बेंगलुरु से आए मौसम कुमरावत ने पढ़ा- दंभ के नग सभी पिघल जाते आग में राग-द्वेष जल जाते। राह पर बुद्ध की अगर चलते सैंकड़ों युद्ध आज टल जाते। लखीमपुर खीरी से आए हरेंद्र वर्मा ने पढ़ा- बोलने के लिए बोलने का गुनाह मत करना खामखां किसी अपने को परेशान मत करना। हो सकता है उसका नजरिया अभी ठीक हो तल्ख बूंद से किसी दरिया को तबाह मत करना।
By Kamlesh Kumar SharmaEdited By: Mohammed AmmarUpdated: Sun, 25 Jun 2023 07:08 PM (IST)
जागरण संवाददाता, बदायूं : साहित्य के मामले में बदायूं कितना समृद्ध रहा है। अंतरराष्ट्रीय गीतकार डा.शकील बदायूंनी का जिक्र कर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है, जिन्होंने फिल्मी दुनिया को कई बेहतरीन गीत दिए। तुलसी संस्था से जुड़े साहित्यकारों ने अनवरत चौबीस घंटे के काव्य उत्सव का आयोजन कर एक नया इतिहास रच दिया है।
स्काउट भवन में आयोजित साहित्य के विशेष अनुष्ठान काव्य उत्सव का रविवार को समापन हो गया। इस काव्यधारा में विभिन्न प्रांतों से आए और साहित्यकारों ने सहभागिता की।
दो दिवसीय काव्य उत्सव के सामपन समारोह के मुख्य अतिथि भाजपा ब्रज क्षेत्र के मंत्री राकेश मिश्रा अनावा रहे। विशिष्ट अतिथि भाजपा नेत्री रजनी मिश्रा रहीं।
अध्यक्षता भाजपा जिलाध्यक्ष राजीव कुमार गुप्ता ने की।
इटावा से आईं इच्छा पोरवाल ने पढ़ा- नूर चेहरे पे कुछ चढ़ा होता, पास गर तू मेरे खड़ा होता। जिंदगी और भी होती आसां, खत मेरा तूने जो पढ़ा होता। ग्वालियर से आए महेन्द्र भट्ट ने व्यंग्य पढ़ा- ..और शंकर जी एवमस्तु कहकर करिश्मा दिखा गए। तीनों के तीनों तिलंगे पुनः गंगा घाट पर आ गए। राजस्थान से आए राधेश्याम राधे ने सुनाया- सदियों पुरानी संस्कृति जो विश्व की गुरु रही, आदिपुरूष के नाम फिल्मकार से छली गई।।
बेंगलुरु से आए मौसम कुमरावत ने पढ़ा- दंभ के नग सभी पिघल जाते, आग में राग-द्वेष जल जाते। राह पर बुद्ध की अगर चलते, सैंकड़ों युद्ध आज टल जाते। लखीमपुर खीरी से आए हरेंद्र वर्मा ने पढ़ा- बोलने के लिए बोलने का गुनाह मत करना, खामखां किसी अपने को परेशान मत करना। हो सकता है उसका नजरिया अभी ठीक हो, तल्ख बूंद से किसी दरिया को तबाह मत करना।
लखीमपुर से आए योगेश मिश्रा बरबर युग ने सुनाया- बबूल के पेड़ पर आम चाहिए, सबको यहां पर मुकाम चाहिए। मेहनत कोई करना नही चाहता, ख्वाइश ये है कि ईनाम चाहिए।
बिजनौर से आए बुकरम ने शेर पढ़ा- अब तो तुम बिन जिया नहीं जाता, ये दिल किसी और को दिया नहीं जाता।
कहीं आ ना जाए मेरी मौत का इलजाम तेरे सर, बस यही सोचकर जहर पिया नहीं जाता। संचालन कवि पवन शंखधार ने किया। इस अवसर पर सतीश मिश्रा, ओमकार सक्सेना, अतुल श्रोत्रिय, रमेश चंद्र शर्मा, षट्वदन शंखधार, अचिन मासूम, हर्ष मिश्रा, प्रदीप दुबे, रोहिताश पटेल आदि उपस्थित रहे।
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