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कहीं रेत की जमीनी प्लेटफार्म तो नहीं रिग बंधा टूटने की मूल वजह

कहीं रेत की जमीनी प्लेटफार्म तो नहीं रिग बंधा टूटने की मूल वजह

By JagranEdited By: Updated: Wed, 18 Sep 2019 06:20 AM (IST)
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कहीं रेत की जमीनी प्लेटफार्म तो नहीं रिग बंधा टूटने की मूल वजह

लवकुश सिंह, बलिया

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जिले के बैरिया तहसील में दुबेछपरा रिग बंधा बहुत पहले से ही अंतिम सांसें गिन रहा था। यहां बंधे की मजबूती और कटान रोकने के नाम पर सरकारी तौर पर काफी धन खर्च हो चुके हैं। इसके बावजूद भी यह बंधा सुरक्षित नहीं हुआ। पूरे जिले में इस रिग बांध की चर्चा हो रही है। तटवर्ती लोग बताते हैं कि दूबेछपरा में जब कटानरोधी कार्य कराया जा रहा था तब कटान स्थल पर जमीनी सतह से मड पंप के द्वारा रेत का प्लेटफार्म तैयार किया गया था, इसलिए कि मौके पर बोरी कम लगे और उसके साथ ही मजदूर और अन्य मामले में भी बचत हो सके। वह प्लेटफार्म जमीनी सतह से लगभग 10 से 15 फीट ऊंचाई में तैयार किया गया था। उसके बाद उस स्थान पर बोल्डर या बोरी डाला गया था। इसलिए कटानरोधी कार्यों की नींव ही हर जगह कमजोर हो गई। नतीजा यह निकला कि जब गंगा नदी उफान पर हुई तो बंधे के नीचे से एक स्थान पर पानी का रिसाव होने लगा और कुछ ही घंटों बाद यह रिग बंधा टूटकर दर्जन भर गांवों की आबादी को बाढ़ के चपेट में ले लिया। हालांकि विभाग इसके पीछे कुछ ही वजह बताने में जुटा है।

रिग बंधा टूटने के 24 घंटे के अंदर ही मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मौके का जायजा लेकर पीड़ितों को बड़ी राहत देने का काम किए। पानी कम होने के बाद कटानरोधी कार्य भी पक्का कराने का आश्वासन भी दिए, लेकिन पीड़ित लोग मानते हैं कि यहां पूर्व में हुए कटानरोधी कार्य की जांच सबसे अहम बिदु है। दूबेछपरा की तरह अन्य स्थानों पर भी कटानरोधी कार्य के जमीनी प्लेटफार्म तैयार करने में इसी तरह के घालमेल की बात इलाकाई लोग बताते हैं। हर जगह जमीनी प्लेटफार्म में ठेकेदारों व विभाग के गबन के राज दफन हैं। यदि मुख्यमंत्री सभी स्थानों की विधिवत जांच करा दें तो बहुतों की गर्दन फंसनी लगभग तय है।

दूबेछपरा के मामले में यह बात सबको ताज्जुब में डाल रही है कि 29 करोड़ खर्च होने के बाद भी यहां के हालात क्यों नहीं बदले। इस क्षेत्र के लोगों ने बताया कि वर्ष 2016 में जब रिग बंधा टूटा था उसके बाद से ही यहां कटानरोधी कार्य शुरू हुआ। कटान स्थल पर जमीनी सतह से प्लेटफार्म बनाया जा रहा था तभी गांव के लोगों ने उस पर अपना विरोध किया था लेकिन उस वक्त किसी ने गांव के लोगों की बातों की तवज्जो नहीं दिया। इधर 15 दिन पहले पहली बार गंगा नदी जब उफान पर हुई, तब भी रिग बंधा का 60 फीसद हिस्सा कट गया था, लेकिन उसके तुरंत बाद पानी कम होने लगा, तब झाड़-झंखाड़ डालकर किसी तरह स्थिति को नियंत्रित किया गया। उस समय भी यदि संबंधित विभाग सचेत हाल में काम कराता तो आज यह दिन नहीं देखने पड़ते, लेकिन पानी कम होने के साथ ही विभाग पूरी तरह सुस्त पड़ गया। सभी मान लिए कि अब दूबे छपरा रिग बांध को कोई खतरा नहीं है।

बंधा टूटने के बाद भी नहीं हुए सचेत

सभी को याद है दो साल पहले 27 अगस्त 2016 को यह बंधा दिन में ही टूट गया था। इसके बावजूद भी विभागीय अधिकारी सचेत नहीं हुए। यहां मजबूत कार्य कराने के पीछे पग-पग पर अधिकारी स्थानीय लोगों को गुमराह कर 29 करोड़ रुपये पानी में बहा दिए या गांव वालों के शब्दों में कहें तो सरकार और गांव के लोगों के साथ धोखा किए। सरकार ने तो राहत के लिए यह धन आवंटित किया था, लेकिन यहां कुछ और खेल ही शुरू हो गया।

रिग बांध टूटने से तबाही से गुजर रहे ये गांव

इस रिग बांध के घेरे में गोपालपुर, दयाछपरा, जगदेवा और टेंगरही पंचायत की उदई छपरा, प्रसाद छपरा, आलम राय के टोला, घोड़ा छपरा, बुधन चक, चितामण राय के टोला, मठिया, कीनू तिवारी के टोला, पांडेयपुर, गोपालपुर, दूबेछपरा, मिश्र के हाता, मुरलीछपरा आदि की लगभग 40 हजार की आबादी निवास करती है, जो रिग बंधा टूटने के बाद बाढ़ के पानी में तबाही की जिदगी से गुजर रही है।