Ram Mandir: 'मैं रामजन्मभूमि हूं ...आज कृतार्थ हुई'; पढ़ें अयोध्या की संघर्ष गाथा
अयोध्या में आज रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विमान सुबह साढ़े दस बजे के करीब उस एयरपोर्ट पर उतरेगा। इसके बाद एक घंटे का समय परिसर के अवलोकन भेंट आदि में बिताने के साथ वह यहीं अनुष्ठान के लिए तैयार होंगे और उसके बाद प्राण प्रतिष्ठा के लिए गर्भगृह में पहुंच जाएंगे। सोमवार दोपहर 1205 बजे से 1255 के बीच प्राण प्रतिष्ठा समारोह होगा।
रमाशरण अवस्थी, अयोध्या। मुझे कभी बोलने की आवश्यकता नहीं पड़ी। थी भी नहीं। मैं तो परम धन्य - परम तृप्त रही हूं। आखिर जिस भूमि पर परात्पर के नायक भगवान राम ने जन्म लिया, उसे कुछ कहने-सुनने की ही नहीं, किसी अन्य प्रकार की भी आवश्यकता नहीं थी। मैं तो अपनी प्रकृति में ही पूर्ण समाधिस्थ - स्वर्गिक थी। धरती पर आने से पूर्व भगवान विष्णु के लोक वैकुंठ के केंद्रीय प्रभाग में स्थापित थी और विष्णु की ही इच्छा से यहां लाई गई।
कालांतर में श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु मेरी ही गोद में अवतरित हुए। ऐसी अति विलक्षण विरासत के चलते मैं पृथ्वी पर होकर भी अपार्थिव और जगत में रहते हुए भी जगदीश की खबर देती रही। मैंने उस समय भी कुछ कहने की जरूरत नहीं समझी, जब एक मार्च 1528 को मेरे गौरव - मेरे प्राण - मेरी गति - मेरी मति - मेरी चेतना - मेरी आत्मा श्रीराम का मंदिर तोड़ दिया गया। क्योंकि मैं जानती थी कि पत्थर का, ईंट-गारे का मंदिर तो तोड़ा जा सकता है, किंतु मेरे राम का मंदिर नहीं तोड़ा जा सकता।
यह विश्वास तो था कि एक दिन मुक्त होऊंगी
वस्तुत: यह संसार ही उनका मंदिर है और संसार का सृजन-संहार उनके स्वयं के हाथों में है। मेरे राम चाहते तो निमिष मात्र में बाबर या मीर बाकी को सीमा में रहने का पाठ पढ़ा सकते थे, किंतु उन्हें तो अपने भक्तों की परीक्षा लेनी थी। उन भक्तों की जो बात-बात में उनका नाम लेते थे, उनके नाम से जिनका हृदय स्पंदित होता था। देखना था कि वह कोटिक जन अपने आराध्य का मंदिर बचाने के लिए क्या कर सकते हैं और यदि वह मंदिर ध्वस्त कर मुझे अधिगत कर लिया गया, तो मुझे वापस प्राप्त करने और मंदिर का पुनर्निर्माण करने के लिए क्या कर सकते हैं। मैं प्रसन्न और गौरवान्वित हूं। मेरे राम के अनुरागी सुदीर्घ परीक्षा में न केवल सफल हुए, बल्कि अपेक्षा से भी अधिक अंक अर्जित किया है। मैं स्वयं चमत्कृत हूं। यह विश्वास तो था कि एक दिन मुक्त होऊंगी, किंतु इस तरह आसानी से मुक्त होने की उम्मीद नहीं थी।शताब्दियों के संघर्ष और दशकों के आंदोलन के बाद संभावना की गाड़ी जहां की तहां ठहर सी गई थी। ऐसे में न्यायालय ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया और उससे भी बढ़कर न्यायालय में नियमित सुनवाई का मार्ग प्रशस्त करने वाले यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। मैं अपूर्व कृतज्ञता की बेला में बरबस स्फुरित हो रही हूं। श्रीराम भी स्फुरित हो रहे होंगे। वह तो अपनी बात भक्तों के अंत:करण में कहेंगे, किंतु मैं इस अति कठिन परीक्षा में भक्तों को सफल होने की बधाई दूंगी।
स्वर्णिम भविष्य की शुभकामना दूंगी
स्वर्णिम भविष्य की शुभकामना दूंगी। मुझे पूरा विश्वास है कि जिस तरह मुझे भव्य राम मंदिर से अभिषिक्त किया जा रहा है, उसी तरह भक्तों के व्यक्तिगत जीवन से लेकर पूरा देश पूरी दिव्यता-भव्यता से युक्त हो। मैं प्रारंभ से ही समष्टिगत रही हूं। मेरा कभी विभाजन में विश्वास नहीं रहा है। मैं श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप मानवीय एकता-अखंडता में विश्वास करती रही हूं। मैं जिस अयोध्या का मर्म प्रतिष्ठित करती हूं, उसका आशय ही अखंडता है। ऐसे में मैं चाहती हूं कि सोमवार को नवनिर्मित मंदिर में रामलला की प्रतिष्ठा के बाद इसी मंदिर से ऊर्जा एवं संकल्प लेकर राष्ट्र मंदिर को भी राम मंदिर की तरह भव्यतम बनाने का अभियान आगे बढ़ाया जाय।इस अभियान में श्रीराम के साथ मेरा भी आशीर्वाद बना रहेगा। मैं चाहूंगी कि जब इस वर्ष दिसंबर तक मैं राम मंदिर के 161 फीट ऊंचे शिखर से अभिषिक्त होऊं और उसके एक साल बाद मेरे 71 एकड़ का संपूर्ण परिसर सज्जित हो, तब तक यह राष्ट्र अपने अतीत के अनुरूप विश्व गुरु की गरिमा से गौरवान्वित हो रहा हो।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।