तीन दिन बीतने के बाद भी पुलिस और जेल प्रशासन के हाथ खाली हैं। जेल प्रबंधन ने अब हेड वार्डर से भी पूछताछ शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि मुख्य रूप से बंदियों और कैदियों को जेल से बाहर ले जाने और लाने में पूरी तरह जिम्मेदारी जेल वार्डर हेड वार्डर समेत बंदी रक्षकों की होती है।
जागरण संवाददाता, बरेली। सेंट्रल जेल में नियमों के साथ खेलना कोई नया काम नहीं। पहले भी नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले कई मामले सामने आ चुके हैं। अब जेल से फरार हत्यारे हरपाल के मामले में भी एक नया मोड़ आ गया है। बताया जा रहा है कि इस प्रकरण में भी जेल प्रबंधन ने नियम तोड़कर हरपाल को जेल से बाहर निकालकर कृषि कार्य करना शुरू करा दिया, जबकि उसे कम से कम 10 तक जेल की दीवारों से बाहर नहीं निकाला जा सकता था।
10 साल तक बाहर नहीं आ सकता आरोपी
जेल नियमावली के मुताबिक, जब भी किसी अपराधी को कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा मिलती है तो उसे 10 वर्ष तक जेल से बाहर नहीं निकाला जा सकता। 10 वर्ष की कैद पूरी होने के बाद उसके व्यवहार के आधार पर बाहर निकाला जा सकता है, मगर हरपाल के मामले में जेल प्रबंधन की लापरवाही कही जाए या फिर खेल...। हरपाल को पिछले वर्ष जुलाई में कोर्ट से उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
आखिर जेल प्रशासन क्यों हो रहा इतना मेहरबान?
उसे अगले 10 वर्षों तक बाहर नहीं निकाला जा सकता था, मगर जेल प्रबंधन ने उसे एक वर्ष के भीतर ही कृषि भूमि में काम करने के लिए जेल की चहारदीवारी से बाहर निकालना शुरू कर दिया। किसी ने यह भांपने का भी प्रयास नहीं किया गया कि कैदी का व्यवहार कैसा है? उसे बाहर निकालना ठीक रहेगा या फिर नहीं। यह जाने बगैर ही उससे कृषि कार्य कराया जाने लगा। शासन ने जब इस पर सवाल किया तो अब जेल प्रबंधन के पास कोई भी जवाब नहीं हैं। एक दूसरे के ऊपर बात टालकर मामले से पल्ला झाड़ रहे हैं।
इस लापरवाही में कई पर गिर सकती है गाज
शासन ने इस बात पर विस्तृत रिपोर्ट मांग ली है कि उसे किसकी अनुमति से बाहर निकाला जा रहा था। जब उम्रकैद के दोषी को 10 साल से पहले बाहर नहीं निकाला जा सकता तो उससे क्यों खेती कराई जा रही थी।
हेड वार्डर ने बताया, काम निपटाकर हाथ-पैर धोते समय मौजूद था कैदी हरपाल
सेंट्रल जेल से फरार हत्यारे हरपाल का अभी तक कोई सुराग नहीं लगा।
तीन दिन बीतने के बाद भी पुलिस और जेल प्रशासन के हाथ खाली हैं। जेल प्रबंधन ने अब हेड वार्डर से भी पूछताछ शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि मुख्य रूप से बंदियों और कैदियों को जेल से बाहर ले जाने और लाने में पूरी तरह जिम्मेदारी जेल वार्डर, हेड वार्डर समेत बंदी रक्षकों की होती है।
हेड वार्डर से पूछताछ में पता चला कि जब उन्होंने गिनती की उस वक्त हरपाल मौजूद था, वापसी के समय हाथ पैर धोए, तब तक लोगों ने उसे देखा था। हाथ पैर धोने के बाद वह कहां गया?, इस बारे में किसी को नहीं पता चला।
इस प्रकरण में जेल प्रबंधन अब पूरी लापरवाही जेल वार्डर की ही बता रहे हैं।
ये था पूरा मामला
मूलरूप से फतेहगंज पूर्वी के खनी नवादा गांव का रहने वाले हरपाल को पिछले वर्ष आजीवन कारावास हुआ था। इसके बाद उसे 2023 में दो जुलाई को सेंट्रल जेल भेजा गया था। हरपाल ने वर्ष 2017 में लिंटर डालने पर हुए एक विवाद में अपने साथियों गिरीश व रघुवर के साथ मिलकर सोनपाल की गोली मारकर हत्या की थी।
जेल पहुंचने के बाद उससे कृषि कार्य कराया जाने लगा। हर दिन की तरह गुरुवार को भी जेल के अन्य करीब 40 बंदी और कैदियों संग उसे कृषि कार्य को निकाला गया था। उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी जेल वार्डर अजय कुमार प्रथम, हेड वार्डर महावीर प्रसाद, कृषि सुपरवाइजर अनिल कुलार वह फार्म लिपिक धर्मेंद्र कुमार की थी।
इसके बाद भी वह फरार हो गया। इसके बाद मामले में जेलर नीरज कुमार के शिकायती पत्र पर इज्ज्तनगर पुलिस ने हत्यारे हरपाल, जेल वार्डर अजय कुमार प्रथम, कृषि सुपरवाइजर अनिल कुमार व फार्म लिपिक धर्मेंद्र के विरुद्ध प्राथमिकी लिखी गई। मगर अब तक उसका कोई सुराग नहीं लगा है। टीमें उसे ढूंढने में जुटी हैं।
हमारे आने से पहले ही उसे जेल से बाहर निकाला जा रहा था, इसलिए उस पर ध्यान नहीं गया, पुराने लोगों की लापरवाही रही है। बाकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जा रही है।
अविनाश गौतम, वरिष्ठ जेल अधीक्षक।
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