Bahraich News: नवजात मृत्यु दर पर काबू पाने के लिए राजकीय मेडिकल कालेज करेगा अमेरिकी संस्था 'राइस' से करार
बहराइच नीति आयोग की स्वास्थ्य सेवाओं की रैंकिंग के मामले में नीचे से चौथे पायदान पर खड़े बहराइच समेत तराई एवं पड़ोसी राष्ट्र नेपाल की धरती पर जन्म लेने वाले प्री-मेच्योर नवजात शिशुओं के लिए सुखद खबर है। राजकीय मेडिकल कालेज अमेरिका की संस्था राइस से समझौता करेगा।
By Jagran NewsEdited By: riya.pandeyUpdated: Thu, 08 Jun 2023 05:12 PM (IST)
बहराइच (मुकेश पांडेय) : नीति आयोग की स्वास्थ्य सेवाओं की रैंकिंग के मामले में नीचे से चौथे पायदान पर खड़े बहराइच समेत तराई एवं पड़ोसी राष्ट्र नेपाल की धरती पर जन्म लेने वाले प्री-मेच्योर नवजात शिशुओं के लिए सुखद खबर है। राजकीय मेडिकल कालेज समय से पहले और कम वजन पर ही जन्म लेने वाले शिशुओं की इलाज की व्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाने के लिए अमेरिका की संस्था रिसर्च इंस्टिट्यूट फार कंपैस्नेट इकोनामिक्स (राइस) से समझौता करेगा।
जून माह के दूसरे सप्ताह में मेमोरेंडम अंडर आब्जर्वेशन (एमओयू) पर हस्ताक्षर होने की तैयारी चल रही है। इससे तराई में 36 हफ्ते से कम समय और 1800 ग्राम से कम वजन में ही जन्म लेने वाले बच्चों की जिंदगी में उम्मीद की किरण नजर आयेगी।
गरीब व कुपोषित बच्चों की मृत्यु दर में कमी लाने में सफल रहा बहराइच मेडिकल कालेज
उत्तर प्रदेश देश के उन राज्यों में शामिल है, जहां गरीबी एवं कुपोषण के कारण 20 प्रतिशत बच्चे कम वजन के साथ जन्म लेते हैं। यहां प्रति एक हजार बच्चों में 44 की मौत हो जाती है। स्वास्थ्य की लिहाज से पिछड़े जिलों में शुमार बहराइच में यह संख्या कहीं अधिक है। हालांकि बहराइच मेडिकल कालेज ने इस दिशा में ठोस पहल से पिछले दो वर्ष के दौरान मृत्यु दर में कमी लाने में सफलता हासिल की है।
राजकीय मेडिकल कालेज में स्थापित है देश की सबसे बड़ी 17 बेड की 'कंगारू मदर केयर यूनिट'
राजकीय मेडिकल कालेज में स्थापित स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) की वेंटिलेटर आधारित बेड के अलावा यहां देश की सबसे बड़ी 17 बेड की 'कंगारू मदर केयर यूनिट' स्थापित है जबकि सफदरजंग दिल्ली हास्पिटल में महज 12 बेड की यूनिट है। इस यूनिट की कमान डा. परवेज, डा. अरविंद शुक्ल, डा. असद अली के साथ ही प्रबंधन निखिल श्रीवास्तव के हाथों में है।
कम वजन और 40 सप्ताह से पहले जन्मे 600 बच्चों की निगरानीप्राचार्य डा. संजय खत्री ने बताया कि इस यूनिट में ढाई किलोग्राम से कम वजन और 40 सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की देखरेख की जाती है। इस दौरान मां को बच्चे की देखभाल का तरीका सिखाया जाता है। जब अस्पताल प्रबंधन बच्चे और मां के बीच चिकित्सकीय दृष्टि से समझदारी विकसित होने को लेकर संतुष्ट हो जाता है तब जच्चा-बच्चा को घर भेजा जाता है। इसके बाद हर दूसरे दिन फोन या मोबाइल पर 'कॉल' कर बच्चे के वजन और शारीरिक परिवर्तन की जानकारी ली जाती है। अगर कोई दिक्कत होती है तो फिर से अस्पताल बुलाया जाता है। इस समय लगभग 600 नवजात शिशुओं की निगरानी की जा रही है। इकाई की सफलता को देखते हुए अमेरिकी संस्था राइस से समझौते का फैसला किया गया है।
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