स्वतंत्रता के सारथी: तीन तलाक पीड़िताओं के लिए निकाल रहीं आजादी की राह, रूढ़ियों के विरुद्ध संघर्ष रहा सफल
दैनिक जागरण इस 15 अगस्त के उपलक्ष्य में आपको एक ऐसे स्वतंत्रता के सारथी की कहानी बताने जा रहा है जिसे जानकर आप गर्व करेंगे। यह कहानी बरेली के आला हजरत खानदान की बहू रहीं निदा खान का रूढ़ियों के विरुद्ध संघर्ष और उसके सफलता की कहानी है। इसमें उन्होंने महिलाओं को तमाम कुरुतियों से बचाकर स्वालंब बनाया और वे महिलाएं अपना सुखी जीवन जी रही हैं।
पीयूष दुबे जागरण, बरेली। मौत हो जाए तो कोई जनाजे में न जाए, ऐसे फतवे और चोटी काटने जैसी धमकियों से न डरने वाली निदा खान तीन तलाक पीड़िताओं की आवाज बनीं हुईं हैं। आला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी बनाकर वह तीन तलाक पीड़िताओं की थाने से लेकर अदालत तक कानूनी मदद करती हैं। उन्हें सिलाई-कढ़ाई, बुनाई आदि का प्रशिक्षण दिलाती हैं, ताकि जीवन- यापन की व्यवस्था हो जाए।
निदा बताती हैं कि वह आठ वर्ष से ऐसी महिलाओं को साहस देने का काम कर रही हैं। अब बस इतना अंतर आया है कि तीन तलाक का कानून बनने के बाद ऐसी घटनाएं कम हुईं हैं। नर्सरी से 12 वीं तक की पढ़ाई पन्वेंट स्कूल से करने वाली निदा बान का निकाह वर्ष 2015 में बाला हजरत खानदान के सदस्य बोरान रजा से हुआ था। अगले वर्ष ही अलगाव हो गया।
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बताया कि पिता के घर लौटीं निदा ने शीरान रजा पर दहेज प्रथा का केस किया, गुजारा भत्ता मांगा। यहीं से संघर्ष शुरू हुआ। वह कानून को सर्वोपरि मानते हुए थाने और कोर्ट की चौखट पर पहुंची तो धमकियां दी जाने लगीं। कहा गया कि उन्हें इस्लाम से खारिज किया जा रहा है। समाज के लोग उनके परिवार से कोई ताल्लुक नहीं रखेंगे।
लोग कहने लगे कि कब तक थाने चक्कर लगाएगी। मगर मैं कोर्ट कई और मुझे न्याय मिला, गुजारा भत्ता व घरेलू हिंसा मामले में कोर्ट ने मेरे पक्ष में निर्णय दिया, क्योंकि मैंने हार नहीं मानी। अब अन्य पीड़िताओं की आवाज भी उठाती हूं।
बुलंद की आवाज तो निकली राह : छह वर्ष पहले एक पीड़ित ने बताया था कि उनके साथ हलाला हुआ। उन्हें लेकर थाने पहुंचीं तो पुलिस केस दर्ज करने को तैयार नहीं थी। मगर वह न्याय की आस में डटी रहीं तो पुलिस को पीड़ित की तहरीर पर दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करना पड़ा। समाज में व्याप्त ऐसी कुरीतियों से महिलाएं अब भी आजाद नहीं हैं। इसलिए शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की।
पीड़िताओं का दोबारा घर बसायानिदा ने बताया कि मैं महिलाओं को अपना उदाहरण देकर समझाती हूं कि जिंदगी को अपने बूते जीने की आदत डालें। बीते छह वर्षों में सौ से अधिक तलाक पीड़ितों की मदद के लिए थाने, कोर्ट तक गईं। इनमें छह पीड़ितों ने दोबारा घर बसाने की इच्छा जताई थी। उनके निकाह कराए जा चुके हैं। अब तो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें, इसलिए पर्याप्त सरकारी योजनाएं भी हैं। उन्हें इन योजनाओं के बारे में भी जानकारी देकर प्रेरित करते हैं। अपने स्तर से भी प्रशिक्षण आदि कार्यक्रम के जरिये उन्हें आत्मनिर्भर बनाते हैं ताकि आर्थिक कारणों से किसी को समझौता न करना पड़े।
इसे भी पढ़ें-गोरखपुर-वाराणसी सहित कई जिलों में भारी बारिश की चेतावनी, IMD ने जारी किया अलर्टआला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी अध्यक्ष निदा खान ने कहा कि तीन तलाक पीड़ित एक झटके में ऐसी परिस्थिति में पहुंच जाती हैं, जिसकी कल्पना करना भी डरावना है। वे अपने परिवार को खोने के बाद भी मुंह खोलने से डरती हैं और न्याय मांगने थाने तक नहीं जा पातीं। आला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी के जरिये उन्हें सहारा देने का प्रयास किया जाता है, जोकि निरंतर जारी रहेगा। तीन तलाक कानून बनने के बाद स्थिति में काफी सुधार आया है, मगर इस बदलाव को समाज को भी स्वीकारना होगा।
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