UP Politics: गठबंधन में 3-2 के फार्मूले की ओर बढ़ रही सपा, धर्मेंद्र यादव को मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
UP Politics भाजपा का विजय रथ रोकने की चाह में बने विपक्षी गठबंधन (आइएनडीआइए) ने सीटों का जोड़-घटाना शुरू कर दिया। प्रदेश में सपा मुख्य विपक्षी दल है इसलिए पहल उसी की ओर से हो रही। पिछले दो महीने में लखनऊ में जिलास्तरीय पदाधिकारियों की बैठकें बुलाकर एक-एक सीट का मिजाज भांपा जा चुका। अब इस होमवर्क को जमीन पर उतारने की तैयारी है।
अभिषेक पांडेय, बरेली: भाजपा का विजय रथ रोकने की चाह में बने विपक्षी गठबंधन (आइएनडीआइए) ने सीटों का जोड़-घटाना शुरू कर दिया। प्रदेश में सपा मुख्य विपक्षी दल है इसलिए पहल उसी की ओर से हो रही।
पिछले दो महीने में लखनऊ में जिलास्तरीय पदाधिकारियों की बैठकें बुलाकर एक-एक सीट का मिजाज भांपा जा चुका। अब इस होमवर्क को जमीन पर उतारने की तैयारी है। मंडल की पांच सीटों के लिए सपा 3-2 का फार्मूला अपना सकती है। यानी, तीन सीटें सपा अपने पास रखना चाहती, जबकि दो पर सहयोगियों से साझेदारी की बात हो सकती है।
बदायूं से धर्मेंद्र यादव पर दांव लगा सकती है सपा
मंडल में विपक्षी गठबंधन के दो प्रमुख दल सपा और कांग्रेस ही सक्रिय है। इनमें सपा के आंकड़े ज्यादा मजबूत हैं इसलिए नेताओं ने गठबंधन का गणित साधना शुरू किया है। बदायूं में इस बार भी सपा के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारने की तैयारी है। वह वर्ष 2009 और 2014 में जीते थे। वर्ष 2019 में भाजपा ने यह सीट छीन ली थी मगर, सपा अपना दावा कमजोर नहीं करना चाहती।
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छह बार लगातार अपना प्रत्याशी जिताने वाली पार्टी इस जिले को अपना गढ़ बताती है। यादव मतों की बहुलता के सहारे वर्ष 2019 में छिनी राजनीतिक जमीन वापस मिले, इसके लिए धर्मेंद्र यादव क्षेत्र में सक्रिय हैं।
इन दो सीटों पर भी सपा उतारेगी अपनी प्रत्याशी
जिले की दो विधानसभा सीटें (शेखूपुर व दातागंत) बरेली के आंवला संसदीय क्षेत्र में आती हैं। इस क्षेत्र में भी सपा अपना प्रत्याशी उतारने का मन बना चुकी है। स्थानीय नेताओं की ओर से लखनऊ तक संदेश दिया जा चुका कि आंवला में पार्टी प्रत्याशी हमेशा मुख्य लड़ाई में रहे हैं, इसलिए यहां कांग्रेस से साझेदारी की संभावना भी न बनाई जाए।
पार्टी ने तीसरी सीट के तौर पर शाहजहांपुर में रुख स्पष्ट कर दिया है। वहां नौ बार कांग्रेस की जीत हुई मगर, वर्ष 2014 से परिदृश्य बदल चुका है। कांग्रेस का प्रमुख चेहरा रह चुके जितिन प्रसाद अब भाजपा सरकार में मंत्री हैं। पिछले दो चुनावों से कांग्रेस मुख्य लड़ाई में तक नहीं आ सकी। ऐसे में पूर्व की दो जीत याद दिलाने वाली सपा खुद को मुख्य प्रतिद्वंद्वी बताते हुए मैदान में उतरेगी।
इन तीनों सीटों पर सपाई नेता बातचीत में अपना रुख स्पष्ट करते हैं मगर, लखनऊ से अंतिम निर्णय होना बाकी है।
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बरेली और पीलीभीत के समीकरण इन सीटों से विपरीत हैं। बरेली संसदीय क्षेत्र में आठ बार के सांसद संतोष गंगवार इस बार भी मैदान में आने का बनाए हुए हैं। भले ही दिसंबर में वह 75 वर्ष की आयुसीमा पार कर रहे मगर, उनका दावा कमजोर नहीं माना जा रहा।
भाजपा की परंपरागत सीट पर सपा से बेहतर प्रदर्शन कांग्रेस का रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए इस सीट पर सपा गठबंधन धर्म निभाते हुए कांग्रेस के प्रत्याशी पर हामी भर सकती है। पार्टी के कुछ नेता स्वीकारते हैं कि बरेली संसदीय क्षेत्र में जातिगत आंकड़े मुफीद साबित नहीं हुए हैं। पूर्व में भी कांग्रेस का हाथ थामा जा चुका, ऐसा इस बार भी दोहराया जा सकता है।
सबसे दिलचस्प स्थिति पीलीभीत की है। यह सीट मेनका गांधी, फिर वरुण गांधी के पास रही। बीते चुनाव में वरुण गांधी भाजपा प्रत्याशी रूप में जीते थे मगर, अब स्थिति बदल चुकी है। उनका अगला कदम क्या होगा, इस पर कयास लग रहे। इस गहमागहमी के बीच सपा नेतृत्व नया प्रयोग करने का मन बना चुका है।
दो महीने पहले लखनऊ में हुई बैठक में पार्टी अध्यक्ष संकेत दे चुके कि पीलीभीत के समीकरण पर उनकी निगाह है। उनके रुख के बाद माना जा रहा कि पार्टी वहां चौंकाने वाला निर्णय कर सकती है। यह सीट गठबंधन के लिए छोड़ी जा सकती या किसी को समर्थन भी दिया जा सकता है।