Ram Mandir: संघर्षों के महानायक प्रभु श्रीराम... सनातन और भारत के शौर्य का विराट प्रदर्शन है राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा
Ram Mandir अवधपुरी में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा सही अर्थों में भारतीय अस्मिता और गौरव का सुअवसर है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम वर्तमान परिवेश में भारतीय स्वाभिमान और विजय के प्रतीक बनकर प्रतिष्ठापित हो रहे हैं। वर्तमान परिवेश में राम की प्रासंगिकता कहीं अधिक दिखती है। वैश्विक पटल पर भारत की पहचान विश्वगुरु की तरह पुनर्स्थापित करने में राम का प्रभुत्व आकर्षण का जरिया बन सकता है।
Ayodhya Ram Mandir: अवधपुरी में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा सही अर्थों में भारतीय अस्मिता और गौरव का सुअवसर है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम वर्तमान परिवेश में भारतीय स्वाभिमान और विजय के प्रतीक बनकर प्रतिष्ठापित हो रहे हैं। वर्तमान परिवेश में राम की प्रासंगिकता कहीं अधिक दिखती है।
संघर्षों से निकलकर ही महानायक बने भगवान राम
वैश्विक पटल पर भारत की पहचान विश्वगुरु की तरह पुनर्स्थापित करने में राम का प्रभुत्व आकर्षण का जरिया बन सकता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि भारतीय जन जन के रोम रोम में बसे राम का पुरुषार्थ उनकी संघर्षशीलता में है, न कि उनके देवत्व में। मानव से महामानव बने राम संघर्षों से निकलकर ही महानायक बने। इस महानायक का चरित्र असाधारण, अनुपम, अद्भुत और अनुकरणीय है, इसलिए ही वह हमारे आदर्श बने हैं।
राम के संघर्षों से जनता को मिलता है शक्ति और साहस
राम के रूप में भारत का मूल्य समस्त विश्व के समक्ष ऐसे अजेय योद्धा का स्थापित होता है जो असाधारण और अनुपम है। यही विलक्षणता राम को जनप्रिय और जन-जन सुखदाई बनाती है। राम के संघर्षों से साधारण जनता को शक्ति और साहस मिलता है। कभी न हारने वाले राम हजारों विपत्तियों से जूझते हैं। लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा होता है, पत्नी जानकी शत्रुओं के कब्जे में है, तब राम बिलखते हुए भी सुदृढ़ होकर शत्रुओं से संघर्ष के लिए कठोर बनकर खड़े होते हैं।सनातन और भारत के शौर्य का विराट प्रदर्शन है प्राण प्रतिष्ठा
राम आज के परिप्रेक्ष्य में हमारा लक्ष्य और उसकी प्राप्ति के संकल्पों की ऊर्जा बने हैं। तभी अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा करोड़ों भारतीयों को उल्लसित करती है। यह सुअवसर सनातन और भारत के शौर्य का विराट प्रर्दशन भी है। इसलिए भी राम हमारे लिए सहज और ग्राह्य हैं कि उनका जीवन बाल्यकाल से ही संघर्षमय रहा है। गुरु विश्वामित्र से राम और अनुज लक्ष्मण ने वीरोचित शिक्षा ग्रहण की और राक्षसी वृत्तियों का संहार किया। राम जब बड़े होते हैं, तब उनका पराक्रम और पुरुषार्थ उन्हें परम संघर्षों के लिए प्रेरित करता है।देश के लिए उत्सव बना राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा
राम से शत्रुता का संताप महारथी और प्रकांड विद्वान रावण को भी है। यह तभी संभव होता है जब सीताहरण से विचलित, किंतु संशय से निकलकर संघर्षशील पराक्रमी राम समाधान तक रणकौशल से पहुंच पाते हैं। क्षत विक्षत जटायु के समक्ष राम दयालु और करुणा के सागर बनकर उपस्थित हुए और यहीं से उन्होंने युद्ध कर विजय और जनक सुता की सफल वापसी का संकल्प लिया। राम की इसी संघर्ष गाथा को भारतीय जनजीवन स्वयं के भीतर अवतरित होते देखता है और इसीलिए अयोध्या में राम के बाद रूप की प्रतिष्ठापना जनमानस के लिए उत्सव की तरह बन चुकी है। राम की यही छवि शक्तिवर्धक है।
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