जानिए बदायूं की जामा मस्जिद का इतिहास, इल्तुतमिश ने 1210 में बनवाई थी जामा मस्जिद शम्सी
History of Badaun Jama Masjid Shamsi वाराणसी की ज्ञानवापी की तरह बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी भी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है।अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल की ओर से इसे नीलकंठ महादेव का मंदिर होने की याचिका दायर कर दी है।
By Ravi MishraEdited By: Updated: Tue, 06 Sep 2022 03:56 PM (IST)
बदायूं, जागरण संवादाता। History of Badaun Jama Masjid Shamsi : वाराणसी की ज्ञानवापी की तरह बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी भी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल की ओर से इसे नीलकंठ महादेव का मंदिर होने की याचिका दायर कर दी है।
अदालत ने सुनवाई के लिए 15 सितंबर की तारीख तय कर दी है।पक्षकारों को भी पक्ष रखने के लिए बुलाया गया है। जामा मस्जिद शम्सी सुर्खियों में आने पर इसके इतिहास की चर्चा होने लगी है।
इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि शहर के सोथा मुहल्ले के मौलबी टोला में स्थित जामा मस्जिद शम्सी की बुनियाद दिल्ली का बादशाह बनने से पहले इल्तुतमिश ने सन् 1210 में रखी थी। इतिहासकार गिरिराज नंदन की पुस्तक बदायू दर्शन में इसका उल्लेख किया गया है।
उन्होंने लिखा है कि बदायूं की जामा मस्जिद देश की प्रमुख मस्जिदों में एक है। यह मस्जिद अपने समय की वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण है।
दिल्ली के बादशाह रहे इल्तुतमिश ने 1210 में इसकी नींव तब रखी थी जब वह बदायूं का सूबेदार था। 1223 में जब इल्तुतमिश दिल्ली का बादशाह था तब बदायूं के सूबेदार उसके बूटे रुकुनुद्दीन जामा मस्जिद का निर्माण पूरा कराया, लेकिन पूर्ण रूप से 1225 में तैयार हुई थी। आज मस्जिद के आसपास घनी आबादी बस चुकी है।
पांचों वक्त के नमाज पढ़ी जाती है। जिला ए काजी की निगरानी रहती है। जामा मस्जिद शम्सी के पीछे मस्जिद मोअज्जिया भी स्थित है। इसकी नींव बदायूं पर मुस्लिम शासन प्रारंभ होने के बाद कुतुबउद्दीन ऐबन ने रखवाई थी। कुतुबउद्दीन ऐबक के शासनकाल में ही सय्यदों वाली मस्जिद का निर्माण हुआ था।
मुहल्ला सोथा में स्थित इस मस्जिद के अंदर निजामुद्दीन औलिया बैठकर इबादत किया करते थे। इसके अंदर एक कुंआ भी है, जिसे सय्यदों वाला कुआं कहा जाता है।
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