Ram Mandir : श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए लगभग 32 वर्ष पूर्व तराशे गए पत्थरों में लग गई काई, अब हो रही इस तरह सफाई
वर्षा व अन्य कारणों से काई लग गई है। वह कहते हैं कुछ पत्थरों में तराशे गए स्थान पर मिट्टी भर गई है इससे उन्हें फिर साफ किया जा रहा है। अधिकतर काम कारीगर कर रहे हैं कुछ मशीन से किया जा रहा है। अशोक बताते हैं उनके अलावा लगभग दो दर्जन कर्मी काम कर रहे हैं। साथ ही 25 स्थानीय महिला कर्मियों को भी लगाया गया है।
लवलेश कुमार मिश्र, अयोध्या। नागर शैली में बन रहे राममंदिर में लगाने के लिए कारसेवकपुरम स्थित श्रीराम जन्मभूमि कार्यशाला में रखे गए बादामी रंग के बलुआ पत्थरों की चमक मध्यम पड़ गई है। लगभग 32 वर्ष पूर्व तराशी होने से इनमें काई लग गई है। ये काफी गंदे हो गए हैं।
इस कारण इनकी दोबारा साफ-सफाई कराई जा रही, जिससे वह चमक उठें और इन्हें मंदिर निर्माण में प्रयुक्त किया जा सके। कुछ पत्थरों की दोबारा तराशी भी हो रही है। इस कार्य में राजस्थान के लगभग दो दर्जन कारीगर और इतने ही महिला-पुरुष कर्मी जुटे हैं।
पुराने पत्थरों की हो रही सफाई
जन्मभूमि पर प्रभु श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए वर्ष 1992 से ही बादामी रंग के बलुआ पत्थरों की तराशी मंदिर कार्यशाला में शुरू हो गई थी। राममंदिर के शिल्पकार अन्नूभाई सोमपुरा के निर्देशन में राजस्थान के कारीगर पत्थर तराश रहे थे। यद्यपि मंदिर निर्माण का सपना लंबी प्रतीक्षा के बाद साकार हुआ, परंतु तराशी अनवरत चलती रही।तृतीय तल निर्माणाधीन, वहीं लगेंगे पत्थर
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद जब निर्माण का कार्य द्रुत गति से शुरू हुआ तो सीधे राजस्थान के भरतपुर जिले के बंसी पहाड़पुर से तराशे गए बलुआ पत्थरों की आपूर्ति शुरू हो गई। इस क्रम में कार्यशाला में पहले से रखे गए सभी पत्थरों का उपयोग नहीं हो सका। अब जबकि तृतीय तल निर्माणाधीन है तो उसमें इन पत्थरों को लगाया जाना है।
कार्यशाला में पत्थरों की सफाई में जुटे डूंगरपुर के दिनेश्वर बताते हैं, तीसरे तल के लिए सीधे भरतपुर से भी पत्थर आ रहे हैं, लेकिन पहले से तराशकर रखे पत्थरों को उपयोग में लेने के लिए ट्रस्ट फिर सफाई करा रहा है। सफाई इसलिए हो रही, क्योंकि इनकी चमक मध्यम पड़ गई है।
वर्षा व अन्य कारणों से काई लग गई है। वह कहते हैं, कुछ पत्थरों में तराशे गए स्थान पर मिट्टी भर गई है, इससे उन्हें फिर साफ किया जा रहा है। अधिकतर काम कारीगर कर रहे हैं, कुछ मशीन से किया जा रहा है। डूंगरपुर के ही अशोक बताते हैं, उनके अलावा लगभग दो दर्जन कर्मी काम कर रहे हैं। साथ ही 25 स्थानीय महिला कर्मियों को भी लगाया गया है।
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