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गांधी जयंती स्पेशल : ट्रेन की बोगी से पांच मिनट में जीवन का दर्शन

महात्मा गांधी अपने शहर आ रहे हैं। यह शब्द कानों में जैसे ही पड़े तो शरीर में स्फूर्ति आ गई। यह कहना है वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. नानक चंद्र मेहरोत्रा।

By JagranEdited By: Updated: Sat, 29 Sep 2018 03:41 PM (IST)
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गांधी जयंती स्पेशल : ट्रेन की बोगी से पांच मिनट में जीवन का दर्शन

जेएनएन, शाहजहांपुर। महात्मा गांधी अपने शहर आ रहे हैं। यह शब्द कानों में जैसे ही पड़े तो शरीर में स्फूर्ति आ गई। बात 16 अक्टूबर 1946 की है। मैं तो तब 14 का था। गांधी जी के बारे में काफी सुना था। हां, उन्हें देखा कभी नहीं था। यह अवसर उस दिन शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन पर साकार हुआ। बापू की यादें ताजा होते ही अतीत में खो गए वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. नानक चंद्र मेहरोत्रा।

एसएस कालेज के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हैं डॉ. मेहरोत्रा। बापू का जिक्र उनकी आंखों में चमक बिखेर देता है तो शब्दों में ऊर्जा भर देता है। तो बात उन्हीं के शब्दों में..। उस दिन सुबह के दस बज रहे थे। गांधी जी के आने की अचानक चर्चा हुई तो सहसा यकीन नहीं हुआ। पूछने पर पता चला कि गाधी जी ट्रेन से बंगाल के नोआखली जा रहे हैं। उनकी ट्रेन कुछ देर यहा भी रुकेगी। बापू को देखने की हसरत लिए कदमों ने स्टेशन की दौड़ लगा दी। दोपहर करीब 12 बजे गए थे। स्टेशन पर काफी भीड़ थी। तब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बसंतलाल खन्ना समेत कई लोग वहा पर थे। कुछ देर बाद ट्रेन आकर रुकी। बोगी के दरवाजे पर जैसे ही गाधी जी आकर खड़े हुए तो स्टेशन जयकार से गूंजने लगा। बापू कुछ नहीं बोले। उन्होंने मुंह पर अंगुली रख रखी थी। सफेद धोती पहने बापू इस तरह से शात रहने का संदेश दे रहे थे। क्योंकि, उस समय नोआखली में दंगे हो गये थे। वह उन्हें शात कराने जा रहे थे। करीब पाच मिनट बाद ट्रेन रवाना हो गई। बापू उन पांच मिनट ने जीवन का दर्शन दे गए। शांति का। धैर्य का वह दर्शन मेरे जेहन में ताजा है।

--भीड़ चीर कर देखा वह महान व्यक्तित्व

गांधी जी जब नोआखली जाते वक्त यहां आए तब मैं भी उन्हें देखने पहुंचा था। भारी भीड़ थी प्लेटफार्म पर। मेरी उम्र तब 12 साल थी। काफी इंतजार के बाद ट्रेन आयी। महात्मा गाधी व भारत माता की जय के नारे लगने लगे। बापू बोगी के दरवाजे पर आए। प्लेटफार्म नीचा था और भीड़ काफी अधिक। आखिर भीड़ में घुसकर किसी तरह आगे तक पहुंच सका और उस महान व्यक्तित्व के दर्शन कर पाया। घर आकर सभी को बताया। कई दिनों तक लोगों को बताता रहा। उस पल को मैं अब तक तक नहीं भूला हूं।

-विश्वनाथ दीक्षित, सेवानिवृत्त डायट शिक्षक

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