Nag Panchami: नाग पंचमी पर बन रहे छह शुभ योग, इस समय पूजा करने से मिलेगी दोषों से मुक्ति
Nag Panchami 2024 नाग पंचमी पर इस बार छह शुभ योग बन रहे हैं। नाग पंचमी हस्त नक्षत्र के शुभ संयोग में शुक्रवार को मनाई जाएगी। पंडित मुकेश मिश्रा बताते है कि इनमें शिव वास योग सिद्ध योग साध्य योग करण योग शामिल है। इन दुर्लभ संयोगों में पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलेगी और जीवन सुख-समृद्धि से भर जाएगा।
जागरण संवाददाता, बरेली। नाग के प्रति आस्था, श्रद्धा, समर्पण का पावन पर्व नाग पंचमी इस बार छह योग के साथ ही हस्त नक्षत्र के शुभ संयोग में शुक्रवार को मनाई जाएगी। वैदिक पंचांग के अनुसार, पंचमी तिथि आठ अगस्त को देर रात 12: 36 मिनट पर शुरू होगी और नौ व दस अगस्त की मध्य रात्रि 3:14 बजे पर समाप्त होगी।
इस बार नाग पंचमी का महत्व कई गुना अधिक बढ़ गया है क्योंकि इस बार छह शुभ संयोगों का इस पर्व पर समागम रहेगा।
संकटों से मिलती है मुक्ति
पंडित मुकेश मिश्रा बताते है कि इनमें शिव वास योग, सिद्ध योग, साध्य योग, करण योग शामिल है। इन दुर्लभ संयोगों में पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलेगी और जीवन सुख-समृद्धि से भर जाएगा। बता दें, नाग पंचमी पर नाग देवता की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन का विशेष महत्व है। इस त्योहार पर नाग का प्रतीक बनाकर दुग्ध स्नान कराया जाता है।मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा से आध्यात्मिक शक्ति, मनोवांछित फल और संपन्नता आती है। इससे भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। इसी दिन कालसर्प दोष की पूजा की जाती है। माना जाता है कि अगर किसी की कुंडली में कालसर्प दोष और राहु दोष है तो इस दिन रुद्राभिषेक करने से शुभ फल मिलता है।
पूजा -विधि
नागपंचमी के दिन सुबह स्नान कर साफ सुथरे वस्त्र धारण करें। इसके बाद शिवलिंग पर जल अर्पित कर शिवजी की पूजा कर लें। इसके बाद घर के मुख्य द्वार, घर के मंदिर और रसोई के बाहर के दरवाजे के दोनों तरफ खड़िया से पुताई करें और कोयले से नाग देवताओं के चिन्ह बनाएं। इसके बाद नागदेव की पूजा की पूजा शुरू कर नागदेवता को फूल, फल, धूप, दीपक, कच्चा दूध और नैवेद्य चढ़ाएं। अंत में नाग देवता की आरती उतारें।क्या है कथा
पंडित राजीव शर्मा बताते है कि नाग पंचमी पर्व नाग पंचमी मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है। मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के बाद जो विष निकला उसे पीने को कोई तैयार नहीं था। अंत में भगवान शंकर ने उसे पी लिया भगवान शिव जब विष पी रहे थे तभी उनके मुख से विष की कुछ बुंदे नीचे गिरी और सर्प के मुख में समा गई इसके बाद से सर्प जाति विषैली हो गई। सर्पदंश से बचाने के लिए ही इस दिन नाग देवता की पूजा करी जाती है।
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