सावन के महीने में शिव भक्तों से गुलजार रहती है नाथ नगरी, चारों दिशाओं में शहर की रक्षा करते हैं भोले 'नाथ'
शिवभक्तों की अपने आराध्य की भक्ति में लीन होने वाले पवित्र सावन के महीने की शुरुआत हो गई है। इस सावन के महीने में शिवभक्त भोले की भक्ति में डूबे नजर आते हैं। सावन के इस माह में यूपी के बरेली जिले का दृश्य अलौकिक होता है। पड़ोसी जिले बदायूं और शिवनगरी हरिद्वार से कांवड़िया जल भरकर बरेली के मंदिरों में चढ़ाने आते हैं।
जागरण ऑनलाइन डेस्क: शिवभक्तों की अपने आराध्य की भक्ति में लीन होने वाले पवित्र सावन के महीने की शुरुआत हो गई है। इस सावन के महीने में शिवभक्त भोले की भक्ति में डूबे नजर आते हैं। सावन के इस माह में यूपी के बरेली जिले का दृश्य अलौकिक होता है।
पड़ोसी जिले बदायूं और शिवनगरी हरिद्वार से कांवड़िया जल भरकर बरेली के मंदिरों में चढ़ाने आते हैं। इस दौरान शहर में सड़कों पर भगवा रंग नजर आता है। शिवभक्तों की सेवा में जगह-जगह रुकने के प्रबंध तमाम समाजसेवी संस्थाएं करती है। कांवड़ यात्रा मार्ग पर भंडारों का आयोजन किया जाता है।
बरेली को क्यों कहा जाता है नाथ नगरी?
सावन में बरेली में शिव के जयकारों के साथ लाखों की संख्या में शिवभक्त उमड़ते हैं। बरेली नगरी में चारों दिशाओं में भोलेनाथ (शिव) का निवास है इसलिए इसे नाथ नगरी भी कहा जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि भोलेनाथ नगर के निवासियों की चारों ओर से आने वाले संकट से रक्षा करते हैं। यहां चारों दिशाओं में भगवान शिव के सात दरबार (मंदिर) हैं जो किसी न किसी पौराणिक कथाओं से जुडे़ं हुए हैं। मंदिर से लाखों शिवभक्तों की अटूट श्रद्धा जुड़ी है। यही वजह है कि हर साल सावन में शिवभक्त हरिद्वार और कछला से गंगा जल लाकर भगवान शिव को चढ़ाते हैं।
चारों दिशाओं में बसते हैं भोले नाथ
अपने सुरमे, झुमके और बांस के लिए मशहूर बरेली की चार दिशाओं में भगवान शिव के अलग-अलग नाम से सात मंदिर स्थित हैं। यहां धोपेश्वर नाथ, अलखनाथ, त्रिवटी नाथ, मढ़ीनाथ , तपेश्वर नाथ, बनखंडी नाथ के पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है जिन्हें अब प्रदेश की योगी सराकर नाथ नगरी कॉरिडोर से जोड़ने में लगी है। इन सभी मंदिरों की अलग कथा और मान्यता है।
कैसे पड़ें मंदिरों के अनोखे नाम?
बनखंडी नाथ: नाथनगरी बरेली के बनखंडी नाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अपने गुरु के आदेशानुसार महारानी द्रौपदी ने आज की बरेली जो पूर्व में पंचालनगरी हुआ करती थी। उसके पूर्वी दिशा में जाकर वन में भगवान शिव की तपस्या की बाद में उसी स्थान पर जाकर मंदिर बना जिसे बनखंडीनाथ मंदिर कहा जाने लगा।
त्रिवटी नाथ: बरेली के उत्तर दिशा में बना यह मंदिर सन् 1474 में बना था कहा जाता है कि एक चरवाह को इस वट वृक्ष के नीचे आराम करते समय शिव के दर्शन हुए और तीन वट वृक्षों के बीच में खुदाई करने को कहा जिसके बाद खुदाई में शिवलिंग प्रकट हुए। तीन वट वृक्ष के नीचे होने की वजह से इसे त्रिवटी नाथ मंदिर कहा जाने लगा।
मढ़ीनाथ: बरेली की पश्चिम दिशा की ओर बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार जंगल में एक तपस्वी ने आने जाने वाले लोगों के लिए पानी के प्रबंध हेतु कुआं खुदवाना शुरू किया तब उस स्थान पर शिवलिंग प्रकट हुए और शिवलिंग पर मढ़ी धारण किए सांप लिपटा था जिसके बाद से इस जगह पर मढ़ीनाथ नाम से मंदिर बना जो आज के मढ़ीनाथ मुहल्ला में स्थित है।
धोपेश्वर नाथ: शहर की पूर्व दक्षिण दिशा की ओर बने इस मंदिर में धूम्र ऋषि ने कठोर तप किया और इस मंदिर में सिद्धि प्राप्त की तब से उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का धूमेश्वर नाथ नाम पड़ा जिसे अब धोपेश्वर नाथ मंदिर कहते हैं।
तपेश्वर नाथ: बरेली शहर में दक्षिण दिशा में अनेक साधू-संत और नागा बाबा निवास करते थे। उन्होंने अराधना के लिए यहां शिवलिंग की स्थापना करके कठोर तप किया जिसके बाद से इस मंदिर को तपेश्वर नाथ मंदिर कहा जाने लगा।
अलखनाथ: संतों के प्राचीन आखाडों में से एक आनंद अखाड़े के संत अलखिया बाबा ने इस स्थान अपनी साधना की और हर वक्त जलने वाली बाबा की अलख जगाई थी इसलिए उन्हीं के नाम से इस मंदिर का नाम अलखनाथ पड़ा।
पशुपतिनाथ मंदिर: नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर पीलीभीत बाईपास-बीसलपुर चौराहे पर साल 2003 में एक व्यापारी ने पंचमुखी शिवलिंग की स्थापना करवाई। नेपाल के पशुपति मंदिर की तरह होने से इस मंदिर को पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाने लगा।