समुद्री शैवाल पशुओं के लिए वरदान, रिसर्च में आए चौंकाने वाले निष्कर्ष; बढ़ाएगा गाय-भैंस का दूध, कम बीमार होगा कुत्ता
समुद्री शैवाल पशुओं के लिए एक बेहतरीन आहार है। यह गाय-भैंस के दूध उत्पादन को बढ़ाता है कुत्तों में आंत की बीमारियों को कम करता है और मानसिक तनाव को दूर करता है। आईवीआरआई के वैज्ञानिकों ने तीन साल के शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। अब इस तकनीक को एक निजी कंपनी को सौंप दिया गया है जो समुद्री शैवाल से बने खाद्य उत्पाद तैयार करेगी।
कुत्ते को 6 ग्राम और गाय-भैंस के लिए 250 ग्राम शैवाल काफी
शोध के मुताबिक एक कुत्ते के लिए प्रतिदिन छह ग्राम शैवाल मिला खाद्य पदार्थ और एक सामान्य दुधारु गाय के लिए 120 से 150 ग्राम शैवाल काफी है। वहीं, 20 लीटर से अधिक दूध देने वाली गाय के लिए प्रतिदिन यह मात्रा 230 ग्राम तक पहुंच जाएगी। भैंस के लिए 150-250 ग्राम शैवाल मिला खाद्य पदार्थ पर्याप्त है।नाम मात्र का खर्च, रोजाना खिलाएं, कोई नुकसान नहीं
प्रो. असित दास बताते हैं कि कुत्तों के लिए शैवाल (सीविड्स) मिले एक किलो बिस्कुट की कीमत करीब 170 रुपए है। एक बिस्कुट में तीन ग्राम शैवाल मिला होता है। जबकि अन्य तरह के बिस्कुट 300-450 रुपये प्रति किलो की दर पर बाजार में मिल रहा है।बताते हैं कि समुद्र तटीय क्षेत्र के बाजार में अधिकतम 170 रुपए में 100 किलोग्राम शैवाल मिलता है। सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि गाय-भैंस के लिए रोजाना 120-250 ग्राम शैवाल खिलाने पर नाम मात्र का खर्च आएगा। पशुपालकों के लिए यह काफी सस्ता एवं बजट में शामिल है। इसे पशुओं को रोजाना खिलाने पर कोई नुकसान नहीं है।शोध के लिए 25.26 लाख रुपये मिले
भारत सरकार के काउंसिल फार साइंटिफिक इंडस्ट्रियल रिसर्च कार्यक्रम के तहत इस प्रोजेक्ट पर शोध करने के लिए आइवीआरआइ बरेली को 25.26 लाख रुपये का फंड मिला था। 2022 में शुरू हुआ शोध अब पूरा होने पर इस टेक्नालोजी को मैसर्स एक्वाग्री प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली को सौंप दिया गया है। शोध करने वाली टीम में प्रो. असित दास के साथ डॉ. पुतान सिंह, डॉ. विश्वबंधु चतुर्वेदी और डॉ. जेके प्रसाद शामिल रहे।प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत समुद्र तटीय क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर झींगा पालन के साथ ही शैवाल की खेती की जा रही है। झींगा पालन के दौरान निकलने वाले नाइट्रोजन, फास्फोरस व अन्य हानिकारक तत्वों के प्रभाव को शैवाल काफी कम कर देता है। पानी को खारा होने से बचाता है। तीन वर्ष के शोध के दौरान इस शैवाल में गाय-भैंस और कुत्तों के स्वास्थ्य से जुड़े काफी बेहतर तत्व मिले हैं। भविष्य में अन्य जानवरों पर भी इसके प्रयोग का शोध संभव है।
- प्रो. असित दास, प्रधान विज्ञानी पशु पोषण आइवीआरआइ