शहर से करीब पांच किलोमीटर बड़ा बाइपास की ओर निकलने पर टियूलिया गांव के शांति पाल ने सहज ही जागरण टीम को यह बताया। टीम को देखकर गांव के अन्य लोग भी वहां जुटने लगे जिसको जो पता था अपने नेता के बारे में बताने लगे। बोले 1975 का वह काला वर्ष था। गांव के पूरन लाल कहने लगे संतोष शुरू से ही बेहद मृदुभाषी रहे।
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जागरण संवाददाता, बरेली : आपातकाल के दौरान अचानक गांव में शोर उठा, एक लड़के को पुलिस पकड़कर ले गई है। अभी तीन महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी। पूरा गांव सहम गया था। धीरे-धीरे एक साल बीता। तब जेल से छूटकर युवक घर आया तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया। तभी ग्रामीण कहने लगे थे कि यह एक दिन जरूर राजनीति का महारथी बनेगा। यह सच भी हुआ। टियूलिया गांव के संतोष गंगवार आठ बार बरेली संसदीय सीट से सांसद बने। इस बार वह पार्टी का चेहरा नहीं बने, लेकिन मैदान के बाहर पार्टी को मजबूत करने को अपनी चाल चल रहे हैं।
आपातकाल के एक सप्ताह बाद ले गई थी पुलिस
शहर से करीब पांच किलोमीटर बड़ा बाइपास की ओर निकलने पर टियूलिया गांव के शांति पाल ने सहज ही जागरण टीम को यह बताया। टीम को देखकर गांव के अन्य लोग भी वहां जुटने लगे, जिसको जो पता था, अपने नेता के बारे में बताने लगे। बोले, 1975 का वह काला वर्ष था। उसी साल मार्च में संतोष गंगवार की शादी हुई थी। परिवार में खुशियों का माहौल था। उस वक्त भी संतोष आरएसएस से जुड़े थे। देश में आपातकाल घोषित हुआ तो एक सप्ताह बाद ही पुलिस ने उन्हें पकड़कर जेल में डाल दिया।
जेल से लौटने के बाद बदल गया जीवन
एक साल बाद लौटे तो फिर पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हो गए। वहीं, से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। उस वक्त संतोष गंगवार बरेली कालेज से एलएलबी कर रहे थे।
गांव के पूरन लाल कहने लगे, संतोष शुरू से ही बेहद मृदुभाषी रहे। हर किसी को सम्मान दिया। राजनीति में लगातार आगे को बढ़ते गए। कहने लगे, अगर उम्र की सीमा का चक्कर नहीं पड़ता तो इस बार भी वही वोट मांगते दिखाई दे रहे होते। गांव के ही राजीव गंगवार ने बताया कि संतोष गंगवार जमीन से जुड़े नेता हैं। उनकी सादगी ने उन्हें हमेशा लोगों के दिलों में बैठाकर रखा।
एडवोकेट वीरेंद्र वर्मा से सीखे राजनीति के गुर
सांसद संतोष गंगवार के राजनीतिक गुरु तत्कालीन बरेली नगर पालिका परिषद के सभासद एडवोकेट वीरेंद्र वर्मा ने उन्हें राजनीति के गुर सिखाए। सांसद बताते हैं कि उस वक्त कांग्रेस का दौर हुआ करता था। बहुत कठिन होता था हमारे लिए। कोई आगे नहीं बढ़ने देता था। बावजूद इसके कभी मेहनत नहीं छोड़ी।
पार्टी को मजबूत स्थिति पर पहुंचाया। चुनाव प्रचार के लिए गांवों में दूर-दूर तक चले जाते थे। शुरुआत में पैदल ही गांवों में प्रचार-प्रसार किया। फिर बाइक से प्रचार में जाते थे। धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र को करीब से जान लिया। बाद में लोग अपने बनते चले गए। सबका साथ मिला और आगे बढ़ते गए। उनकी गिनती देश के चुनिंदा सांसदों में होती है।
10 चुनाव लड़े, आठ बार रहे सांसद, मंत्री भी बने
सांसद संतोष गंगवार ने वर्ष 1981 में भाजपा के टिकट पर सबसे पहले सांसदी का चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1989 में वह फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत का सेहरा उनके सिर सजा। इसके बाद वह लगातार चुनाव जीतते रहे।
वर्ष 1991, 1996, 1998, 1999, 2014, 2019 में वह बरेली सीट से सांसद बने। वर्ष 2009 में वह चुनाव नहीं जीत पाए। 13वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी सरकार में वह पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री के साथ-साथ संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनाए गए। वह विज्ञान एवं तकनीकी राज्यमंत्री भी रहे हैं।
केंद्रीय राज्यमंत्री भी बने।
बरेली में विकास पुरुष के रूप में पहचान
बरेली में संतोष गंगवार विकास पुरुष के नाम से प्रसिद्ध हैं। साल 1996 में वह शहरी कोआपरेटिव बैंक की स्थापना को लेकर पूरी तरह सक्रिय थे। 1996 की शुरुआत में वह इस बैंक के चेयरपर्सन के रूप में कार्यरत रहे। बरेली में पुलों का निर्माण, रेलवे स्टेशन का निर्माण, मिनी बाइपास सहित तमाम प्रोजेक्ट्स के निर्माण का श्रेय संतोष गंगवार को ही जाता है। संतोष गंगवार का विवाह मार्च 1975 में सौभाग्य गंगवार से हुआ। उनका एक पुत्र और एक पुत्री है।
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