Bhadohi News: डिजिटल दौर में 90 फीसद शिपिंग कार्यालयों के शटर डाउन, काम करने वाले 500 से अधिक लोग बेरोजगार
कार्यालयों में काम करने वाले 500 से अधिक लोग बेरोजगार हो गए हैं। एक दशक पहले तक जनपद में जहां 150 से अधिक शिपिंग एजेंसियों के कार्यालय हुआ करते थे वहीं अब महज 25 से 30 कार्यालय रह गए हैं।
By ravindra nath pandeyEdited By: Shivam YadavUpdated: Tue, 01 Nov 2022 05:53 AM (IST)
भदोही, जागरण संवाददाता। व्यवसाय का डिजिटलीकरण होने से शिपिंग का कार्य करने वाले व्यवसायी लड़खड़ा गए हैं। कार्य आनलाइन होने के कारण छोटी मोटी एजेंसियां जहां बंद हो गईं वहीं बड़ी व स्थापित एजेंसियां मुंबई व दिल्ली में बैठकर आनलाइन कार्य करने लगी हैं। इस कारण कालीन नगरी के 90 फीसद शिपिंग कार्यालयों में ताला लग गया।
कार्यालयों में काम करने वाले 500 से अधिक लोग बेरोजगार हो गए हैं। एक दशक पहले तक जनपद में जहां 150 से अधिक शिपिंग एजेंसियों के कार्यालय हुआ करते थे वहीं अब महज 25 से 30 कार्यालय रह गए हैं। उसमें कर्मचारियों की संख्या सीमित कर दी गई है। कुछ शिपिंग एजेंट घर बैठे आनलाइन काम कर रहे हैं।
शिपिंग व्यवसायियों का कहना है कि सिस्टम आनलाइन होने के बाद व्यवसाय सुविधाजनक जरूर हुआ है लेकिन बेरोजगारी बढ गई है। कार्यालयों में काम करने वाले दूसरे व्यवसाय से जुड़ चुके हैं।
निर्यात के लिए भेजे जाने वाले कालीन उत्पादों को मुंबई कस्टम तक क्लियरेंस का काम शिपिंग एजेंसियों के माध्यम से किया जाता है। निर्यातकों द्वारा माल भेजने के लिए शिपिंग एजेंट का सहारा लिया जाता है। दो दशक पहले तक भदोही में शिपिंग एजेंसियों की भरमार रही। कदम कदम पर शिपिंग कार्यालय हुआ करते थे, चार से 10 कर्मचारी का काम करते थे।
वर्ष 1990 से 2000 के दशक में कालीन उद्योग मंदी का शिकार हुआ तो आज तक उबर नहीं सका। देखते ही देखते छोटे मोटे निर्यातक लुप्त हो गए। रही सही कसर आनलाइन सिस्टम ने पूरी कर दी। कार्यालयों में कर्मचारियों का स्थान कम्प्यूटर ने ले लिया। शिपिंग संबंधी समस्त दस्तावेज आनलाइन हो गए। कागज का काम पूरी तरह समाप्त हो गया। इसके कारण एजेंसियों ने कर्मचारियों की छंटनी कर दी।
समाप्त हो गया कागज का कार्य
अब काम सिमट गया है। पहले छोटे, मझोले निर्यातकों की अधिक संख्या थी लेकिन अब सिर्फ ब़ड़ी कंपनियां रह गई है। कागज का काम समाप्त होने के कारण कर्मचारियों की जरूरत नहीं रह गई। जो काम चार पांच लोग करते थे अब एक स्टाफ के सहारे हो जाता है। पहले की तरह कंपनियों में भागदौड़ करने की जरूरत नहीं है। अब सारे डाक्यूमेंट्स आनलाइन मिल जाते हैं। ऐसे में काफी संख्या में कर्मचारियों को बाहर का रास्ता देखना पड़ा।
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अब आयातक खुद करते हैं नामिनेट
व्यवसाय का पूरा सिस्टम बदल चुका है। पहले निर्यातक अपनी मर्जी से शिपिंग एजेंट से काम लेते थे लेकिन अब अधिकतर आयातक शिपिंग एजेंटों को नामिनेट करते हैं। आयातक खुद बताते हैं कि किस एजेंसी के माध्यम से माल भेजा जाए। यही कारण है कि शिपिंग की छोटी मोटी एजेंसियां बंद हो गईं। बड़ी व स्थापित एजेंसियों के माध्यम से काम करने पर लोग विवश हैं। अधिकतर शिपिंग एजेंट मुंबई व दिल्ली कार्यालयों से सीधे संपर्क कर काम रहे हैं।-आलोक बरनवाल, निर्यातक।