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कांग्रेसी नेता शाहनवाज आलम बोले- जामा मस्जिद को मंदिर बताने वाली याचिका का स्वीकार किया जाना अवैधानिक

Shahnawaz Alam Statement on Badaun Jama Masjid बदायूं की जामा मस्जिद पर पर हिंदू महासभा के मंदिर होने की याचिका को लेकर कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने बयान जारी किया हैं।उन्होंने याचिका के स्वीकार करने को असंवैधानिक बताया हैं।

By Ravi MishraEdited By: Updated: Tue, 06 Sep 2022 02:31 PM (IST)
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कांग्रेसी नेता शाहनवाज आलम बोले- जामा मस्जिद को मंदिर बताने वाली याचिका का स्वीकार किया जाना अवैधानिक
बदायूं, जागरण संवाददाता। Shahnawaz Alam Statement on Badaun Jama Masjid : बदायूं में जामा मस्जिद की जगह हिंदू महासभा के मंदिर होने की याचिका को अदालत में स्वीकार करने को कांग्रेस ने अवैधानिक बताया है। अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने बदायूं की 800 साल पुरानी जामा मस्जिद के मंदिर होने का दावा करने वाली हिंदू संगठनों की अर्जी को कोर्ट में मंजूर कर लेने के निर्णय को अवैधानिक बताया। उन्होंने इसे पूजा स्थल क़ानून 1991 का उल्लंघन बताते हुए उनके खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए विधिक कार्रवाई की मांग की है।

कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में प्रेस शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बदायूं की जामा मस्जिद देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है जो 1223 इस्वी में बनी थी।जिसे गुलाम वंश के शासक शम्सुद्दीन अल्तमश ने बनवाया था।मस्जिद में तब से ले कर आज तक रोज़ पांचों वक़्त विधिवत नमाज़ अदा की जाती है।आज तक कभी भी इसके मस्जिद न होने या इसके किसी मंदिर के स्थान पर बने होने का दावा किसी ने नहीं किया था, लेकिन एक साज़िश के तहत सांप्रदायिक संगठनों द्वारा इसे मंदिर होने का दावा करते हुए कोर्ट में अर्ज़ी डाल दी गई।

जिसे आश्चर्यजनक तरीके से जज ने स्वीकार कर इसकी सुनवाई के लिए मुसलमानों से जवाब भी तलब कर लिया। जबकि विधिक तौर पर इसे नियम 11 सीपीसी के तहत अदालत को प्रथम दृष्टया ही ख़ारिज कर देना चाहिए था क्योंकि यह वाद चलने योग्य ही नहीं था। दूसरे, चूंकि पूजा स्थल क़ानून 1991 स्पष्ट करता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन तक धार्मिक स्थलों का जो भी चरित्र रहा है वह बदला नहीं जा सकता (सिवाय बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि के)।

इसे चुनौती देने वाले किसी भी प्रतिवेदन या अपील को किसी न्यायपालिका, किसी न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) या प्राधिकरण (ऑथोरिटी) के समक्ष स्वीकार ही नहीं किया जा सकता। इसलिए भी इस अर्जी को क़ानूनन स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह अर्जी दाख़िल करने वाले व्यक्ति अथवा संगठन को पूजा स्थल क़ानून 1991 की धारा 3 के उल्लंघन की कोशिश करने के अपराध में इस क़ानून की धारा 6 के तहत 3 साल की क़ैद और अर्थ दंड की सज़ा सुनाई जानी चाहिए थी।

उन्होंने कहा कि सिविल जज ने इस वाद को स्वीकार कर इस क़ानून का उल्लंघन किया है जिसके कारण उनके खिलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय को विधिक कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस क़ानून के राज को खत्म करने के किसी भी षड्यंत्र को सफल नहीं होने देगी 

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