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UP Lok Sabha Result: '…बदलाव के लिए 400 से अधिक सीटों की जरूरत', भाजपा पर भारी पड़ा ये बयान; रामनगरी में बनी हार की वजह

इसी वर्ष 22 जनवरी को 496 वर्षों की चिर साध पूर्ण हुई जब रामजन्मभूमि पर नवनिर्मित मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह राष्ट्रीय महत्व के उत्सव के रूप में मनाया गया। तब तक अयोध्या को श्रेष्ठतम नगरी बनाए जाने का प्रयास भी काफी हद तक फलीभूत होने लगा था कि तभी लोकसभा के चुनावी नतीजे में भाजपा की हार ने...

By Riya Pandey Edited By: Riya Pandey Updated: Wed, 05 Jun 2024 09:49 PM (IST)
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रामनगरी में भाजपा के हार की वजह बना ये बना
रमाशरण अवस्थी, अयोध्या। रामनगरी से संपृक्त फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र से भाजपा की पराजय हाहाकारी सिद्ध हो रही है। इस पराजय के अनेक कारणों में जो सर्वाधिक प्रभावी सिद्ध हुआ, भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह का संविधान बदलने संबंधी बयान था। उनके इस वक्तव्य के प्रसारित वीडियो ने विपक्ष को भाजपा पर हमला करने का बड़ा हथियार दे दिया।

वह वीडियो तब रिकॉर्ड किया गया, जब भाजपा प्रत्याशी कार्यकर्ताओं को प्रेरित करते हुए कह रहे हैं कि संविधान में बदलाव के लिए चार सौ से अधिक सीटों की जरूरत है और इसीलिए आप सबको समर्पित होकर चुनाव में काम करना है।

भाजपा प्रत्याशी के इस बयान को आधार बनाकर विपक्ष ने यह आरोप मढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि भाजपा संविधान बदलना चाहती है। इस तात्कालिक कारण के साथ भाजपा से अयोध्या का चिर समीकरण भी उलझ रहा था।

एक ओर गत पांच वर्षों में भाजपा की सरकार ने रामनगरी को शून्य से शिखर तक पहुंचाया, दूसरी ओर चुनावी मोर्चे पर जब इस उपकार के प्रतिदान की बारी आई, तब भाजपा को खाली हाथ रह जाना पड़ा। यद्यपि नौ नवंबर 1999 को राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद 2022 के विस चुनाव और 2023 के स्थानीय निकाय चुनाव में रामनगरी और संपूर्ण अयोध्या जिला ने भाजपा को सिर-माथे पर बैठाया।

इस बीच भव्य राम मंदिर के साथ 50 हजार करोड़ की लागत से रामनगरी को श्रेष्ठतम सांस्कृतिक नगरी बनाए जाने का अभियान निरंतर आगे बढ़ता गया।

इसी जनवरी में पूरी हुई 496 वर्षों की चिर साध

इसी वर्ष 22 जनवरी को 496 वर्षों की चिर साध पूर्ण हुई, जब रामजन्मभूमि पर नवनिर्मित मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह राष्ट्रीय महत्व के उत्सव के रूप में मनाया गया। तब तक अयोध्या को श्रेष्ठतम नगरी बनाए जाने का प्रयास भी काफी हद तक फलीभूत होने लगा था।

यह दौर इतना रम्य, महनीय और सांस्कृतिक-आध्यात्मिक महत्व का था कि लोग बरबस यह कहने लगे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में रामराज्य आ गया। यद्यपि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के चार माह से कुछ पहले ही जब लोकसभा चुनाव के लिए मतदान की निर्णायक बेला आई, तब तक अति विभोर करने वाला यह उत्साह कहीं पीछे छूट गया था।

इस सच्चाई की पुष्टि चार जून को मतगणना से हुई। जिस फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र को चुनावी भाषा में अपराजेय भगवा दुर्ग का गौरव हासिल था और जहां से न केवल पांच बार के विधायक और दो बार के सांसद लल्लू सिंह जैसे मंजे राजनीतिज्ञ की बात दूर, किसी साधारण कार्यकर्ता को भाजपा का टिकट मिलना जीत की गारंटी माना जा रहा था, वह भगवा दुर्ग दरक गया।

रामनगरी वाले अयोध्या विधानसभा क्षेत्र से भाजपा को सर्वाधिक उम्मीद थी लेकिन वहां के लोगों ने मतदान के प्रति उत्साह नहीं दिखाया। वहां भाजपा सभी चुनावों में निर्णायक बढ़त हासिल करती थी लेकिन इस बार उसकी जीत का अंतर साढ़े चार हजार मतों का ही रहा।

