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Jagran Special : बरेली शहर के इस मुहल्ले में लगती थी कभी अदालत Bareilly News

कोट मुहल्ले के अलावा रोहली टोला में भी अंग्रेजों के समय में लड्डन साहब के फाटक में अदालत लगती थी।

By Ravi MishraEdited By: Updated: Sat, 14 Mar 2020 06:45 PM (IST)
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Jagran Special : बरेली शहर के इस मुहल्ले में लगती थी कभी अदालत Bareilly News
बरेली, अविनाश चौबे : रुहेलों के आने से पहले बरेली (तब उत्तरी पांचाल) में कठेरिया राजपूतों का अधिपत्य था। सन 1500 ईसवी में राजा जगत सिंह कठेरिया ने अपने राज्य की स्थापना जगतपुर से की थी। यह जगह अब एक मुहल्ले जगतपुर के तौर पर पहचानी जाती है, लेकिन इतिहासकारों के अनुसार यही वह जगह थी, जहां से पहली बार बरेली शहर की नींव पड़ी। बरेली के इतिहास पर लिखी पुरानी किताबों में इसका उल्लेख मिलता है। यह भी उल्लेख है कि राजा जगत सिंह के बेटे बरल देव के नाम पर ही शहर का नाम बरेली पड़ा। मुगलों ने राजा जगत सिंह से यह इलाका 1569 ईसवी में छीन लिया लेकिन तब भी इसका नाम बरेली ही रहा। शहर के जगतपुर और कोट मुहल्लों में नई बरेली की पुरानी निशानियों के इतिहास और वर्तमान की पड़ताल ।

बरेली.. एक शहर जो सांसें लेता है हमारे भीतर। जो हमारी रगों में दौड़ता है और हमारे भीतर हर वक्त जिंदा है धड़कन बनकर। जिसकी मिट्टी की सोंधी खुशबू हमें सुकून पहुंचाती है। यकीन मानिए, यह शहर जितना बाहर आबाद है, उतना ही हमारे भीतर भी जिंदा है। हमारे वजूद का एक अहम हिस्सा बनकर। हम सभी जो इस शहर में रह रहे हैं चाहे यहां जन्म लिया हो या हमारी कर्मभूमि यहां हो, क्या हमने कभी कोशिश की इस शहर के अतीत में झांकने की.? जब किसी ने चाहा भी तो कभी वक्त न मिला तो कभी मुकम्मल इतिहास बताने वाली सामग्री। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि बरेली शहर की बसावट कहां और कब शुरू हुई।

कुछ इतिहासकारों के मुताबिक सन् 1500 ई. में राजा जगत सिंह कठेरिया ने मौजूदा जगतपुर मुहल्ले में बरेली की नींव रखी। यह क्षेत्र अब भी पुराने शहर का बड़ा आवासीय इलाका है। इलाके के कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि जगतपुर का पूरा नाम जगतपुर बेगम है, जो पुराने सरकारी दस्तावेजों में आज भी दर्ज है, जिसका रकबा उस समय काफी बड़ा था। बाद में नए-नए मुहल्ले बसते गए, तो इसका रकबा घटता गया, लेकिन पुराने शहर के तमाम मुहल्ले आज भी जगतपुर बेगम में ही आते हैं।

इतिहासकार अब्दुल अजीज खां आसी ने अपनी किताब ‘तारीख-ए-रुहेलखंड’ में लिखा है कि सन् 1537 में राजा जगत सिंह और उनके बेटों बासदेव और बरलदेव ने यहां एक किले का निर्माण कराया। कुछ इतिहासकार समापवर्ती मुहल्ला कोट में किला निर्माण की बात भी लिखते हैं। तब इस किले के आसपास ही धीरे-धीरे एक छोटे शहर ने आकार लेना शुरू किया। हालांकि वर्तमान समय में दोनों ही स्थानों पर किले के अवशेष तक नहीं मिलते। नई बस्तियां बस गई हैं। अतीत छिप गया है और नए मकान सिर उठाए खड़े हैं।

अब्दुल अजीज खां आसी ने अपनी किताब ‘तारीख-ए-रुहेलखंड’ में लिखा है कि राजा जगत सिंह के दोनों बेटे बांसदेव और नागदेव हुमायूं के दौर में मारे गए। तब कठेरिया वंश के किले को भी ध्वस्त कर दिया।

रजा लाइब्रेरी रामपुर से प्रकाशित किताब ‘रुहेलखंड 1857’ में जिक्र आया है कि राजा जगत सिंह के जिन बेटे बरल देव के नाम पर पर जिले का नाम बरेली पड़ा, उन्हें मुगल सम्राट अकबर के सेनाधिकारी अब्बास अली खां गर्गशशी ने 1569 ईसवी में आक्रमण कर पराजित किया था।

