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'टीला ही है महाभारतकालीन लाक्षागृह', हिंदू पक्ष ने कोर्ट में किया साबित; इन साक्ष्यों से मिली जीत

53 साल आठ महीने की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद हिंदू पक्ष ने अदालत में लाक्षागृह को लेकर बड़ी जीत हासिल कर ली। वर्ष 1970 में वाद दायर होने के बाद से ही हिंदू पक्ष ने अदालत में ठोस साक्ष्य पेश किए जबकि मुस्लिम पक्ष अपने दावों पर खरा नहीं उतर सका। उसने जो साक्ष्य पेश किए उनके बारे में भी पुख्ता जानकारी अदालत को नहीं दे सका।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Wed, 07 Feb 2024 11:20 PM (IST)
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'टीला ही है महाभारतकालीन लाक्षागृह', हिंदू पक्ष ने कोर्ट में किया साबित; इन साक्ष्यों से मिली जीत
जागरण संवाददाता, बागपत। 53 साल आठ महीने की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद हिंदू पक्ष ने अदालत में लाक्षागृह को लेकर बड़ी जीत हासिल कर ली। वर्ष 1970 में वाद दायर होने के बाद से ही हिंदू पक्ष ने अदालत में ठोस साक्ष्य पेश किए, जबकि मुस्लिम पक्ष अपने दावों पर खरा नहीं उतर सका। उसने जो साक्ष्य पेश किए, उनके बारे में भी पुख्ता जानकारी अदालत को नहीं दे सका।

मुस्लिम पक्ष न तो यह बता सका कि जब प्राचीन टीले पर मानव की अस्थियां मिली तो उनकी कार्बन डेटिंग क्यों नहीं कराई गई? न ही टीले के कोने-कोने में कब्रें होने का पुख्ता सबूत दे सका। दूसरी तरफ, हिंदू पक्ष ने न केवल कमीशन की रिपोर्ट पेश की, बल्कि सरधना तहसील और एएसआइ की साक्ष्यों के साथ रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत की।

इन साक्ष्यों से हिंदू पक्ष को मिली जीत

तत्कालीन संयुक्त प्रदेश सरकार की शासकीय राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना 25 नवंबर 1920 व 27 दिसंबर 1920 के अनुसार प्राचीन पुरातत्व संरक्षण अधिनियम 1904 के अनुसार मेरठ से 19 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित टीले को लाखा मंडप प्राचीन पुरातत्व के रूप में घोषित किया गया था। इसके बाद एसडीओ सरधना के आदेश पर चार मार्च 1965 में विवादित भूमि को लाखा मंडप दर्ज किया।

अदालत में कमीशन की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसमें संपूर्ण टीला प्राचीन व टूटे हुए मिट्टी के पात्रों के अवशेष, विशेष प्रकार की मिट्टी से बने होने बताए गए। इन्हीं आधार पर प्राचीन टीले को लाखा मंडप कहा गया था। टीले को महाभारतकालीन प्राचीन अवशेष भी बताया गया था। रिपोर्ट में दीवार का भी उल्लेख किया गया था। कमीशन रिपोर्ट को विशेष साक्ष्य माना गया।

प्रतिवादी की ओर से अदालत में विवादित भूमि पर यज्ञशाला, गोशाला, छात्रावास, संस्कृत महाविद्यालय, महात्मा गांधी की प्रतिमा, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के गेट, शिव मंदिर, प्राचीन कुआं आदि होने का उल्लेख भी किया।

प्रतिवादी पक्ष ने 21 मई 1959 को उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव जहीर उल हसन, 27 दिसंबर 1965 को नायब तहसीलदार सरधना, 12 फरवरी 1965 को तहसीलदार सरधना की रिपोर्ट जो 15 फरवरी 1965 को प्रस्तुत हुई थी, के हवाले में अभिलेखों में दरगाह को गलत दर्ज होना बताया, अदालत में रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में कहा गया कि इसमें लाखा मंडप होना चाहिए।

मुस्लिम पक्ष यहां पड़ गया कमजोर

कमीशन की रिपोर्ट में टीले की सतह विशेष प्रकृति के मिट्टी के पात्र व बहुत प्राचीन कंक्रीट की ईंट से बनी होना बताया व टूटे हुए मिट्टी के मटके में मानव अस्थि प्राप्त होना बताया, लेकिन वादी मुकीम खां ने अस्थियों की न तो कार्बन डेटिंग कराई और न ही किसी वैज्ञानिक विधि से अस्थियों की आयु पता लगाने का प्रयास किया।

मुस्लिम पक्ष ने विवादित जगह पर 600 साल पुराना मकदूम शाह विलायत का मजार होना, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में रजिस्टर्ड होना व उसका मुतवल्ली होना बताया, लेकिन बयान में यह नहीं बताया कि वक्फ बोर्ड द्वारा धारा-30, अधिनियम, 1960 में संरक्षित पंजिका क्यों नहीं प्रस्तुत की और न ही यह स्पष्ट किया कि 1920 में जारी अधिसूचना के विरुद्ध क्या आपत्ति की?

गवाह मजहर अहमद ने अपनी गवाही में विवादित जमीन के कोने-कोने में कब्रें होने का बयान दिया है, जो कि पत्रावली पर लगी आयुक्त की आख्या व मानचित्र के अनुसार सही नहीं प्रतीत होता है। गवाह ने अपने बयान में विवादित जमीन के 20-25 बीघा में खेती होने का बयान भी दिया है।

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