Jagran Special : अज्ञातवास में पांडवों ने जिस मंदिर में मां की उपासना की थी वहां चर्मरोगो से भी मिलती है मुक्ति Bareilly News
नाथ नगरी में सिर्फ भोलेनाथ के सिद्धस्थल ही नहीं यहां मां आदिशक्ति के सिद्धपीठ भी हैं। इसमें नरियावल स्थित शीतला माता का मंदिर सबसे प्राचीन और प्रमुख है।
By Abhishek PandeyEdited By: Updated: Sat, 23 Nov 2019 01:59 PM (IST)
अविनाश चौबे, बरेली : नाथ नगरी में सिर्फ भोलेनाथ के सिद्धस्थल ही नहीं, यहां मां आदिशक्ति के सिद्धपीठ भी हैं। इसमें नरियावल स्थित शीतला माता का मंदिर सबसे प्राचीन और प्रमुख है। माना जाता है कि अज्ञातवास के दौरान सबसे पहले यहां पर पांडवों ने मां शीतला की पूजा अर्चना की, जिसके बाद से यह सिलसिला नियमित रूप से जारी है। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद को मां जरूर पूरा करती हैं, इसलिए आज भी शहर के तमाम भक्त नियमित रूप से मां के दर्शन और पूजन को मंदिर पहुंचते हैं।
अज्ञातवास में कुंती के साथ ठहरे थे पांडव
मंदिर के महंत पंडित प्रवीण शर्मा के अनुसार अज्ञातवास में पांडव कुंती के साथ एक रात्रि यहां पर पहुंचे। उस समय गांव का नाम नरबलगढ़ था। गांव में एक नरबलि नाम का दैत्य रहता था। वह प्रतिदिन गांव से एक मानव की बलि लेता था। यह बात जब पांडवों को पता चली, तो भीम ने इसका विरोध कर दैत्य को युद्ध के लिए ललकारा। भीम की चुनौती को दैत्य ने स्वीकार कर लिया। युद्ध से पहले भीम ने अपने भाइयों के साथ यहां माता शीतला की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया। फिर युद्ध में नरबल को मार दिया। कालांतर में इस जगह का नाम नरियावल हुआ। उन्होंने बताया कि इसके बाद यहां पर लगातार शीतला माता की उपासना हो रही है।
गुप्त नवरात्र में लगता है आषाढ का मेला
महंत बताते है कि चौबारी मेला के बाद दूसरा सबसे बड़ा मेला नरियावल स्थित माता शीतला के मंदिर परिसर में गुप्त नवरात्र के अवसर पर लगता है। यह मेला 15 दिन चलता है, जिसमें आस पास के गांवों के ग्रामीणों के अतिरिक्त दूर-दराज के जनपदों से भी श्रद्धालु मां के दर्शन और पूजन को आते हैं। बरेली शहर के भी तमाम देवी भक्त यहां दर्शनों को आते हैं।
मां की उपासना से मिलती है चर्म रोगों से मुक्ति महंत के अनुसार माता शीतला की उपासना से भक्तों को चर्मरोगों से मुक्ति मिलती है।इस कारण से भी काफी लाेग दूर दूर से आते है। माता की उपासना के साथ साथ वह विशेष रुप से पूजा पाठ भी करते है। जिसका उन्हें फल भी मिलता है। मंदिर में स्थित कुएं पर भी प्रसाद चढ़ाते हैं श्रद्धालुमहंत बताते हैं कि मंदिर में मुख्य रूप से माता शीतला की उपासना होती है। इसके अतिरिक्त यहां मां काली, मां दुर्गा के साथ ही बजरंगबली और राम दरबार की उपासना भी भक्त करते हैं। माता शीतला के बाद मंदिर के बाहर बने कुएं की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है, इसलिए आषाढ़ माह में लगने वाले मेले में आने वाले श्रद्धालु माता शीतला की पूजा अर्चना के बाद कुएं पर भी प्रसाद चढ़ाते हैं।
मंदिर में पूरे वर्ष भक्त मां के दर्शनों को आते हैं। नवरात्र के साथ ही दोनों गुप्त नवरात्र में भी भक्त माता की विशेष पूजा-अर्चना को मंदिर आते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि सभी समुदाय के लोग बड़ी संख्या में माता के दर्शनों को मंदिर में आते हैं। - महंत प्रवीण शर्मा
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