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कोल्हू की कहानी पूछ रही नई पीढ़ी

By Edited By: Updated: Sun, 15 Dec 2013 10:20 PM (IST)
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नागेंद्र सिंह

भदोही : किसानों के दरवाजे पर पड़े नक्काशीदार विशाल कोल्हू नई पीढ़ी के लिए कौतूहल का विषय साबित हो रहे हैं। बड़े बुजुर्गो से बच्चे पूछने लगे हैं कि कैसा है यह पत्थर।

कोल्हू का नाम सुनते ही गन्ने के रस व गुड़ की सोंधी सुगंध मन मस्तिष्क में घुलने लगती है। जाड़े के दिनों में हर दरवाजे पर गन्ना पेराई के दौरान कच्चा रस पीने की लोगों में होड़ मची रहती थी लेकिन यह सब पुराने जमाने की बात होकर रह गई है। गन्ने की पेराई मशीन के माध्यम से होने लगी है। दो दिन का काम दो घंटे में होने लगा है। वैसे भी दो दशक पहले की अपेक्षा गन्ने की पैदावार में भी भारी कमी आई है।

बावजूद इसके बड़े काश्तकार आज भी गन्ने की बड़े पैमाने पर खेती करते हैं। गन्ना पेराई सहित अन्य काश्तकारी भले ही मशीनों की बदौलत अंजाम पाने लगी है लेकिन ग्रामीण अंचलों में लगभग हर दरवाजे पर कोल्हू देखने को मिल जाते हैं। हालांकि घर के बाहर किसी कोने में पड़े कोल्हू नई पीढ़ी के बच्चों के लिए कौतूहल का विषय बने हैं। बच्चे बड़ों से सवाल करते हैं कि आखिर इतना भारी भरकम पत्थर लाया कैसे गया। जिसका जवाब देना बड़े बुजुगरें के लिए भी टेढ़ी खीर है।

गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि न तो अब पहले जैसी गन्ने की पैदावार रही न ही कोल्हू के माध्यम से पेराई करने का लोगों में उत्साह रहा। बताते हैं कि इसके लिए प्रशिक्षित बैलों की जोड़ियां हुआ करती थीं जो अनवरत 8 से 10 घंटे तक कोल्हू के इर्द गिर्द घूमते रहते थे। उन्हें कोल्हू के बैल के नाम से जाना जाता था।

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