित भगवान को दर्पण दिखाकर फिर भोग निवेदित किया गया।

बाल रूप श्रीराम के राजोपचार निवेदन के क्रम में चांदी के रथ, हाथी-घोड़े और ऊंट आदि उनके सम्मुख निवेदित किए गए। अनुष्ठान में शामिल रहे हनुमतनिवास के महंत आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण के अनुसार श्रीराम जैसा सहज सौंदर्य पाकर श्रृंगार स्वयं धन्य हो जाता है।

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