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Ramotsav 2024: अपने राम की राह ताकतीं हर्षपूरित, अश्रुपूरित, हुलसित अयोध्या जी...

कहते हैं कि श्रीकृष्ण के साथ जो ग्वालबाल गायें चराने निकलते थे...यह उनका किसी जन्म का सद्कर्म था कि लीलाधर का सान्निध्य पा सके। राम के जो बालसखा हुए उनका भी अपना यही प्रारब्ध रहा होगा। इन श्रमपथिकों का भी किसी जन्म का सद्कर्म रहा होगा। बदायूं से पीलीभीत से कोई गोंडा से कोई बस्ती कुशीनगर तो कोई सोनभद्र। भागलपुर तो रांची से कोई। रामकाज कीन्हें बिनु मोहिं कहां बिश्राम।

By Pawan Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Tue, 09 Jan 2024 08:00 PM (IST)
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श्रीरामजन्मभूमि पथ पर भावना से ओत-प्रोत भक्तजन। जागरण
पवन तिवारी, अयोध्या। आंचल से बुहारती हैं पथ, स्वेद से लथपथ..अश्रुपूरित, हर्षपूरित, हुलसित हैं अयोध्या जी। रामलला तो कहीं नहीं गए यहां से... अयोध्यावासियों के रोम-रोम में हैं राम। फिर क्यों है प्रतीक्षा कौशल्यानंदन के पुनरागमन की? अनुपम, अद्वितीय, अविच्छिन्न, अभेद्य भव्य प्रासाद में उनके सुकुमार स्वरूप के विराजने की, और कैसी आस? शिविरीय आवास में बरसोंबरस का वनवास काट दशरथआत्मज रघुकुलनंदन की गरिमा में पुनर्प्रतिष्ठित होने की चिरअभिलाषा के पूर्ण होने की।

सुदीर्घ प्रतीक्षा की घड़ी पूरी होने में अब सप्ताह भर से कम का समय रह गया। इस लंबे कालखंड में राम की जन्मभूमि ने क्या नहीं सहा? उस संताप के दूर होने के क्षण हैं। तजहुं तात यह रूपा...माता कौशल्या शिशु राम से अरज करतीं हैं- कीजै सिसुलीला, अति प्रिय सीला, यह सुख परम अनूपा...। माता की मनुहार कैसे टाल सकते हैं राम: सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा। जहां बालक राम ने रोदन ठाना था...इस आंगन में विराजेंगे राम। ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैजनियां...। उस सुमधुर धुन का साक्षी रहा आंगन-ओसारा। जिस आंगन में ठुमुक-ठुमुक चलते बालक राम हों, पैजनियां की मधुर गुंजन..रही हो । उस परिक्षेत्र के सन्निकट होने की कल्पना करें...स्वयं पर नियंत्रण न कर सकेंगे। लोमहर्षक। राम पथ पर बिरला धर्मशाला के सामने श्रीरामजन्मभूमि के मुख्य द्वार पर अपने आंचल से जन्मभूमि पथ को बुहारती दिखीं अम्मा। चांदी हो चुकी केशराशि। प्रणाम करने पर हाथ जोड़तीं हैं। जिस आंचल से पथ को संवारती होती हैं, उसी का एक सिरा पकड़ ढुलक आए आंसू पोंछती हैं। न मुझसे पूछते बना कि कहां से आईं हैं न वह कुछ कह पाने की दशा में थीं। कुछ कम, कुछ अधिक... इसी भावुकता के पाश में बंधे दिखे जन्मभूमिपथ के पथिक।

भावुकता से निकलते हैं...। श्रम पथ की ओर चलते हैं। अयोध्या का रामकोट मोहल्ला। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के मुख्य कार्यालय के निकट। जयसियाराम हो..जय जय सियाराम...। मानो परिक्रमार्थियों का दल हो। वे श्रम पथिक हैं। निरंतर, अनवरत, अथक, अविराम कठिन परिश्रम से वह ऐसा सुमनोहर भवन प्रतिष्ठापित कर पा रहे हैं। वे कतारबद्ध हो श्रीरामलला के नवनिर्मित सदन में प्रविष्ट हो लेते हैं। द्वार पर सुरक्षा जांच के बाद। साध लगती है कि कोई यही रेडियम जड़ित जैकेट, हेलमेट दे दे तो हम भी अपने राम के महल के नवनिर्माण के लिए गिलहरी प्रयास कर दें। कहते हैं कि श्रीकृष्ण के साथ जो ग्वालबाल गायें चराने निकलते थे...यह उनका किसी जन्म का सद्कर्म था कि लीलाधर का सान्निध्य पा सके। राम के जो बालसखा हुए उनका भी अपना यही प्रारब्ध रहा होगा। इन श्रम पथिकों का भी किसी जन्म का सद्कर्म रहा होगा। बदायूं से, पीलीभीत से कोई गोंडा से, कोई बस्ती, कुशीनगर तो कोई सोनभद्र। भागलपुर तो रांची से कोई। रामकाज कीन्हें बिनु मोहिं कहां बिश्राम।

आगत के स्वागत को संवर रही अयोध्या। धर्मपथ पर सूर्यस्तंभों की कतार श्रृंखला की भव्यता अवर्णनीय है। द्वारपूजा से पूर्व का साज-श्रृंगार। पश्चिम दिशा में लखनऊ की ओर से आएं तो शहर की सीमा में प्रविष्ट होते ही आभास हो जाता है आ गए हम कोशल के वैभवशाली नगर में। मर्यादा पुरुषोत्तम के पदचिह्नों, उनकी चरणधूलि से संतृप्त अयोध्या में। आप प्रतीक्षा करें...। 22 जनवरी के बाद आएंगे बरबस मुंह से चौपाई फूटेगी-

बरनत छबि जहं तहं सब लोगू। अवसि देखिअहिं देखन जोगू॥

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