बरेली का इतिहास लिखने वाले प्रो. गिरिराज नंदन ने अपनी पुस्तक ‘बरेली’ में लिखा है कि मुगल बादशाह अकबर ने 1556 में बरेली पर अधिकार कर लिया। तब शहर के नाजिम रहे एन-उल-मुल्क ने पुराने शहर के वर्तमान घेर जाफर खां में एक मस्जिद का निर्माण कराया तथा एक बाग लगवाया। लगभग सौ वर्ष तक यहां आबादी बढ़ती रही।

अंग्रेजी हुकूमत में मिले खान बहादुर के दो खिताब

बरेली कॉलेज प्रबंधक कमेटी के उपाध्यक्ष काजी अलीमुद्दीन बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत में उनके परिवार को दो खान बहादुर के खिताब मिले, जिसमें से एक उनके दादा मरहूम काजी नसीरुद्दीन अहमद को मई 1937 में रुहेलखंड बरेली यूनाईटेड प्रोवेंस के लिए मिला, जबकि दूसरा खिताब उनके दादा के वालिद महरूम हाफिज काजी कुतुबद्दीन अहमद को जनवरी 1914 में मिला। उन्होंने बताया कि इन दोनों खिताब के साइटेशन आज भी विक्टोरिया मैमोरियल म्यूजियम कोलकाता में सुरक्षित रखे गए हैं। उनके दादा और फिर उनके वालिद काजी अनीसुद्दीन शहर के चेयरमैन भी रहे। अलीमुद्दीन बताते हैं कि जगतपुर मुहल्ला राजा जगत सिंह ने बसाया था, वहां एक बेगम बाग नाम से जगह भी है, जिसके चलते मुहल्ले का नाम जगतपुर बेगम कहा जाता था।

जगतपुर में राजा जगत सिंह ने करीब पांच सौ साल पहले बरेली की स्थापना की। लगभग सभी इतिहासकारों ने तो यह लिखा ही है, इलाके के बुजुर्गो के मुंह से भी यही सुना है, लेकिन उनका बनवाया कोई किला या महल क्षेत्र में कहीं नहीं है। बुजुर्ग जरूर इसके होने का जिक्र करते थे। मुहल्ला कोट में जरूर वह स्थान आज भी है, जहां उनकी अदालत लगती थी, लेकिन अब वहां भी पूरी तरह आबादी बस चुकी है। आज जरूरत इस बात की है कि जिला प्रशासन ऐसे प्राचीन स्थानों की खोज कर उन्हें संरक्षित करे और इस बारे में लोग भी जागरूक हों। - रुपेंद्र पटेल, पूर्व पार्षद जगतपुर

अंग्रेजों के समय में रोहली टोला में लगती थी अदालत

कोट मुहल्ले के पास ही रोहली टोला मुहल्ला है। स्थानीय लोगों ने बताया कि कोट मुहल्ले के अलावा रोहली टोला में भी अंग्रेजों के समय में लड्डन साहब के फाटक में अदालत लगती थी। लड्डन साहब का फाटक आज भी मुहल्ले में अस्तित्व में है, लेकिन देखभाल के अभाव में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, जो कि आने वाले समय में कोट और जगतपुर मुहल्ले स्थित राजा जगत सिंह के किलों की तरह सिर्फ लोगों की यादों में शेष रह जाएगा।

अकबर के शासनकाल में बनी मिर्जई मस्जिद

मिर्जई मस्जिद के मुतवल्ली फरीद खां कहते हैं कि बीसवीं सदी की शुरुआत में यहां पर जंगल था। जगतपुर में आज की तारीख में इस जगह को आबाद करने वाले राजा जगत सिंह की कोई निशानी नहीं मिलती। हां, उसके बाद मुगलिया दौर की कई निशानियां मौजूद हैं। मुहल्ला कोट में 500 साल पुरानी मस्जिद चिराग अली शाह है। इस मस्जिद को हजरत चिराग अली शाह ने बनवाया था। मस्जिद में ही उनकी मजार मौजूद है। ऐसी ही कुछ पुरानी निशानियां आज बची हैं।

कोट मुहल्ले में लगती थी अदालत

जगतपुर क्षेत्र के पूर्व पार्षद सरवर हुसैन ने बताया कि बुजुर्ग बताते हैं कि पुराने समय में राजा जगत सिंह की अदालत मुहल्ले में बने किले में लगती थी, लेकिन वर्तमान में यहां पर कोई किला या इसका कोई अस्तित्व नहीं है। चारों तरफ आबादी बस चुकी है। बताते हैं कि किले वाले स्थान पर भी मकान बन चुके हैं। उन्होंने बताया कि कोट मुहल्ले जैसा ही किला जगतपुर में भी बना बताया जाता था, लेकिन वर्तमान में वहां भी कोई किला नहीं है। 

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