जहां महाभारत के पांडवों को जिंदा जलाने की हुई साजिश...जानिए बागपत के इस लाक्षागृह का केस; 53 बरस लगे धरोहर पाने में
महाभारतकालीन लाक्षागृह और दरगाह के विवाद में अदालत ने फैसला हिंदू पक्ष में सुनाया है। अदालत ने प्राचीन टीले को लाक्षागृह (लाखामंडप) माना है। कोर्ट ने एएसआइ की रिपोट्र और राजस्व रिकार्ड में उल्लेखित शिवमंदिर व लाखामंडप के साक्ष्यों को फैसले का आधार मानते हुए प्राचीन टीले पर दरगाह और कब्रिस्तान के दावे को खारिज कर दिया। लाक्षागृह की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई।
जागरण संवाददाता, राजीव पंडित, बड़ौत। अपनी ही प्राचीन धरोहर को पाने के लिए 53 साल आठ महीने 20 दिन का समय लग गया, तब जाकर सिद्ध हुआ कि यह महाभारतकाल का लाक्षागृह ही है। इतने लंबे समय में अदालत में लगभग 875 तारीखें लगीं, जिनमें वादी और पैरोकार तर्क-वितर्क में लगे रहे। इनमें से कई लोगों की मौत भी हो चुकी है।
यह भी इत्तेफाक ही है कि प्राचीन काल से जुड़े इस मामले में भी फैसला अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा और वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर में हिंदू पक्ष को पूजा का अधिकार मिलने के बाद बाद आया है।
ऊंचे टीले पर लाक्षागृह
बरनावा गांव में सड़क किनारे ऊंचे टीले पर लाक्षागृह है। बरनावा गांव के रहने वाले मुकीम खां ने 31 मार्च 1970 में मेरठ की अदालत में वाद दायर कर इसे कब्रिस्तान और बदरुद्दीन की दरगाह बताते हुए दावा ठोक दिया कि यहां पर लाक्षागृह कभी था ही नहीं। अदालत में प्रतिवादी कृष्णदत्त जी महाराज ने प्राचीन टीले को लाक्षागृह होने का दावा करते हुए साक्ष्य पेश किए।ये भी पढ़ेंः Murder Of Sister: मोबाइल देखते-देखते हैवान बन गया भाई; भूल गया वो उसकी बहन है...फिर राज छिपाने के लिए किया कत्लवादी-प्रतिवादी अदालत में साक्ष्य समय-समय पर पेश कर इस लड़ाई को लड़ते रहे। वादी और प्रतिवादी की मौत होने के बाद केस की पैरवी दूसरे लोगों ने करनी शुरू कर दी। वर्ष 1997 में मेरठ को विभाजित कर बागपत को जनपद बनाया गया तो यह वाद बागपत की अदालत में ट्रांसफर हो गया। यानी दोनों ही जनपदों में वाद की सुनवाई लगभग 27-27 साल हुई।
ये भी पढ़ेंः UP News: सिविल जज ज्योत्सना राय सुसाइड केस में सामने आया नया मोड; मौत से पहले इन लोगों से की थी बात, काल डिटेल में...31 मार्च 1970 में दर्ज इस वाद की सुनवाई पांच फरवरी 2024 को पूरी हुई। जानकारी लगी है कि दोनों जनपदों की अदालतों में इस दौरान 875 तारीखें लगाई गईं। इतिहास में झांकें तो यह केस मंगलवार के दिन दर्ज हुआ था जबकि इसका फैसला सोमवार के दिन आया है। प्रतिवादी पक्ष के पैरोकार विजयपाल बताते हैं कि चाहे कुछ भी हो, वह हर तारीख पर अदालत में पहुंचते थे।
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