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Azamgarh ODOP: 300 साल पुरानी इस कला के पीएम मोदी भी हैं मुरीद, अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ रही डिमांड

Azamgarh की 300 साल पुरानी ब्लैक पॉटरी की कला को निजामाबाद के कुम्हारों ने जीवित रखा है। ना सिर्फ कला के रूप में बल्कि रोजगार के क्षेत्र में भी आगे बढ़ाया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने इस कला को पहचाना और इसे बढ़ावा दिया। आइये जानते है...

By Mohammad Aqib KhanEdited By: Updated: Wed, 21 Dec 2022 07:49 PM (IST)
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Azamgarh ODOP: 300 साल पुरानी कला के पीएम मोदी भी हैं मुरीद : जागरण

मोहम्मद आकिब खांन, नोएडा: आजमगढ़ शहर का जिक्र जब होता है तब निजामाबाद की ब्लैक पॉटरी के बिना अधूरा रहता है। मुख्य शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर निजामाबाद के ये काली मिट्टी के बने नक्काशीदार बर्तन न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में आजमगढ़ और निजामाबाद को पहचान दिला रहे हैं।

बौद्धिक संपदा सूची (ज्योग्राफिकल इंडेक्स) में इन बर्तनों को भी दर्ज किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश की लोककला को बढ़ावा देने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिए जाने वाले उपहारों की सूची में ब्लैक पॉटरी को शामिल किया है। देश के राजदूत हों या राजनेता, दूसरे देशों को उपहारों ब्लैक पॉटरी के बर्तनों को उपहार स्वरूप देने लगे हैं।

300 साल पुरानी है कला

मुगल काल की सबसे खास कलाओं में काली मिट्टी के बर्तन बनाने की कला भी शामिल रही है। ये भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है कि निजामाबाद के कुम्हारों ने 300 साल पुरानी ब्लैक पॉटरी की कला को आज तक जीवित रखा है। उन्होंने इसे ना सिर्फ कला के रूप में बल्कि रोजगार के क्षेत्र में भी आगे बढ़ाया है।

विद्वानों का मानना है कि ये कला मुगल काल में गुजरात से आई है। कुछ का ये भी मानना है कि ये कला आंध्र प्रदेश से आई है। पर ये बात साफ कि ब्लैक पॉटरी की कला मुगलकाल से ही चली आ रही है।

ऐसे बनते हैं ब्लैक पॉटरी के शानदार बर्तन

निजामाबाद के ब्लैक पॉटरी के बर्तनों की सबसे बड़ी खासियत ये है कि सजावट के लिए इनमें प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। ये बात भी दिलचस्प है कि इन बर्तनों को बनाने के लिए महीनों की मेहनत लगती है। अमूमन अप्रैल–मई के महीने में तालाबों के सूखने पर मिट्टी निकाल के इकट्ठा कर ली जाती है और बाद में इसे अच्छे से साफ कर के पानी में गूंथा जाता है। फिर चाक पर उन्हें सांचों की मदद से अलग अलग आकार में ढाल लिया जाता है।

पकाने के बाद इन पर सरसों का तेल और सब्जियों का चूर्ण इस्तेमाल करते हैं ताकि इनकी चमक बढ़ जाए। इन बर्तनों को नेचुरल काला रंग देने के लिए इन्हें खास तौर से चावल की भूसी वाली भट्टी में पकाया जाता है।

सजावट के लिए जस्ता, चांदी के पाउडर और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। जिसके बाद उन्हें अच्छे से पॉलिश कर के पूरी तरह से तैयार कर दिया जाता है।

ब्लैक पॉटरी से जुड़े हैं सैकड़ों परिवार

वैसे तो निजामाबाद के 12–15 गांवों में ब्लैक पॉटरी की कला फैली हुई है पर निजामाबाद के हुसैनाबाद को इस कला का केंद्र माना जाता है। यहां के कुम्हारों समेत 300 से 400 परिवार ब्लैक पॉटरी के कारोबार और निर्माण से जुड़े हुए हैं। इसमें कुम्हारों समेत टेरीकोटा और सजावट के कारीगर भी शामिल हैं। इन परिवारों के हजारों सदस्य के लिए ब्लैक पॉटरी की कला आय का मुख्य स्रोत बन चुकी है।

इस कला की इतनी मांग है कि आजमगढ़ के राजस्व में ये कला सालाना 2 से 3 करोड़ रूपये का योगदान देती है। यहां बने हुए बर्तनों का 80% हिस्सा विदेशों में एक्सपोर्ट किया जाता है।

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दे रहे बढ़ावा

भले ही ये कला मुगल काल से चली आ रही है मगर आज तक इस कला को बड़ा बाजार नहीं मिल सका। पीएम नरेंद्र मोदी ने इस कला को पहचाना और इसे बढ़ावा भी दिया। अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पीएम मोदी ने इन बर्तनों को विदेशी राजनेताओं को गिफ्ट किया। इसके अलावा भी सरकार इन बर्तनों के लिए बाजार बनाने के लिए लगी हुई है। ब्लैक पॉटरी को भी ज्योग्राफिकल इंडेक्स की लिस्ट में जगह दी गई और खरीदारों के लिए मार्केटिंग की जाने लगी है।

इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक जनपद-एक उत्पाद योजना में आजमगढ़ से ब्लैक पॉटरी को चुना ताकि उसे बढ़ावा दिया जा सके। मेलों में भी ब्लैक पॉटरी को प्रदर्शित किया जा रहा है वहीं निजामाबाद के लोगों ने भी बर्तनों को बेचने के लिए बढ़िया दुकानें खोल ली हैं। इन बर्तनों को ऑनलाइन बिकने के लिए भी उपलब्ध करा दिया गया है, इन प्रयासों से अब निजामाबाद की आय भी बढ़ने लगी है।

ब्लैक पॉटरी ही नहीं, निजामाबाद इसलिए भी है मशहूर

हिंदी के पहले महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध भी निजामाबाद की ही धरती पर जन्मे थे। क्रांतिकारियों और सेनानियों से भी निजामाबाद का इतिहास भरा हुआ है। यहां देश के सबसे पुराने गुरुद्वारों में से एक गुरुद्वारा भी है जहां सिख धर्म गुरु गुरुनानक और तेग बहादुर भी आ चुके हैं। यहां उनकी चरणपादुका और हाथ से लिखी गुरुग्रंथ साहिब भी मौजूद है जिसे देखने दुनिया भर से सिख समुदाय के लोग आते हैं।