मनरेगा योजना जिले में नहीं दे पा रही रोजगार की गारंटी
ए लेकिन जनपद में मनरेगा से जुड़े 219 परिवारों को ही 100
By JagranEdited By: Updated: Thu, 11 Aug 2022 05:09 PM (IST)
मनरेगा योजना जिले में नहीं दे पा रही रोजगार की गारंटी
जागरण संवाददाता, बांदा : मनरेगा योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देने की मंशा जिले में सफल नहीं हो पा रही है। वित्तीय वर्ष के चार माह बीत गए, लेकिन जनपद में मनरेगा से जुड़े 219 परिवारों को ही 100 दिन का रोजगार मिला है। इस योजना से 16,977 परिवार जुड़े हैं। जसपुरा, कमासिन और तिंदवारी ब्लाक रोजगार देने में सबसे पीछे हैं।मनरेगा योजना गरीबों के लिए मजदूरी नहीं बल्कि मजबूरी बन गई है। यहां युवाओं के लिए कोई बड़ा रोजगार न होने से खेती या फिर मनरेगा मजदूरी दो ही रोजगार के विकल्प हैं। मनरेगा योजना में प्रतिदिन 213 रुपये मजदूरी मिलती है। इसमें काम करने वाले परिवारों को मजदूरी के लिए महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं जबकि शहर व गांवों में निजी मजदूरी के कार्यों में हर रोज 400 से 500 रुपये नकद मजदूरी मिल रही है। ऐसे में तमाम गरीब परिवार मनरेगा से दूरी बना रहे हैं। इस वर्ष मनरेगा योजना का आंकड़ा देखा जाए तो अभी तक महज 219 परिवार ही ऐसे हैं, जिन्होंने 100 दिन या इससे ज्यादा काम किया है जबकि आठ ब्लाकों में 16,977 परिवार मनरेगा जाबकार्ड धारक हैं। इनमें जसपुरा में छह, कमासिन में आठ और तिंदवारी ब्लाक में सिर्फ सात परिवार ही 100 दिन मनरेगा योजना से जुड़े और कार्य किया है।
कम मजदूरी और उधारी की वजह से दूरी
बांदा : मनरेगा योजना में कम मजदूरी और उधारी के चक्कर में श्रमिक इससे दूरी बना रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि दिन भर की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद 213 रुपये मिलते हैं। उसका भी ठिकाना नहीं कि कब मिले। जबकि दूसरी जगह मजदूरी करने से इससे दोगुना और नकद पैसा मिलता है। इस महंगाई में मनरेगा मजदूरी के भरोसे खुद व बच्चों का पेट नहीं भरा जा सकता है। मनरेगा में काम करने वाले परिवारों पर एक नजर :
ब्लाक कुल परिवार 100 दिन काम करने वाले परिवारबबेरू 2352 56बड़ोखर खुर्द 1600 25बिसंडा 1996 6जसपुरा 956 8कमासिन 2217 40 महुआ 2759 40नरैनी 3042 37 तिंदवारी 2055 7-------------------------------------मनरेगा योजना में सरकार से ही मजदूरी निर्धारित होती है। कोशिश होती है कि जल्द उनकी मजदूरी का भुगतान हो। मनरेगा में मजदूरी कम होने से श्रमिक काम नहीं करना चाहते हैं। -राघवेंद्र तिवारी, उपायुक्त मनरेगा, बांदा
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