Move to Jagran APP

रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य ने बताया… ‘रामचरितमानस’ में क्यों है आठ अक्षर? कहा- हम राम के कृपा पात्र हैं

हम राम के कृपा पात्र हैं और राम हमारे प्रेमपात्र हैं। भक्ति ही सूत्र है ज्ञान सूत्र नहीं है। भरतस्य भक्ति भारतम। ये बातें तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य ने बड़ा भक्तमाल की बगिया में चल रही कथा में दूसरे दिन की सोमवार को कही। उन्होंने महर्षि पाणिनि के सूत्रों की व्याख्या की। साथ ही परमात्मा व जीवात्मा के संबंधों को परिभाषित किया।

By Rajesh Kumar Srivastava Edited By: Shivam Yadav Updated: Tue, 16 Jan 2024 01:15 AM (IST)
Hero Image
हम राम के कृपापात्र और राम हमारे प्रेमपात्र: रामभद्राचार्य
संवाद सूत्र, अयोध्या। हम राम के कृपा पात्र हैं और राम हमारे प्रेमपात्र हैं। भक्ति ही सूत्र है, ज्ञान सूत्र नहीं है। भरतस्य भक्ति: भारतम। ये बातें तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य ने बड़ा भक्तमाल की बगिया में चल रही कथा में दूसरे दिन की सोमवार को कही। 

उन्होंने महर्षि पाणिनि के सूत्रों की व्याख्या की। साथ ही परमात्मा व जीवात्मा के संबंधों को परिभाषित किया। कहा कि यह जीवात्मा परमात्मा से संचालित है तथा यह परमात्मा के लिए ही है। यह जीवात्मा दुनिया के लिए नहीं है। वह पुत्र, पुत्री, पत्नी के लिए भी नहीं है। उन्होंने इसका दार्शनिक पक्ष भी किया। 

कहा कि यह संसार सीतारामजी से आया है तथा उनमें ही विलीन हो जाएगा। इसके लिए उन्होंने रामचरित मानस की पंक्ति सियाराममय सब जग जानी। करहु प्रणाम जोरि जुग पानी।। का जिक्र किया।

तात्विक व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि सच्चिदानंद ने अयोध्या में राम तथा सीता के रूप में जन्म लिया। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में आठ वर्ण हैं क्योंकि इसमें प्रभु राम की आठ लीलाएं प्रमुखता से वर्णित हैं। 

जगदगुरु ने ''राम चरित मानस एहि नामा। सुनत श्रवण पाइअ विश्रामा।'' की अनेक संदर्भों में व्याख्या की। उन्होंने जन्म, उदारवाद, विवाह, राजत्याग, वन चरित्र, रावण वध, राजलीला आदि प्रसंगों के माध्यम से इसे सिद्ध भी किया। उन्होंने कहा कि तुलसी के इस ग्रंथ का नामकरण भी भगवान शंकर ने किया।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।