Move to Jagran APP

सोच से फैली स्वच्छता: कॉलोनियों का कूड़ा बनने लगा सोना, 140 करोड़ रुपये का बजट तैयार

बरेली की नगर आयुक्त निधि गुप्ता वत्स ने स्वच्छता की सोच में छिपे सवाल का जवाब तलाशा तो नया रास्ता मिला। इसे नाम दिया गया- जीरो वेस्ट कालोनियां। एक वर्ष पहले उन्होंने इस पर काम शुरू किया जिसका सुफल गांधीपुरम मौलानगर कॉलोनी के रूप में सामने आया। इन दोनों कॉलोनियों का गीला कूड़ा घरों में निस्तारित होता है और सूखा कूड़ा कॉलोनी के मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) सेंटर में।

By Jagran News Edited By: Shivam Yadav Updated: Thu, 01 Aug 2024 06:05 PM (IST)
Hero Image
बरेली के गांधीपुरम में एमआरएफ सेंटर से कूड़ा छंटाई करते नगर निगम के कर्मचारी। जागरण
नीलेश प्रताप सिंह, बरेली। कूड़े का ढेर यानी गंदगी का दाग और पर्यावरण को खतरा। यह ढेर लगने ही क्यों दिया जाए...? नगर आयुक्त निधि गुप्ता वत्स ने स्वच्छता की सोच में छिपे सवाल का जवाब तलाशा तो नया रास्ता मिला। इसे नाम दिया गया- जीरो वेस्ट कालोनियां। 

एक वर्ष पहले उन्होंने इस पर काम शुरू किया, जिसका सुफल गांधीपुरम, मौलानगर कॉलोनी के रूप में सामने आया। इन दोनों कॉलोनियों का गीला कूड़ा घरों में निस्तारित होता है और सूखा कूड़ा कॉलोनी के मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) सेंटर में। 

इन कॉलोनियों की छह हजार से ज्यादा आबादी को संतोष है कि उनके घरों का कूड़ा ट्रंचिंग ग्राउंड का ढेर ऊंचा नहीं कर रहा। इसके बजाय घरों के गार्डन-पार्क के लिए जैविक खाद और कबाड़ के रूप में आय सृजित कर रहा। अब यह मॉडल शहर के सभी 80 वार्डों में लागू किया जा चुका है। नगर आयुक्त ने लक्ष्य बनाया कि इस वर्ष के अंत तक प्रत्येक वार्ड को जीरो वेस्ट बनाएंगे। 

आईएएस निधि गुप्ता वत्स बताती हैं कि कुछ शहरों के एमआरएफ सेंटर में सूखे कूड़े (प्लास्टिक, गत्ता आदि) का निस्तारण होते देखा मगर, गीले कूड़े (सब्जियों आदि का) का क्या...? इसके निस्तारण की जिम्मेदारी उन्हीं लोगों को सौंपना तय की, जहां से यह निकलता है। 

गांधीपुरम और मौलानगर के 10-10 प्रबुद्ध लोगों की स्वच्छ वातावरण प्रोत्साहन समितियां बनवाईं। उनकी सहायता से प्रत्येक परिवार में होम कंपोस्टिंग बनवाई गई। इसके अंतर्गत घरों की छत व अन्य एकांत स्थान में एक-एक ड्रम रखवाया गया। उसमें दही व गुड़ का घोल बनाया गया। 

गीला कूड़ा उसी ड्रम में डाला जाने लगा, जो कि 45 से 60 दिन में खाद में बदल गया। इस खाद का उपयोग घरों के गार्डन में होने लगा। अब सूखा कूड़ा बचा, उसके निस्तारण के लिए कॉलोनियों में ही एमआरएफ सेंटर बनवाए गए, वहां नगर निगम के कर्मचारी प्रतिदिन प्लास्टिक, लोहा-टिन, गत्ता आदि की छंटाई कर कबाड़ में बेचने लगे। 

इन दोनों कॉलोनियों में सकारात्मक परिणाम आते देख इस मॉडल को सभी 80 वार्डों में लागू कर दिया गया है। इसके लिए 10 एमआरएफ सेंटर बनाए गए। होम कंपोस्टिंग के लिए जागरूक कर अन्य कॉलोनियों में 32 कम्युनिटी कंपोस्टर फैसिलिटी स्थापित करा दिए गए। प्रत्येक वार्ड में बनाए गए स्वच्छता के ब्रांड अंबेसडर होम कंपोस्टिंग के लिए प्रेरित कर रहे हैं। 

शहरी कार्य मंत्रालय ने मॉडल को सराहा 

केंद्रीय शहरी कार्य मंत्रालय ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए सिटी इन्वेस्टमेंट्स टू इनोवेट इंटीग्रेट एंड सस्टेन परियोजना लागू की। इसके अंतर्गत देश के 100 स्मार्ट सिटीज से प्रस्ताव मांगे गए थे। इनमें 18 शहरों के प्रस्तावों का चयन किया गया, जिसमें बरेली भी शामिल था। 

जून में केंद्रीय शहरी कार्य मंत्रालय और सहयोगी फ्रांसीसी विकास एजेंसी (एएफडी) के सामने नगर आयुक्त ने बरेली के जीरो वेस्ट मॉडल को प्रस्तुत किया। मंत्रालय ने इसकी सराहना करते हुए सभी वार्डों को जीरो वेस्ट बनाने की विस्तृत योजना मांगी, जिस पर 140 करोड़ रुपये का बजट भी तैयार हुआ। 

यह भी पढ़ें: Circle Rate: यूपी के इस जिले में आज से बढ़ गए सर्किल रेट, अब भूमि खरीदना हुआ महंगा

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।