राम मंदिर: किसी ने खोई आंख… ताे कोई हुआ अमर, कारसेवक अखंड प्रताप के कंधे में आज भी फंसी है गोली
घटना के साक्षी रहे प्रहलाद गुप्ता बताते हैं कि तब रुदौली तहसील बाराबंकी में थी। बाराबंकी के डीएम की अनुमति लेने के बाद ही उनका शव मिल पाया था। तीन दिन बाद जब शव शुजागंज पहुंचा तो पूरे इलाके में शोक की लहर छा गई। पक्का तालाब शिव मंदिर के बगल रामअचल की समाधि बनी है। वर्ष 2021 में विधायक रामचंद्र यादव ने बलिदानी रामअचल गुप्त की मूर्ति लगवाई।
जागरण संवाददाता, अयोध्या। रामअचल गुप्त, मंदिर आंदोलन का एक ऐसा नाम, जिसने मात्र 26 वर्ष की आयु में ही कारसेवा के दौरान अपने प्राणों की आहुति देकर अमरत्व प्राप्त कर लिया। उनकी तरह ही महाजनी टोला निवासी सुधीर नाग सिद्धू ने कारसेवा में अपनी आंख खो दी।
रुदौली तहसील के शुजागंज निवासी रामअचल गुप्त के साथ ही इस गांव का राम मंदिर आंदोलन से अटूट रिश्ता बन गया। कारसेवा के उत्साह का भान इसी से होता है कि मात्र 26 वर्ष के रामअचल गुप्ता दो दर्जन राम भक्तों के साथ 30 अक्टूबर 1990 को रामनगरी पहुंचे थे। दो नवंबर को वह पुलिस की गोली का शिकार हो गए।
इस घटना के साक्षी रहे नगर के प्रहलाद गुप्ता बताते हैं कि तब रुदौली तहसील बाराबंकी में थी। बाराबंकी के डीएम की अनुमति लेने के बाद ही उनका शव मिल पाया था। तीन दिन बाद जब शव शुजागंज पहुंचा तो पूरे इलाके में शोक की लहर छा गई। पक्का तालाब शिव मंदिर के बगल रामअचल की समाधि बनी है। वर्ष 2021 में विधायक रामचंद्र यादव ने बलिदानी रामअचल गुप्त की मूर्ति लगवाई।
गोली लगने से खराब हुई आंख
महाजनी टोला निवासी सुधीर नाग सिद्धू उस वक्त करीब 20 वर्ष के रहे होंगे, जब 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवा के दौरान उन्हें गोली लगी थी। वह हिंदू जागरण मंच के रिकाबगंज वार्ड के संयोजक थे।
संगठन का निर्देश आया कि कारसेवा करिए। वह साथियों संग अमावां मंदिर तक पहुंच गए। ‘जय श्री राम’ का नारा लगाते वह रामजन्मभूमि की ओर बढ़ने लगे। इसी बीच पुलिस ने फायरिंग कर दी। गोली उनके दाएं जबड़े में फंस गई।
साथियों ने उन्हें पहले श्रीराम चिकित्सालय पहुंचाया और उसके बाद जिला चिकित्सालय ले गए, जहां उपचार के बाद उन्होंने लखनऊ रेफर कर दिया गया। उनकी दाईं आंख की रोशनी लगभग समाप्त हो चुकी है।
अखंड के कंधे में आज भी फंसी है गोली
पूराबाजार के नारा गांव निवासी अखंड प्रताप सिंह भी उन लोगों में सम्मिलित हैं, जिन्हें पुलिस की गोली खानी पड़ी थी। अब 76 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन दो नवंबर 1990 को उनके कंधे में लगी गोली आज तक नहीं निकल सकी है। चिकित्सकों ने गोली निकालने पर उनके लकवाग्रस्त होने की आशंका व्यक्त की, जिसके बाद उनका उपचार तो हुआ, लेकिन गोली कंधे में आज भी फंसी हुई है।
अखंड प्रताप सिंह ने आठ घायल कारसेवकों को साथियों संग अस्पताल पहुंचाया था। इसके बाद वह अन्य कारसेवकों को अस्पताल पहुंचाने के लिए दोबारा लाल कोठी के निकट पहुंचे थे। पुलिस ने फिर से फायरिंग आरंभ कर दी और गोली उनके दाहिने कंधे में धंस गई।
साथी उन्हें श्रीराम अस्पताल ले गए, जहां से उन्हें मेडिकल कालेज लखनऊ रेफर कर दिया गया। अखंड प्रताप सिंह बाल्यावस्था से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे हैं। वह कहते हैं, यज्ञ रूपी मंदिर आंदोलन की पूर्णाहुति 22 जनवरी को होगी। इससे अच्छा दिन और कोई नहीं हो सकता।
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