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नष्ट की जाएंगी कैंसर की वाहक थाई मांगुर मछली

देशी मांगुर की आड़ में डायबिटीज, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की वाहक थाई मांगुर मछली का जिले में बड़े पैमाने पर पालन हो रहा है।

By JagranEdited By: Updated: Sun, 10 Feb 2019 12:40 PM (IST)
नष्ट की जाएंगी कैंसर की वाहक थाई मांगुर मछली

जेएनएन, बरेली : देशी मांगुर की आड़ में डायबिटीज, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की वाहक थाई मांगुर मछली का जिले में बड़े पैमाने पर पालन हो रहा है। कम समय में अधिक उत्पाद होने के कारण मुनाफाखोर इस प्रतिबंधित मछली का पालन कर न सिर्फ लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं।

बल्कि जल प्रदूषण को भी बढ़ा रहे हैं। इस पर एनजीटी ने सभी राज्यों में थाई मांगुर के पालन पर रोक लगा दी है। एनजीटी के आदेश के बाद डीएम ने सभी उपजिलाधिकारियों को तालाबों में पल रही इस मछली को नष्ट करने के निर्देश दिए हैं। कैंसर को देती बढ़ावा

मांसाहारी होने के कारण थाई मांगुर तालाबों की देशी प्रजातियों की मछलियों सहित वनस्पतियों को भी खा जाती है। इसे बड़ा करने के लिए पालक सड़ा गला मांस तालाबों में डालते हैं। जिससे जल प्रदूषित होता है। थाई मांगुर में हैवी मेटल भी पाया जाता है। इसे खाने से मनुष्यों में हृदय रोग, डायबिटीज, आर्थराटिस के अलावा कैंसर जैसा गंभीर रोग होने का खतरा बना रहता है। तीन लाख तक का मोटा मुनाफा

जिले की सभी छह तहसीलों में औसतन दस-दस तालाबों में थाई मांगुर का पालन हो रहा है। करीब पांच माह में यह वयस्क हो जाती है। एक तालाब में औसतन करीब 50 क्विंटल मछली पैदा होती है।

बाजार में यह सौ रुपये किलो तक बिकती है। जिले के प्रत्येक मत्स्य पालक करीब पांच लाख रुपये तक की थाई मांगुर का उत्पादन करता है। दो लाख उत्पादन में लागत आती है। तीन लाख का सीधा मुनाफा होता है। मत्स्य पालकों को देंगे नोटिस, फिर कार्रवाई

सभी तहसीलों में एसडीएम व लेखपाल मत्स्य विभाग के साथ ऐसे तालाब चिह्नित करेंगे, जहां इस मछली का पालन हो रहा है। पालकों को नोटिस दिए जाएंगे। इसके बाद भी अमल न होने पर प्रशासन खुद तालाब से यह मछली नष्ट कराएंगे, जिसका खर्च मत्स्य पालक को उठाना होगा। वर्जन

एनजीटी के आदेश पर अमल शुरू हो चुका है। डीएम के निर्देश पर सभी तहसीलों में कमेटी बना दी है। थाई मांगुर को चिह्नित करने के लिए टीम निकल रही हैं।

-सोमपाल गंगवार, प्रभारी सहायक निदेशक मत्स्य

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