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कोरोना की तरह सुअरों में फैलता है अफ्रीकन स्‍वाइन फीवर, चपेट में आते ही हो जाती मौत, मनुष्‍यों के लिए खतरा नहीं

बरेली में इसकी पुष्टि होने से आसपास के जिलों के सुअर पालकों में डर का माहौल है। यह बीमारी सुअरों से मनुष्यों में नहीं फैलती लेकिन मनुष्य के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान के सुअरों के तक पहुंच जाती है।

By Vivek BajpaiEdited By: Updated: Fri, 22 Jul 2022 12:39 PM (IST)
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आइवीआरआइ के वै‍ज्ञानिकों ने बरेली में एक सुअर में अफ्रीकन स्‍वाइन फीवर की पुष्टि की है।
बरेली, जागरण संवाददाता। अफ्रीकन स्वाइन फीवर (एएसएफ) को अफ्रीकी देशों से एशिया में आने में करीब 97 वर्ष लग गए, लेकिन महज चार साल में यह एशिया से भारत और बरेली में आ गया। आइवीआरआइ के पशु रोग शोध एवं निदान केंद्र के संयुक्त निदेशक डा. केपी सिंह ने बताया कि सबसे पहले वर्ष 1921 में कीनिया में इस बीमारी की हुई थी। इसके बाद यूरोप और कैरेबियाई देशों में संक्रमण पहुंचा था। एएसएफ कोरोना की तरह ही संपर्क में आने नाक, लार आदि से फैलता है।

एशिया में वर्ष 2018 में सबसे पहले चीन में इसने दस्तक दी। इसके बाद कोरिया, मंगोलिया, म्यांमार और फिलीपींस में संक्रमण की पुष्टि हुई। अगस्त 2019 में भारत में पहली बार नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश में इसने दस्तक दी। इसके बाद उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी फैल रही है। अब बरेली में इसकी पुष्टि होने से आसपास के जिलों के सुअर पालकों में डर का माहौल है। यह बीमारी सुअरों से मनुष्यों में नहीं फैलती, लेकिन मनुष्य के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान के सुअरों के तक पहुंच जाती है। खास बात यह है कि संक्रमित सुअर का मांस खाने पर भी मनुष्‍य पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

कोविड की तरह इस वायरस पर होता है लिपिड लेयर

कोरोना वायरस पर एक लिपिड लेयर होती है। वायरस स्पर्श होने पर साबुन, सैनिटाइजर आदि से धुलने पर लेयर हट जाती है और वायरस मर जाता है। इसी तरह अफ्रीकन स्वाइन फीवर पर भी लिपिड लेयर होती है। वायरस के धुलने पर उसकी मौत हो जाती है। यह संक्रमित सुअरों के फार्म के आसपास जाने वाले वाहनों के टायरों, मनुष्यों के कपड़ों आदि में चिपककर दूसरे स्थान पर सुअरों के संपर्क में आने से फैल जाता है।

अफ्रीकन स्वाइन फीवर के लक्षण

अफ्रीकन स्वाइन फीवर विषाणु जनित बीमारी है। इसका इलाज लक्षणों के अनुरूप किया जाता है। इस बीमारी से ग्रसित अधिकांश सुअरों की मौत हो जाती है। इसमें सुअर को बुखार आने के साथ ही जुकाम, आंखों से पानी भी आता है। यह बीमारी पशुओं की नाक, लार, मुंह, खून, मल और मृत पशुओं के टिश्यू से फैलती है।

एएसएफ से बचाव

  1. संक्रमित सुअरों के फार्म को कंटेन्मेंट जोन बनाते हुए आसपास एक किलोमीटर क्षेत्र प्रतिबंधित करें।
  2. संक्रमित सुअर का शव खुले में या फिर नदी नाले में न बहायें।
  3. संक्रमित सुअर को मारकर तीन फीट गहरे गड्ढे में चूना और नमक के साथ दफना दें।
  4. संक्रमित सुअरों को फार्म के बाहर न निकालें और बाहरी सुअर अंदर न आने दें।
  5. फार्म के अंदर और बाहर चूने का छिड़काव करें और बाहर चूने का घोल रखें।
  6. आने-जाने वाले लोग पैरों को चूने के घोल में भिगोकर जाएं।
  7. पशु पालकों को इस गंभीर बीमारी के बारे में जागरूक करें।
अब तक नहीं बनी वैक्सीन, सतर्कता ही बचाव

एएसएफ से बचाव की कोई वैक्सीन अब तक नहीं बनी है। केवल सतर्कता ही बचाव है। संक्रमित सुअरों को क्वारंटाइन में रखा जाता है।

संक्रमित हो गया था सुअर का मस्तिष्क और किडनी

आइवीआरआइ की टीम ने संक्रमित होने की वजह से मरे सुअर का मस्तिष्क, लिवर, हृदय, किडनी, फेफड़े और संक्रमितों सुअरों की लार एवं नाक के सैंपल लेकर जांच की। संक्रमित सुअर की किडनी काली हो गई थी, जबकि स्वस्थ सुअर की किडनी गुलाबी रंग की होती है। वहीं, मस्तिष्क जो सफेद रंग का होता है, वह खून से लथपथ था।

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