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जयंत चौधरी को इस वजह से मिली मोदी कैबिनेट में जगह, इस बात से भाजपा हुई खुश; बना दिया केंद्रीय मंत्री

2014 में भी वे मथुरा से चुनाव लड़े लेकिन मोदी लहर में रालोद मथुरा समेत आठों सीटों पर हार गया। 2019 में भी वह सपा-बसपा गठबंधन में रहते हुए तीनों सीटें हार गई। जयन्‍त को बागपत और अजित सिंह को मुजफ्फनगर सीट पर हार का सामना करना पड़ा। 2021 में कोरोना संक्रमण के कारण अजित सिंह की मृत्यु के बाद जयन्‍त ने रालोद की कमान संभाली।

By Mohammed Ammar Edited By: Mohammed Ammar Updated: Sun, 09 Jun 2024 08:08 PM (IST)
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जयंत चौधरी को इस वजह से मिली मोदी कैबिनेट में जगह
आशु सिंह, बागपत: अर्थशास्‍त्र के विद्यार्थी जयन्‍त चौधरी ने अपनी पार्टी को केंद्र में प्रतिनिधित्‍व दिलाकर 10 साल का वनवास खत्‍म कर दिया है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भर गया है। वर्ष 2021 में पिता अजित सिंह के निधन के बाद जयन्‍त के कंधे पर पार्टी की जिम्‍मेदारी आई थी।

कभी विपक्ष का चेहरा रहे रालोद को भाजपा के साथ लाने का उनका निर्णय बिल्‍कुल सही साबित हुआ। इस बार भले ही भाजपा की सीटें कम हुईं, लेकिन रालोद के प्रभाव वाली सीटों पर उसका प्रदर्शन सुधरा है। इसी का इनाम जयन्‍त को अहम मंत्रालय की जिम्‍मेदारी के रूप में मिला।

अमेरिका में जन्‍मे, लंदन स्‍कूल आफ इकोनामिक्‍स से पढ़े

जयन्‍त चौधरी का जन्‍म 27 दिसंबर 1978 को डलास, अमेरिका में हुआ था। उन्‍होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री वेंकटेश्वर कालेज से स्नातक किया और 2002 में लंदन स्कूल आफ

इकोनामिक्स एंड पालिटिकल साइंस से अकाउंटिंग और फाइनेंस में मास्टर डिग्री प्राप्त की। लंदन में पढ़ाई के दौरान ही उनकी मुलाकात चारू चौधरी से हुई। बाद में दोनों विवाह के बंधन में बंधे। उनकी दो बेटियां हैं। जयन्‍त सबसे पहले वर्ष 2009 में 15वीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश के मथुरा से सांसद चुने गए।

मोदी लहर में हार गए थे चुनाव 

2014 में भी वे मथुरा से चुनाव लड़े लेकिन मोदी लहर में रालोद मथुरा समेत आठों सीटों पर हार गया। यहां से रालोद का बुरा दौर शुरू हुआ। 2019 में भी वह सपा-बसपा गठबंधन में रहते हुए तीनों सीटें हार गई। जयन्‍त को बागपत और अजित सिंह को मुजफ्फनगर सीट पर हार का सामना करना पड़ा। 2021 में कोरोना संक्रमण के कारण अजित सिंह की मृत्यु के बाद जयन्‍त ने रालोद की कमान संभाली। 2022 उप्र विस चुनाव में

सपा-बसपा के साथ गठबंधन में उसे उबरने का अवसर मिला। यह अजित सिंह के निधन के बाद जयन्‍त की पहली बड़ी परीक्षा थी। उसे इन चुनावों में 33 में से नौ सीटों पर सफलता मिली थी। इसके बाद 2023 में हुए निकाय चुनाव में रालोद ने अकेले 50 नगर निकायों में किस्मत आजमाई और अपने 22 अध्यक्ष बनवाने में सफल हुई।

चौ. चरण सिंह को भारत रत्‍न के बाद आए एनडीए के साथ फरवरी 2024 में पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह को भारत रत्‍न दिया गया। इस बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के बाद जयन्‍त ने एनडीए के साथ जाने का निर्णय किया। इस निर्णय के साथ ही रालोद के अच्‍छे दिन शुरू हो गए।

रालोद के पुरकाजी विधायक अनिल कुमार उप्र में राज्‍यमंत्री बनाए गए। भाजपा के सहयोग से योगेश नौहवार एमएलसी बने। समझौते के तहत लोकसभा की दो सीटें बागपत और बिजनौर रालोद को मिलीं। दोनों पर जीत दर्ज कर रालोद ने एनडीए में अपनी भूमिका को और महत्‍वपूर्ण बना दिया।

मुरादाबाद मंडल में खुला खाता, कई अन्‍य सीटों पर लाभ

रालोद और भाजपा गठबंधन का दोनों दलों को लाभ दिखा है। सबसे बड़ा लाभ मुरादाबाद मंडल में हुआ जहां पिछली लोकसभा में भाजपा शून्‍य पर खड़ी थी। इस बार अमरोहा भाजपा और बिजनौर खुद रालोद ने जीती। इसके साथ ही रालोद के प्रभाव वाली मेरठ, फतेहपुर सीकरी, मथुरा, हाथरस, अलीगढ़, पीलीभीत, बरेली सीट भाजपा जीतने में सफल रही। इसी का इनाम रालोद को केंद्र में महत्‍वपूर्ण मंत्रालय के रूप में मिला है।

बाबा, पिता के बाद अब जयन्त बने मंत्री

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते जयन्त चौधरी पहली बार केंद्र में मंत्री बने हैं। जयन्त के पिता अजित सिंह चार सरकारों में मंत्री रहे। 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में कृषि मंत्री बने।

वीपी सिंह, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह सरकार में भी वाणिज्य एवं उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण और नागरिक उड्ययन जैसे मंत्रालयों को संभाला। अजित सिंह 2011 से 2014 तक नागरिक उड्ययन मंत्री रहे थे। इस तरह इस परिवार के लिए 10 साल बाद फिर से मंत्री बनने का अवसर आया है।

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