Ram Mandir: 'प्राण प्रतिष्ठा के बाद बदल गए भगवान के भाव, बोलने लगीं आंखें', रामलला की मूर्ति के बारे में बताकर योगीराज ने सभी को कर दिया हैरान
प्राण प्रतिष्ठा के साथ प्रतिमाएं प्राणवान हो उठती हैं रामलला इस विश्वास पर खरे प्रतीत हो रहे हैं। इस चमत्कार की पुष्टि अयोध्या के श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए रामलला की प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज ने स्वयं की है। उन्होंने कहा है कि मैंने जो मूर्ति बनाई गर्भगृह के अंदर जाकर उसके भाव बदल गए आंखें बोलने लगीं।
रघुवरशरण, अयोध्या। प्राण प्रतिष्ठा के साथ प्रतिमाएं प्राणवान हो उठती हैं, रामलला इस विश्वास पर खरे प्रतीत हो रहे हैं। इस चमत्कार की पुष्टि अयोध्या के श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए रामलला की प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज ने स्वयं की है।
उन्होंने कहा है, ‘मैंने जो मूर्ति बनाई, गर्भगृह के अंदर जाकर उसके भाव बदल गए, आंखें बोलने लगीं’। रामलला की प्रतिमा से योगीराज के इस अनुभव की पुष्टि भी होती है। रामलला की जो प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित हुई, उसकी आंखें देखिए और जो प्रतिमा विग्रह के रूप में प्रतिष्ठित होकर सामने आईं, उसकी आंखें देखिए। योगीराज ने जो प्रतिमा बनाई, वह निश्चित रूप से जीवंतता की पर्याय है।
योगीराज ने गढ़ी ऐसी मूर्ति
उन्होंने पूरी कुशलता से रामलला के अंग-उपांग गढ़े। वह न केवल पांच वर्षीय बालक के अनुरूप रामलला के उभरे गाल और राजपुत्र की तरह सुडौल चिबुक गढ़ने में, बल्कि प्रतिमा की श्यामवर्णी शिला को पंचतत्व से निर्मित सतह का स्वरूप देने में भी सफल रहे। चेहरे की भंगिमा से लेकर संपूर्ण प्रतिमा की मुद्रा, बालों की लट से लेकर आभूषणों का सजीव अंकन और नख से शिख तक संयोजन-संतुलन से युक्त प्रतिमा कला-कृत्रिमता की पूर्णता की परिचायक के रूप में प्रस्तुत हुई। तथापि यह प्रतिमा ही थी।प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला की आंखें बोलती प्रतीत होने लगी
प्राण प्रतिष्ठा के बाद से अब विग्रह के रूप में इसे देखने वाले एक बार के लिए नि:शब्द रह जा रहे हैं। योगीराज ने प्रतिमा की आंखें भी बहुत मन, बारीकी और कुशलता से गढ़ी थीं। बिल्कुल जीवंत और देखती प्रतीत होती थीं, किंतु प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला की आंखें बोलती प्रतीत होने लगी हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अनुक्रम-अनुष्ठान से जुड़े रहे हनुमत निवास के महंत आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा तो पाषाण प्रतिमा अथवा मृण्मय प्रतिमा में चिन्मय-चैतन्य आरोपित करने के ही लिए होती है।
रामलला के संदर्भ में यह प्रयास कहीं अधिक सीमा तक फलीभूत होने की अपेक्षा थी। क्योंकि हम जिस स्थल पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करने जा रहे थे, वह कोई साधारण भूमि नहीं थी, बल्कि युगों पूर्व यहीं श्रीराम का जन्म हुआ था और आत्मिक-आध्यात्मिक दृष्टि से जरा भी सक्षम लोग इस अति विशिष्ट भूमि की ऊर्जा का अनुभव भी करते रहे हैं। रामलला की प्रतिष्ठा के बाद यह अनुभव और स्पष्टता तथा आसानी से किया जा सकेगा।
कहीं अधिक प्रत्यक्ष हो रहे रामलला
रामदिनेशाचार्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य के अनुसार यह कोई नया विषय नहीं है। रामजन्मभूमि के रामलला, हनुमानगढ़ी के हनुमान जी, कनकभवन के कनकविहारी-विहारिणी और दोनों देवकाली में स्थापित देवी मां के विग्रह भी बोलते प्रतीत होते हैं। रामलला को 496 वर्ष बाद अपना वैभव वापस मिला है। यह उनका अनुग्रह है और हमें अपना घट सीधा कर उनके कृपामृत का पान करना चाहिए।
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