दुष्कर्म के मामले में पुलिस की लचर व्यवस्था पर Fast Track Court का एक्शन, एडीजी व एसएसपी को लिखा पत्र
पुलिस के रवैए से दो महीनों में निस्तारण होने वाले मुकदमों में सालों लग रहे हैं। पुलिस की लापरवाही को लेकर फास्ट ट्रैक कोर्ट ने एडीजी व एसएसपी को कड़ा पत्र लिखा है। रेली में क्षेत्राधिकारियों द्वारा अपने कर्त्तव्य एवं दायित्व के प्रति घोर लापरवाही बरती जा रही है। या तो पुलिस को कानून की जानकारी नहीं है या फिर पुलिस जानबूझकर मामले को लटकाए रखना चाहती है।
जागरण संवाददाता, बरेली। वैसे तो गंभीर अपराधों के मामले के त्वरित निस्तारण के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था है, लेकिन पुलिस की लापरवाही के चलते फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी मुकदमों की सुनवाई धीमी गति से चल रही है जिसका खामियाजा पीड़ित व आरोपित दोनों पक्षों को भुगतना पड़ रहा है।
जिलेभर की पुलिस के रवैए से दो महीनों में निस्तारण होने वाले मुकदमों में सालों लग रहे हैं। पुलिस की लापरवाही को लेकर फास्ट ट्रैक कोर्ट ने एडीजी व एसएसपी को कड़ा पत्र लिखा है। फास्ट ट्रैक कोर्ट-प्रथम के न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने टिप्पणी करते हुए लिखा कि चार्जशीट में क्षेत्राधिकारी का नाम स्पष्ट नहीं होता। ना ही आरोप पत्र प्रेषित करने की तिथि अंकित होती है।
जानबूझकर मामले को लटकाना चाहती है पुलिस
ऐसा प्रतीत होता है कि बरेली में क्षेत्राधिकारियों द्वारा अपने कर्त्तव्य एवं दायित्व के प्रति घोर लापरवाही बरती जा रही है। या तो पुलिस को कानून की जानकारी नहीं है या फिर पुलिस जानबूझकर मामले को लटकाए रखना चाहती है। कोर्ट ने बीते वर्ष थाना भमोरा क्षेत्र के दुष्कर्म के एक मामले में तल्ख टिप्पणी के साथ विवेचक की गिरफ्तारी के आदेश दिए हैं।चार्जशीट में खेल, 14 गवाहो में 11 का नंबर समान
भमोरा थाने के दुष्कर्म के जुड़े मामले में विवेचक ने चार्जशीट में कुल 14 गवाहों का उल्लेख किया जिनमें से 11 गवाहों का मोबाइल नंबर एक ही है। जो अपने में आश्चर्यजनक है। दारोगा सतेंद्र कुमार ने अपना निजी मोबाइल नंबर भी चार्जशीट में नहीं लिखा।
चार्जशीट में ना तो तत्कालीन थाना प्रभारी परमेश्वरी का नाम दर्ज है और ना पुलिस क्षेत्राधिकारी का नाम ही लिखा गया है। सीयूजी नंबर से पुलिस कर्मचारियों को बतौर गवाह बुलाने में खासी परेशानी होती है। चार्जशीट में पुलिस अधिकारियों व सरकारी गवाहों के व्यक्तिगत मोबाइल नंबर लिखने की व्यवस्था की गई है ताकि ट्रांसफर की हालत में गवाहों को कोर्ट में आसानी से तलब किया जा सके।
अधिकतर मामलों में बरती जा रही लापरवाही
अदालत ने कहा कि जिले भर की पुलिस कार्रवाई के दौरान अधिकतर मामलों में लापरवाही बरत रही है। पुलिस क्षेत्राधिकारी व थाना प्रभारी चार्जशीट में अपना नाम तक अंकित नहीं कर रहे। उनके मात्र अपठनीय हस्ताक्षर ही होते हैं। जिन मामलों को मात्र दो माह में निस्तारित हो जाना चाहिए उनके निस्तारण में समय की भारी बर्बादी होती है। पुलिस की लापरवाही से मुकदमे के ट्रायल अटके पड़े हैं।
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