मराठा सरदार महादजी के समय में रामजन्मभूमि जैसे आस्था केंद्रों को वापस हिंदुओं को सौंपे जाने की उम्मीद जगी थी, पढ़ें अयोध्या की संघर्ष गाथा
मराठे 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई की पराजय से उबर कर महादजी सिंधिया के नेतृत्व में अपनी शक्ति और प्रतिष्ठा को फिर से बढ़ाने में लगे थे। इस अभियान के तहत उन्होंने न केवल दिल्ली पर दबाव बनाया बल्कि काशी विश्वनाथ मंदिर एवं मथुरा स्थित कृष्णजन्मभूमि सहित रामजन्मभूमि जैसे आस्था के शीर्ष केंद्रों को वापस हिंदुओं को सौंपे जाने की संभावना भी जगाई।
रमाशरण अवस्थी, अयोध्या। यह वह दौर था, जब मराठे 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई की पराजय से उबर कर महादजी सिंधिया के नेतृत्व में अपनी शक्ति और प्रतिष्ठा को फिर से बढ़ाने में लगे थे। इस अभियान के तहत उन्होंने न केवल दिल्ली पर दबाव बनाया, बल्कि काशी विश्वनाथ मंदिर एवं मथुरा स्थित कृष्णजन्मभूमि सहित रामजन्मभूमि जैसे आस्था के शीर्ष केंद्रों को वापस हिंदुओं को सौंपे जाने की संभावना भी जगाई।
मराठा सरदार महादजी सिंधिया ने 1771 ई. में मुगल बादशाह शाह आलम को परास्त कर उसे अपनी अधीनता स्वीकार करने को विवश किया। बादशाह ने महादजी को पेशवा के प्रतिनिधि के रूप में वजीर उल मुल्क की उपाधि से विभूषित किया। शाहआलम नाममात्र का बादशाह था और मुगल शासन के सारे सूत्र मराठों के हाथ में थे। यह स्थिति करीब 50 वर्ष तक बनी रही।
गुलाम कादिर ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया
1788 में मुगल शासन पर महादजी के प्रभाव में और वृद्धि हुई। उन दिनों वह सामरिक अभियान के संबंध में दक्षिण की यात्रा पर थे। इसी रिक्तता का लाभ उठाकर रुहेल सरदार गुलाम कादिर ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और शाह आलम को नृशंस यातनाएं दीं। यह समाचार सुन कर महादजी पूरी शीघ्रता के साथ दक्षिण भारत से दिल्ली आए और उन्होंने शाह आलम को पुन: सिंहासनासीन कराने के साथ गुलाम कादिर का सिर धड़ से अलग कर दिया।गोवध बंद कराने का फरमान जारी किया
महादजी के इस उपकार ने शाहआलम को और भी कृतज्ञ बना दिया और मुझे भी। मेरे लिए महादजी नई उम्मीद बनकर सामने आए। एक बार को तो महादजी के रूप में मुझे विक्रमादित्य की छाया दृष्टिगत होने लगी। महादजी के प्रयत्न से 1789 ई. में शाहआलम ने हिंदुओं की भावनाओं के अनुरूप गोवध बंद कराने का फरमान जारी किया। शाहआलम ने 1790 ई. में अयोध्या, काशी और मथुरा के आस्था के केंद्र महादजी के माध्यम से हिंदुओं को सौंप दिए।
पेशवा दरबार के प्रभावशाली मंत्री नाना फडणवीस ने मुगलों से तीर्थ स्थलों को भी छोड़ने की मांग की
महादजी सिंधिया ने सात अगस्त 1790 को यह फरमान स्वीकार किया था। इसे लेकर किसी तरह का प्रतिरोध भी नहीं हुआ और हिंदू-मुस्लिम एकीकरण की संभावना भी प्रशस्त हुई। इसी संभावना के बीच पेशवा दरबार के प्रभावशाली मंत्री नाना फडणवीस ने मुगल सत्ता से उन अन्य तीर्थ स्थलों को भी छोड़ने की मांग की, जिसे मुगलों ने सामरिक अभियान के तहत हस्तगत कर रखा था। यह संभावना फलीभूत होती, इससे पूर्व महादजी सिंधिया, शाहआलम एवं नाना फडणवीस की मृत्यु हो गई।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।