Ram Mandir: राम मंदिर बना रहे मजदूरों ने कही दिल की बात, छेनी-हथौड़ी चलाने से पहले हर रोज करते हैं ये काम
Ram Mandir अयोध्या के भव्य राम मंदिर में प्रभु श्रीराम आज विराजमान होंगे। इस मंदिर को बनाने के लिए मीरजापुर के मजदूर भी कई दिनों से यहां जुटे हुए हैं। पीला हेलमेट और जाली वाली नारंगी हाफ सदरी पहने रमन से बात करने पर पता ही नहीं चलता कि आप किसी कामगार से बात कर रहे हैं अथवा किसी कथावाचक या संत से।
अम्बिका वाजपेयी, अयोध्या। पीला हेलमेट और जाली वाली नारंगी हाफ सदरी पहने रमन से बात करने पर पता ही नहीं चलता कि आप किसी कामगार से बात कर रहे हैं अथवा किसी कथावाचक या संत से। ये दिन रात प्रभु श्रीराम के इस स्थान को भव्य बनाने में जुटे हुए हैं। अकेले रमन ही नहीं उनके दर्जनों कामगार श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र कार्यशाला में तब से काम कर रहे हैं, जब इसका नाम रामजन्मभूमि न्यास कार्यशाला था।
रमन बताते है कि जिस स्वप्न को लेकर मैं आया था, अब वह साकार हो गया। रमन एक कागज निकालकर देते हैं और पढ़ने का आग्रह करते हैं। आप भी पहले कागज पर लिखा पढ़ लीजिए, फिर आगे की बात करते हैं। लिखा है - हम सनातनी लोगों के रोम-रोम में राम में क्योंकि दुःख में मुख से ‘हे राम’ निकलता है तो पीड़ा में ‘अरे राम’ लज्जा में वही ‘हाय राम’ हो जाता है तो अशुभ में ‘अरे राम राम’। अभिवादन में ‘राम राम’ कहते हैं तो शपथ में ‘राम दुहाई’ बोलते हैं। अज्ञानता में तो ‘राम जाने’ और अनिश्चितता में ‘राम भरोसे’ रहते हैं।
राम के भक्त
अचूकता के लिए ‘रामबाण’ के प्रति आस्था रहती है तो सुशासन के लिए ‘रामराज्य’ का उदाहरण देते हैं। मृत्यु पर याद आता है कि ‘राम नाम सत्य’ है। ऐसी तमाम अभिव्यक्तियां पग-पग पर ‘राम’ को साथ खड़ा करतीं हैं। हमारे राम भी इतने सरल हैं कि हर जगह खड़े हो जाते हैं। जिसका कोई नहीं उसके लिए भी ‘राम’ हैं तभी तो कहा जाता है कि ‘निर्बल’ के बल ‘राम’ हैं।इन्हें कामगार कहूं राम मर्मज्ञ
कागज पर लिखी पंक्तियां पढ़ने के बाद आश्चर्य हुआ और किंचित संकोच भी कि इन्हें कामगार कहूं राम मर्मज्ञ। एक पत्थर को आकार देने से पहले उस पर जल डालकर चरण स्पर्श करना और मन में यह क्षमाभाव लाना कि हम अपनी आजीविका के लिए आप पर छेनी हथौड़ी चला रहे हैं। जिनके औजारों के स्पर्श से पाषाण भी देवत्व पाते हैं, उनका परिश्रम, ललक और उत्साह प्रणम्य है।
राम नाम जप के साथ चला रहे हैं छेनी
मीरजापुर निवासी सुजान कुमार उनके परिवार के पांच लोग रामनाम जप के साथ मंदिर के लिए शिलाओं पर दनादन छेनी-हथौड़े चला रहे हैं। इसमें कुछ लोग उस समय से शिलाओं को गढ़ने में लगे हैं, जब यह भी पता नहीं था कि मंदिर बनेगा या नहीं।मिर्जापुर से 1990 में आ गए अयोध्या
सुजान कहते हैं...रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। उन्होंने बताया कि अन्नू सोमपुरा को पता चला कि मिर्जापुर में ऐसे काम करने वाले लोग हैं। गांव के तीन-चार लोग 1990 में अयोध्या आए थे। मैं और सुखलाल 2002 में आए।
अनूप बताते हैं कि जब 1990 में शिला पूजन का कार्यक्रम था। हजारों कारसेवक अयोध्या आए थे। तय हुआ कि एक शिला केंद्र सरकार के प्रतिनिधि को दी जानी है। तब हम छह लोगों को चयनित रामशिला को कार्यशाला से हनुमानगढ़ी मंदिर पहुंचाने की जिम्मेदारी मिली। हम शिलाएं लेकर पहुंचे, जिसे स्व. रामचंद्रदास परमहंस व अशोक सिंघल ने केंद्र सरकार के प्रतिनिधि को सौंपा था।
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