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प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी... मृदंग-नगाड़ों की थाप- मंत्रोच्चार और भजन के सुर पर झूमे अवधपुर वाले, सुध-बुध भूले लोग

अवधपुरी का माहौल ही कुछ अलग था- समारोह में जाने वालों के हाथों में लोग मालाएं दे दे रहे थे कि आपसे विनती है कि इसे वहां चढ़वा दीजिएगा। महिलाएं आंचल की गांठ से तुड़े-मुड़े रुपये निकाल रामलला के चरणों में चढ़ाने के लिए उन लोगों के हाथों में ठूसने की कोशिश कर रहीं थी जो गले में पहचान पात्र लटकाए पैदल ही समारोह स्थल पर जा रहे थे।

By Rajesh Kumar Srivastava Edited By: Deepti Mishra Updated: Tue, 23 Jan 2024 01:18 PM (IST)
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रामलला के विराजते ही जयकारों की गगनभेदी गूंजी।

राकेश पांडेय, अयोध्या। अवधपुरी में चतुर्दिक आनंद है, अवधपति के दुलारे पुरवासी शंख, तुतुही और शहनाई की तान के बीच ढोल, मृदंग, नगाड़ों की थाप पर जम कर नाच रहे हैं। सैंकड़ों वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त हो गई है और राम आ गए हैं। उड़ते हेलिकॉप्टरों ने अवधपुरी पर पुष्पवर्षा की। कहीं अबीर-गुलाल लुटाया जा रहा है तो कहीं राम के स्वागत में आतिशबाजी की जा रही है।

यज्ञ की समिधा से उठते धुंए और मंत्रोच्चारों के साथ ढोलक की थाप के साथ तान मिलाकर भजन गाते लोग, ऐसा प्रतीत होता है कि अवधवासी होली, दिवाली और रामनवमी से लेकर सभी त्यौहार आज ही मना लेंगें। 

प्रभु श्री राम के मंगलाचरण और स्तुति के साथ मंदिरों में गूंजती घंटे-घड़ियालों की सुमधुर ध्वनि एक अलग ही माहौल पैदा कर रही है।  अगर मीरा के शब्दों में कहा जाए तो पूरी अयोध्या राम के प्रेम में बावरी हो गई है। सब भूल चुके हैं कि राम वनवास पर थे, राम आ गए तो सारा विषाद अनंत हर्ष में परिवर्तित हो गया है।

अलौकिक बादलों ने प्रातः से ही अयोध्या पर पहरा बिठा रखा था, जैसे वे जानते हैं कि पृथ्वी तो राम के आगमन की ख़ुशी में सुधबुध भूली है, ऐसा न हो कि गगन से किसी निशाचर की नजर हमारे रामलला को लग जाए। प्राणप्रतिष्ठा के संस्कार के साथ-साथ के बादल अपनी ओट खोलते गए और फिर राजा रामचंद्र की जय के जयकारों के बीच से सूर्यनारायण ने अपनी किरणों से सभी देवताओं के आराध्य रामलला का अभिषेक किया।

'हर किसी से मिले श्रीराम'

आकाश में उनके चारों ओर फैली रश्मियां इस बात को बता रहीं थी देव-गंधर्व-किन्नर सभी अपने आराध्य पर फूल बरसा रहे हैं। रामलला तो मंदिर में प्रतिष्ठित हुए हैं, लेकिन अयोध्यावासियों का हर्षातिरेक देख कर ऐसा लग रहा है कि राम हर अयोध्यावासी से गले मिल रहे हैं।

तुलसी की कालजयी पंक्तियां धरा पर सचल विचरण करती दिख रही हैं कि श्रीराम ने असंख्य रूप धारण कर लिए हैं। हर किसी से मिल रहे हैं, "अमित रूप प्रगटे तेहि काला, जथाजोग मिले सबहि कृपाला।"

सुध-बुध भूल अवधपुरी वाले

अवधपुरी का माहौल ही कुछ अलग था, लोग आतुर थे कि कब प्राण प्रतिष्ठा हो और राम विराजें। समारोह में जाने वालों के हाथों में लोग मालाएं दे दे रहे थे कि आपसे विनती है कि इसे वहां चढ़वा दीजिएगा। महिलाएं आंचल की गांठ से तुड़े-मुड़े रुपये निकाल रामलला के चरणों में चढ़ाने के लिए उन लोगों के हाथों में ठूसने की कोशिश कर रहीं थी, जो गले में पहचान पात्र लटकाए पैदल ही समारोह स्थल पर जा रहे थे।

बस हर किसी को लग रहा था कि रामलला तक उसकी भेंट पहुंच जाए। प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही गूंजे गगनभेदी जयकारे और मंगलध्वनियों ने राम के आगमन का संदेश जन-जन तक पहुंचा दिया। 

राम नाम की गूंज से गुंजित अयोध्या की गलियों-सड़कों पर बच्चा-बच्चा दौड़ते हुए "राम आ गए, राम आ गए" की आवाज लगाते हुए राम के आगमन की भौतिक सूचना पहुंचाने लगा। घर-घर में होती पूजा और भजन में मगन लोगों का प्यार और उत्साह ही राम की निधि था।

राम को अवधपुरी से ज्‍यादा प्रिय कुछ नहीं था

राम के आगमन की प्रसन्नता में सब कुछ भूले इन्हीं वासियों पर तो राम भी न्यौछावर थे। इसी प्रेम को देखकर तो वो लक्ष्मण से कहते थे कि यद्यपि सब बैकुंठ की बड़ाई करते हैं, लेकिन ये किसी-किसी को ही पता है कि मुझे अवधपुरी सामान कोई नहीं प्रिय है। "अवधपुरी सम प्रिय नहीं कोउ, यह प्रसंग जानइ कोई कोई"

राम और अयोध्या समरस हो चले हैं, ये जानना असंभव है कि अयोध्या राम में समाहित हो गई है या फिर राम अयोध्या के जन-जन में मिल गए हैं। धरती से गगन तक, जल से अनल तक मनुज से खग-वृन्द तक बस एक ही धुनकी है, राम की, राम के नाम की, जन-जन के राम की, मेरे राम की। हनुमानगढ़ी के परिसर में राजस्थान से आए साधक एकतारे पर यह टेक लगाए मिले कि "पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो"।

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