अयोध्या के मन की लेनी होगी थाह

भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को सपा के अवधेश प्रसाद से 54 हजार 567 मतों से हार का सामना करना पड़ा। इसी के साथ रामनगरी पर कृतघ्नता का आरोप भी मढ़ उठा। सवाल उठ रहा है कि जिस भाजपा ने रामनगरी के लिए क्या कुछ नहीं किया, उस अयोध्या ने भाजपा के प्रति घात किया। यद्यपि यह आरोप न्यायसंगत नहीं है। ऐसे आरोप लगाने के लिए अयोध्या के मन की थाह लेनी होगी। सत्य यह है कि यदि भाजपा ने अयोध्या के लिए बहुत कुछ किया, तो अयोध्या ने भी भाजपा को शिरोधार्य करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

आज जनादेश के पीछे अयोध्या की जो असहमति और पीड़ा व्यक्त हो रही है, वैसी पीड़ा और असहमति से अयोध्या राम मंदिर का निर्णय आने के बाद से ही गुजरने लगी थी। चाहे वह राम मंदिर रहा हो या उससे पूर्व भव्य उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला दीपोत्सव। इसे वैश्विक महत्व का बनाए जाने के प्रयास में अयोध्या की अनदेखी होने लगी।

अपने ही नगर में बेगाने होने लगे थे अयोध्यावासी

आए दिन अति विशिष्ट अतिथियों के आगमन और मार्गों पर रोक-टोक से अयोध्या के लोग अपने ही नगर में बेगाने सिद्ध होने लगे। रही-सही कसर विकास के नाम पर व्यापक तोड़-फोड़ से हुई। तोड़-फोड़ से बड़ी संख्या में नागरिकों एवं व्यापारियों को विस्थापन का सामना करना पड़ा। इसके एवज में उन्हें मुआवजा तो नाममात्र का मिला, किंतु जब पुनर्वास के लिए वे सरकारी बिजनेस कांप्लेक्स में दुकान आवंटित कराने गए, तो उन्हें 20 से 30 गुणा तक की कीमत चुकानी पड़ी।

तथापि व्यापारियों ने आराध्य की नगरी की अस्मिता के नाम पर चाहे विस चुनाव रहा हो या निकाय चुनाव, भाजपा को अपनत्व प्रदान करने में पूरी उदारता का परिचय दिया। जो राम और राम मंदिर संपूर्ण अयोध्या की थाती है, वहां जाने के भी लिए स्थानीय धर्माचार्यों एवं नागरिकों को किसी विशेषाधिकार की अपेक्षा थी, किंतु तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इस बारे में किसी तरह का विचार करने की जरूरत नहीं समझी।

या तो वह लाइन लगा कर अति सामान्य श्रद्धालु की तरह राम मंदिर का दर्शन करें या विशेष पास के लिए तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारियों से लेकर संघ और विहिप के किसी प्रभावी पदाधिकारी की चिरौरी करें। इन असहमतियों के अतिरिक्त भाजपा के तरकश के तीर भी जंग खाने लगे थे। जिन कार्यकर्ताओं के बूते ऐसे मोर्चे जीते जाते हैं, उनकी अवमानना आए दिन की बात थी।

प्रतिनिधियों के पास हमदर्दी हासिल करने का भी नहीं समय

सत्ता मद में चूर प्रतिनिधियों के पास जनता की समस्या सुनने की बात दूर कार्यकर्ताओं की भी हमदर्दी हासिल करने की फुर्सत नहीं बची थी। ऐसा ही एक वाकया तब सामने आया, जब भाजपा के एक स्थापित पदाधिकारी को बैठक में जिलाधिकारी की घुड़की का सामना करना पड़ा और इसके प्रतिकार में किसी ने चूं तक नहीं की। जबकि इस बैठक में तत्कालीन प्रभारी मंत्री नीलकंठ तिवारी, सांसद, विधायक और भाजपा के अन्य जन प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

भाजपा को पिछले पांव पर ढकेलने में बेलगाम अफसरशाही को भी याद किया जाएगा। गत कुछ वर्षों के दौरान जन प्रतिनिधियों के मुकाबले कुछ प्रमुख पदों पर बैठे अधिकारियों की ही चली और यह स्थिति जन सामान्य से लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं तक को हताश करने वाली रही।

भाजपा की पराजय दुखद

ऐसी हताशा, विसंगतियों और उपेक्षा के चलते घात करने का आरोप भाजपा के बहाने रामनगरी पर एक और आघात से कम नहीं है। डांड़िया मंदिर के महंत महामंडलेश्वर गिरीशदास के अनुसार भाजपा की पराजय दुखद है, किंतु इस पराजय के आधार पर अयोध्या पर घात का आरोप लगा देना उससे भी दुखद है। आज समय है कि भाजपा और संघ परिवार अयोध्या से अपने संबंधों का बारीकी से अवलोकन करे।

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