Actor Rajpal Yadav का 'अर्ध' के साथ ओटीटी पर आगाज, बोलेे- आम लोगों के संघर्ष की कहानी है यह फिल्म
अभिनय की पाठशाला हो चुके राजपाल हर रोल में आसानी से ढल जाते हैं लेकिन भूल भुलैया के पंडित जी और अर्ध का शिवा। दोनोंं ही करेक्टर एक दूसरे से काफी अलग हैं। फिल्म में वह किन्नर की भूमिका में भी दिखते हैं।
By Vivek BajpaiEdited By: Updated: Mon, 13 Jun 2022 09:19 AM (IST)
शाहजहांपुर, जेएनएन। दुनिया में 90 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो जीवन में बनना कुछ चाहते हैं, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारी, रोजी-रोटी की चिंता उन्हें रास्ता बदलने पर मजबूर कर देती हैं। फिर बेमन हम लोग उसी काम को करते रहते हैं। दैनिक जीवन की उथल पुथल में आधे अधूरे घूम रहे आम आदमी की जिंदगी का सच है फिल्म 'अर्ध'। मुंबई में स्ट्रगल कर रहे युवक-युवतियों की कहानी है यह फिल्म। यह कहना है अभिनेता राजपाल यादव का। भूल भुलैया-2 से जोरदार कमबैक करने वाले राजपाल की इस फिल्म को भी दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है। उनके अभिनय की काफी तारीफ हो रही हैै। ओटीटी (ओवर द टाप) प्लेटफार्म पर अपनी पहली फिल्म आने के बाद राजपाल यादव ने दैनिक जागरण से बात की। उन्होंने बताया कि फिल्म का नायक शिवा उन तमाम लोगों के संघर्ष को बताता है जो रोज कुआं खोदकर पानी पीते हैं। ऐसे लोग जिनके सपनों की चादर तो बहुत बड़ी है, लेकिन जीवन के अंत तक वह खाली हाथ ही रह जाते हैं। रोजी, रोटी और पक्की छत के बंदोबस्त में उलझे हर आम इंसान जिंदगी की कहानी है अर्ध।
हर गली-नुक्कड़ पर मिलेगा एक शिवा: राजपाल ने बताया कि वह आम जीवन में वह शिवा तो नहीं हैं, लेकिन यह करेक्टर उनसे अलग भी नहीं है। परिवार का काफी सहयोग था। खुशकिस्मत हैं जिस क्षेत्र में करियर बनाना चाहते थे वहां सफलता भी मिली, लेकिन मायानगरी आने के बाद शिवा की तरह उन्हें भी लंबा संघर्ष करना पड़ा। अगर देखेंगे तो हर शहर, हर गली, हर चौराहे हर नुक्कड़ पर एक शिवा जरूर मिल जाएगा।
जो जीवन में जीया वह पर्दे पर दिखाया: अभिनय की पाठशाला हो चुके राजपाल हर रोल में आसानी से ढल जाते हैं, लेकिन भूल भुलैया के पंडित जी और अर्ध का शिवा। दोनोंं ही करेक्टर एक दूसरे से काफी अलग हैं। फिल्म में वह किन्नर की भूमिका में भी दिखते हैं। ऐसे में क्या खास तैयारी करनी पड़ी इस रोल को निभाने के लिए। राजपाल का कहना था कुछ खास नहीं। क्योंकि जो जीवन में जीया वह पर्दे पर दिखाया है। जब छोटे तो थे गांव व शहर में बहुरूपिए आते थे। वे लोग मेकअप कर अलग-अलग किरदार में घरों व बाजारों में जाते थे। लोग उन्हें कुछ न कुछ मदद देते थे, जिससे उनका घर चलता था। इस तरह के करेक्टर नजदकी से खूब देखे। हर बार की तरह रंगमंच का अनुभव यहां भी काम आया। फिल्म के एक सीन में वह बताते हैं आडिशन देने आए हैं यूपी, शाहजहांपुर से।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।