Ram Mandir Pran Pratishtha: धरा धाम से आकाश तक चमक-दमक रहा श्रीरामनगरी का नयनाभिराम सौंदर्य, पुण्य की डुबकी लगा रहा लोक
भक्त भावविह्वल हैं क्योंकि भगवान की प्राण प्रतिष्ठा का अवसर है। भाव ऐसा है कि पुण्य सलिला सरयूजी की अथाह जलराशि की भांति संपूर्ण नगर में भक्ति की सरिता बह रही है। आस्था के इस प्रवाह के बीच कथा-प्रवचन के मंच से ज्ञान गंगा प्रवाहित हो रही हैं। दरस-परस सत्संग के संग कर्मयोग के रंग भी चटख हैं। अयोध्याजी भक्ति ज्ञान और कर्म की त्रिवेणी हो गई हैं।
आशुतोष मिश्र, अयोध्या। Ram Mandir Pran Pratishtha: भक्त भावविह्वल हैं, क्योंकि भगवान की प्राण प्रतिष्ठा का अवसर है। भाव ऐसा है कि पुण्य सलिला सरयूजी की अथाह जलराशि की भांति संपूर्ण नगर में भक्ति की सरिता बह रही है। आस्था के इस प्रवाह के बीच कथा-प्रवचन के मंच से ज्ञान गंगा प्रवाहित हो रही हैं। दरस-परस, सत्संग के संग कर्मयोग के रंग भी चटख हैं। अयोध्याजी भक्ति, ज्ञान और कर्म की त्रिवेणी हो गई हैं, जहां पुण्य की डुबकी लगाने के लिए लोक उमड़ आया है।
इसी दिव्य वैतरणी में तरने को नाथ नगरी बरेली से रिषभ पैदल चले आए हैं। लंबी यात्रा से मिले पांव के छाले रामपथ पर उन्हें लड़खड़ाने को विवश करते हैं, लेकिन रामनाम का बल सुस्ताने की जगह उन्हें चल रहने का साहस देता मिलता है। उन जैसे असंख्य लोग हैं, जो थकान, दुकान, मकान भूल जय श्रीराम जपते आराध्य की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का साक्षी बनने चले आए हैं। लोक के उद्घोष में रामनाम महामंत्र बन गूंज रहा है। श्रवण से भ्रमण तक हर माध्यम यहां रघुवरशरण का मार्ग खोल रहा है।
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यह वह मार्ग है, जहां लौकिक-अलौकिक सब राममय हो जाते हैं। पुण्य की इस अनुपम बेला में कोहरे की चादर काट भुवन भास्कर धरा धाम को प्रणाम करने उतरे हैं। मानों रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी में वह अंशदान करने के लए आए हैं। सूर्यदेव का साथ पाकर कई दिन बाद रामकाज में जुटे असंख्य श्रमसाधकों के कठुआते हाथ गर्माए हैं। नगर के हर डगर पर अब भव्य तोरणद्वार सज चुके हैं। गली-गली फूलों से गमक उठी है। इस तरह रामनगरी में प्रतीक्षा की अंतिम सांझ ढलने लगी है।
यह वह मार्ग है, जहां लौकिक-अलौकिक सब राममय हो जाते हैं। पुण्य की इस अनुपम बेला में कोहरे की चादर काट भुवन भास्कर धरा धाम को प्रणाम करने उतरे हैं। मानों रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी में वह अंशदान करने के लए आए हैं। सूर्यदेव का साथ पाकर कई दिन बाद रामकाज में जुटे असंख्य श्रमसाधकों के कठुआते हाथ गर्माए हैं। नगर के हर डगर पर अब भव्य तोरणद्वार सज चुके हैं। गली-गली फूलों से गमक उठी है। इस तरह रामनगरी में प्रतीक्षा की अंतिम सांझ ढलने लगी है।
रात्रि का संधिकाल है और रामनगरी जगमग से झिलमिलाई है। लग रहा है जैसे कि अबकी पूष में ही यहां दीवाली उतर आई है। राम पथ, भक्ति पथ धर्मपथ से लेकर रामजन्मभूमि पथ पर हर दिशा ने प्रकाश लुटाया है। राम की पैड़ी से लेकर सरयूजी तक जल में जैसे तारों संग समूचा नभ तल उतर आया है। लग रहा है कि सजल सरिता का जैसे स्वयं शेषनाग ने अपनी मणियों से शृंगार किया है। लक्ष्मण ने पूरे मनोयोग से अपने भ्राता की प्राण प्रतिष्ठा के लिए नगर को तैयार किया है। मात्र यही नहीं, दस दिसि से दिव्य प्रकाश कौंधता दिखता है, लगता है स्वयं विधाता ने दस दिग्पालों को इस धरा धाम को सजाने हेतु तैनात किया है।
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